वैष्णव जन तो तेने कहिये: Difference between revisions
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पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।। | पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।। | ||
सकल लोक | सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।। | ||
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।। | वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।। | ||
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वैष्णव जन तो तेने कहिये गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचित भजन है जो महात्मा गाँधी को बहुत प्रिय था।
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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