मानसून का शंख -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>मानसून का शंख<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>मानसून का शंख<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
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विश्व का परिदृश्य देखें तो [[कृषि]] क्षेत्र में भारत दूसरे स्थान पर है (कुल उत्पाद में)। यदि प्रति हेक्टेयर उत्पादन की बात करें तो हालात बहुत चिंताजनक हैं। किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उत्पादन पर नज़र डालें तो भारत का स्थान लगभग 83-84 वाँ है। इसमें [[अमरीका]] 11 वें स्थान पर और [[जापान]] 15 वें स्थान पर है। इसे सरल भाषा में कहें तो जितनी भूमि में हम जिस मात्रा में अन्न पैदा कर रहे हैं, उतनी ही भूमि में कुछ देश चार गुणे से अधिक उत्पादन कर रहे हैं। | विश्व का परिदृश्य देखें तो [[कृषि]] क्षेत्र में भारत दूसरे स्थान पर है (कुल उत्पाद में)। यदि प्रति हेक्टेयर उत्पादन की बात करें तो हालात बहुत चिंताजनक हैं। किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उत्पादन पर नज़र डालें तो भारत का स्थान लगभग 83-84 वाँ है। इसमें [[अमरीका]] 11 वें स्थान पर और [[जापान]] 15 वें स्थान पर है। इसे सरल भाषा में कहें तो जितनी भूमि में हम जिस मात्रा में अन्न पैदा कर रहे हैं, उतनी ही भूमि में कुछ देश चार गुणे से अधिक उत्पादन कर रहे हैं। | ||
कृषि क्षेत्रफल के लिए भी हमारी जागरूकता नहीं के बराबर है। देश के कुल क्षेत्रफल का 50% से भी कम कृषि उपयोग में आता है, जो कि प्रतिदिन बढ़ने के बजाय कम होता जा रहा है। इज़राइल ने समुद्री दलदल को सुखा-सुखा कर उसे खेती के योग्य बना लिया है और कई किलोमीटर तक [[समुद्र]] में घुस गया है। जबकि हमारे यहाँ उल्टा हो रहा है। हम कृषि योग्य भूमि को [[कंक्रीट]] के जंगल में बदल रहे हैं। उपजाऊ भूमि पर बनती अट्टालिकाएँ और सड़कें कृषि के लिए स्पष्ट ख़तरा है। | कृषि क्षेत्रफल के लिए भी हमारी जागरूकता नहीं के बराबर है। देश के कुल क्षेत्रफल का 50% से भी कम कृषि उपयोग में आता है, जो कि प्रतिदिन बढ़ने के बजाय कम होता जा रहा है। इज़राइल ने समुद्री दलदल को सुखा-सुखा कर उसे खेती के योग्य बना लिया है और कई किलोमीटर तक [[समुद्र]] में घुस गया है। जबकि हमारे यहाँ उल्टा हो रहा है। हम कृषि योग्य भूमि को [[कंक्रीट]] के जंगल में बदल रहे हैं। उपजाऊ भूमि पर बनती अट्टालिकाएँ और सड़कें कृषि के लिए स्पष्ट ख़तरा है। | ||
इस 'तथाकथित विकास' के पीछे कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन पर हमारी निगाह नहीं जा पाती, जैसे कि 'इकॉनमिक हिट-मॅन'। वैसे तो हिट-मॅन उनको कहा जाता है जो किसी की जान लेने के कार्य को व्यवसाय की तरह करते हैं और भाड़े पर उपलब्ध होते हैं। लेकिन 'इकॉनमिक हिट-मॅन' उनसे ज़्यादा ख़तरनाक साबित हुए हैं। इकॉनमिक हिट-मॅन सबसे पहले पिछड़े देशों या प्रदेशों के मुख्य व्यक्ति से संपर्क करके उन्हें एक योजनाबद्ध विकास का लालच देते | इस 'तथाकथित विकास' के पीछे कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन पर हमारी निगाह नहीं जा पाती, जैसे कि 'इकॉनमिक हिट-मॅन'। वैसे तो हिट-मॅन उनको कहा जाता है जो किसी की जान लेने के कार्य को व्यवसाय की तरह करते हैं और भाड़े पर उपलब्ध होते हैं। लेकिन 'इकॉनमिक हिट-मॅन' उनसे ज़्यादा ख़तरनाक साबित हुए हैं। इकॉनमिक हिट-मॅन सबसे पहले पिछड़े देशों या प्रदेशों के मुख्य व्यक्ति से संपर्क करके उन्हें एक योजनाबद्ध विकास का लालच देते हैं। यह एक ऐसे विकास का प्रारूप होता है जिसमें ऑयल रिफ़ायनरी, बिजली-घर, जल-संसाधन सयंत्र, ऊँची अट्टालिकाओं के 'कॉरपोरेट कॉम्पलॅक्स', शॉपिंग मॉल, ऍक्सप्रॅस वे, फ़्लाईओवर, मॅट्रो, टनल वे, सबवे, अम्युज़मॅन्ट पार्क आदि-आदि एक सुनहरे सपनों जैसी योजनाएँ होती हैं। शहरों का आधुनिकीकरण और नये शहर बनाना इनका मुख्य मुद्दा होता है। | ||
इस चकाचौंध से भरे आकर्षक प्रस्ताव को भला तीसरी दुनिया का कौन से विकासशील देश या प्रदेश का मुखिया स्वीकार नहीं करेगा ? विकासशील और पिछड़े देशों और प्रदेशों के विकास के लिए दुनिया में कुछ संस्थाएँ कार्यरत हैं, जैसे कि विश्व बॅन्क, यू.ऍस-एड (USAID) आदि। इसी तरह की संस्थाओं से इन देशों या प्रदेशों को ऋण के रूप में पैसा दिलवाया जाता है और लगभग सभी ठेकों को पूर्व निर्धारित कम्पनियों को दिया जाता है। साथ ही उस देश या प्रदेश के मुखिया को रिश्वत के रूप में मोटी रक़म दे दी जाती है। किसान की उपजाऊ ज़मीन का अधिगृहण किया जाता है। मुआवज़े के पैसे को किसान ऐश-आराम में उड़ा देते हैं और बेरोज़गार हो जाते हैं। | इस चकाचौंध से भरे आकर्षक प्रस्ताव को भला तीसरी दुनिया का कौन से विकासशील देश या प्रदेश का मुखिया स्वीकार नहीं करेगा ? विकासशील और पिछड़े देशों और प्रदेशों के विकास के लिए दुनिया में कुछ संस्थाएँ कार्यरत हैं, जैसे कि विश्व बॅन्क, यू.ऍस-एड (USAID) आदि। इसी तरह की संस्थाओं से इन देशों या प्रदेशों को ऋण के रूप में पैसा दिलवाया जाता है और लगभग सभी ठेकों को पूर्व निर्धारित कम्पनियों को दिया जाता है। साथ ही उस देश या प्रदेश के मुखिया को रिश्वत के रूप में मोटी रक़म दे दी जाती है। किसान की उपजाऊ ज़मीन का अधिगृहण किया जाता है। मुआवज़े के पैसे को किसान ऐश-आराम में उड़ा देते हैं और बेरोज़गार हो जाते हैं। | ||
सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह है कि पूरे विश्व में केवल वही देश शक्तिशाली, आत्मनिर्भर और विकसित हो पाए हैं, जिस देश के किसान समृद्ध, स्वस्थ और पढ़े-लिखे हैं। जैसे- जापान, इज़राइल, नीदरलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी आदि। | सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह है कि पूरे विश्व में केवल वही देश शक्तिशाली, आत्मनिर्भर और विकसित हो पाए हैं, जिस देश के किसान समृद्ध, स्वस्थ और पढ़े-लिखे हैं। जैसे- जापान, इज़राइल, नीदरलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी आदि। | ||
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इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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Latest revision as of 04:50, 17 July 2014
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश मानसून का शंख -आदित्य चौधरी "आपको कुछ पता भी है कि दुनिया में क्या हो रहा है, अरे! दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और एक हमारे ये हैं... भोले भंडारी... अरे महाराज समाधि लगाये ही बैठे रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे ?" कैलास पर्वत पर पार्वती मैया ग़ुस्से से भन्ना रही थीं। शंकर जी ने ध्यान भंग करना ही सही समझा और बोले- |