जामा मस्जिद भोपाल: Difference between revisions

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भोपाल की जामा मस्जिद [[दिल्ली]] की [[जामा मस्जिद दिल्ली|जामा मस्जिद]] के समान ही चार बाग़ पद्धति पर आधारित है। नौ मीटर वर्गाकार ऊँची जगह पर निर्मित इस मस्जिद के चारों कोनों पर 'हुजरे'<ref>कमरे</ref> बने हुए हैं। इसमें तीन दिशाओं से प्रवेश द्वार है। अन्दर एक विशाल आंगन है। पूर्वी एवं उत्तरी द्वार के मध्य हौज़ है। यहाँ का प्रार्थना स्थल अर्द्ध स्तम्भों एवं स्वतंत्र स्तम्भों पर आधारित है। स्तम्भों की संरचना इस प्रकार है कि भवन स्वत: दो समानांतर भागों में विभाजित हो जाता है। प्रार्थना स्थल के दोनों ओर पाँच मंजिली विशाल गगनचुम्बी मीनारें इसके सौन्दर्य में अभूतपूर्व वृद्धि करती हैं।
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====कोष्ठकों का प्रयोग====
====कोष्ठकों का प्रयोग====
मस्जिद की प्रथम मंज़िल पर छज्जेदार प्रलिंद हैं, जिसको आधार प्रदान करने के लिए कोष्ठकों का प्रयोग किया गया है। मीनार के हर पहलू में चार कोष्ठक अर्थात एक मंज़िल में बत्तीस कोष्ठक हैं। पाँचवी प्रलिंद के ऊपर गुम्बद है, जिस पर पदमकोष एवं स्वर्ण कलश शोभित है। स्तंभों की इन क्रमबद्ध रचना से जो आलिन्द निर्मित हैं, उनमें सौन्दर्य वृद्धि के लिये स्तंभों के शीर्ष पर धनुषाकार मेहराबों का निर्माण किया गया है।
मस्जिद की प्रथम मंज़िल पर छज्जेदार प्रलिंद हैं, जिसको आधार प्रदान करने के लिए कोष्ठकों का प्रयोग किया गया है। मीनार के हर पहलू में चार कोष्ठक अर्थात् एक मंज़िल में बत्तीस कोष्ठक हैं। पाँचवी प्रलिंद के ऊपर गुम्बद है, जिस पर पदमकोष एवं स्वर्ण कलश शोभित है। स्तंभों की इन क्रमबद्ध रचना से जो आलिन्द निर्मित हैं, उनमें सौन्दर्य वृद्धि के लिये स्तंभों के शीर्ष पर धनुषाकार मेहराबों का निर्माण किया गया है।


सुल्तान जहाँ बेगम ने 'हयाते कुदसी' में इस बात का ज़िक्र किया है कि जामा मस्जिद का निर्माण उस स्थान पर हुआ, जहाँ [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का एक पुराना मंदिर था, जो सभा मण्डल के नाम से जाना जाता था।<ref>{{cite web |url=http://citybhopal.com/Kyadekhen.html |title=जामा मस्जिद |accessmonthday=12 अक्टूबर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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Latest revision as of 07:45, 7 November 2017

जामा मस्जिद भोपाल, मध्य प्रदेश के चौक क्षेत्र में स्थित है। यह सुन्दर मस्जिद लाल रंग के पत्थरों से निर्मित है। इसका निर्माण भोपाल राज्य की 8वीं शासिका नवाब कुदसिया बेगम ने 1832 ई. में शुरू करवाया था। यह जामा मस्जिद 1857 ई. में बनकर पूर्ण हुई। मस्जिद के निर्माण पर लगभग पाँच लाख रुपये का ख़र्च आया था।

वास्तुकला

भोपाल की जामा मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद के समान ही चार बाग़ पद्धति पर आधारित है। नौ मीटर वर्गाकार ऊँची जगह पर निर्मित इस मस्जिद के चारों कोनों पर 'हुजरे'[1] बने हुए हैं। इसमें तीन दिशाओं से प्रवेश द्वार है। अन्दर एक विशाल आंगन है। पूर्वी एवं उत्तरी द्वार के मध्य हौज़ है। यहाँ का प्रार्थना स्थल अर्द्ध स्तम्भों एवं स्वतंत्र स्तम्भों पर आधारित है। स्तम्भों की संरचना इस प्रकार है कि भवन स्वत: दो समानांतर भागों में विभाजित हो जाता है। प्रार्थना स्थल के दोनों ओर पाँच मंजिली विशाल गगनचुम्बी मीनारें इसके सौन्दर्य में अभूतपूर्व वृद्धि करती हैं।

कोष्ठकों का प्रयोग

मस्जिद की प्रथम मंज़िल पर छज्जेदार प्रलिंद हैं, जिसको आधार प्रदान करने के लिए कोष्ठकों का प्रयोग किया गया है। मीनार के हर पहलू में चार कोष्ठक अर्थात् एक मंज़िल में बत्तीस कोष्ठक हैं। पाँचवी प्रलिंद के ऊपर गुम्बद है, जिस पर पदमकोष एवं स्वर्ण कलश शोभित है। स्तंभों की इन क्रमबद्ध रचना से जो आलिन्द निर्मित हैं, उनमें सौन्दर्य वृद्धि के लिये स्तंभों के शीर्ष पर धनुषाकार मेहराबों का निर्माण किया गया है।

सुल्तान जहाँ बेगम ने 'हयाते कुदसी' में इस बात का ज़िक्र किया है कि जामा मस्जिद का निर्माण उस स्थान पर हुआ, जहाँ हिन्दुओं का एक पुराना मंदिर था, जो सभा मण्डल के नाम से जाना जाता था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कमरे
  2. जामा मस्जिद (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2012।

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