वैष्णव जन तो तेने कहिये: Difference between revisions

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'''वैष्णव जन तो तेने कहिये''' [[गुजरात]] के संत कवि [[नरसी मेहता]] द्वारा रचित भजन है जो [[महात्मा गाँधी]] को बहुत प्रिय था।
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पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।
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सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।
सकल लोक मां सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।
 
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।


वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।


समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।
राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।
राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।


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* गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचा ये भजन गाँधी जी को बहुत प्रिय था।




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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://podcast.hindyugm.com/2008/10/gandhi-jayanti-ahimsa-vaishanv-jan.html वैष्णव जन तो तेने कहिये,जे पीड पराई जाणे रे...]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
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Latest revision as of 14:07, 2 June 2017

वैष्णव जन तो तेने कहिये गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचित भजन है जो महात्मा गाँधी को बहुत प्रिय था।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।
सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।
राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।


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