चित्तौड़गढ़: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
mNo edit summary
Line 53: Line 53:
चित्र:Krishna-Temple-Chittorgarh-1.jpg|कृष्ण मंदिर, [[चित्तौड़गढ़ क़िला]]<br />Krishna Temple, Chittorgarh Fort
चित्र:Krishna-Temple-Chittorgarh-1.jpg|कृष्ण मंदिर, [[चित्तौड़गढ़ क़िला]]<br />Krishna Temple, Chittorgarh Fort
चित्र:Krishna-Temple-Chittorgarh-2.jpg|कृष्ण मंदिर, [[चित्तौड़गढ़ क़िला]]<br />Krishna Temple, Chittorgarh Fort
चित्र:Krishna-Temple-Chittorgarh-2.jpg|कृष्ण मंदिर, [[चित्तौड़गढ़ क़िला]]<br />Krishna Temple, Chittorgarh Fort
चित्र:Rana-Khumba-Palace-Chittorgarh.jpg|राणा कुंभ का महल, चित्तौड़गढ़<br />Rana Khumba Palace, Chittorgarh
चित्र:Rana-Khumba-Palace-Chittorgarh.jpg|राणा कुंभा का महल, चित्तौड़गढ़<br />Rana Khumba Palace, Chittorgarh
चित्र:Rana-Khumba-Palace-Chittorgarh-1.jpg|राणा कुंभ का महल, चित्तौड़गढ़<br />Rana Khumba Palace, Chittorgarh
चित्र:Rana-Khumba-Palace-Chittorgarh-1.jpg|राणा कुंभ का महल, चित्तौड़गढ़<br />Rana Khumba Palace, Chittorgarh
</gallery>
</gallery>

Revision as of 10:29, 7 May 2011

thumb|कीर्ति स्तम्भ, चित्तौड़गढ़

  • चित्तौड़गढ़, भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान का एक प्रमुख नगर है।
  • मेवाड़ का प्रसिद्ध नगर जो भारत के इतिहास में सिसौदिया राजपूतों की वीरगाथाओं के लिए अमर है।
  • प्राचीन नगर चित्तौड़गढ़ स्टेशन से ढाई मील दूर है। मार्ग में गम्भीर नदी पड़ती है। भूमितल से 508 फुट ऊँची पहाड़ी पर इतिहास प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ स्थित है। दुर्ग के भीतर ही चित्तौड़नगर बसा है, जिसकी लम्बाई साढ़े तीन मील और चौढ़ाई एक मील है। परकोटे की क़िले की परिधि 12 मील है। कहा जाता है कि चित्तौड़ से 8 मील उत्तर की ओर नगरी नामक प्राचीन बस्ती ही महाभारतकालीन माध्यमिका है। चित्तौड़ का निर्माण इसी के खंडहरों से प्राप्त सामग्री से किया गया था।

[[चित्र:Chittorgarh-Fort-13.jpg|thumb|left|चित्तौड़गढ़ क़िला
Chittorgarh Fort]]

इतिहास

किंवदंती है कि प्राचीन गढ़ को महाभारत के भीम ने बनवाया था। भीम के नाम पर भीमगोड़ी, भीमसत आदि कई स्थान आज भी क़िले के भीतर हैं। पीछे मौर्य वंश के राजा मानसिंह ने उदयपुर के महाराजाओं के पूर्वज बघा रावल को जो उनका भानजा था, यह क़िला सौंप दिया। यहीं बप्पारावल ने मेवाड़ के नरेशों की राजधानी बनाई, जो 16वीं शती में उदयपुर के बसने तक इसी रूप में रही। 1303 ई. में सुलतान अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। इस अवसर पर महारानी पद्मिनी तथा अन्य वीरांगनाएँ अपने कुल के सम्मान तथा भारतीय नारीत्व की लाज रखने के लिए अग्नि में कूदकर भस्म हो गईं और राजपूत वीरों ने युद्ध में प्राण उत्सर्ग कर दिए। जिस स्थान पर रानी पद्मिनी सती हुई थीं वह समाधीश्वर नाम से विख्यात है। स्थानीय जनश्रुति के आधार पर कहा जाता है कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर दो आक्रमण किए थे, किन्तु आधुनिक खोजों से एक ही आक्रमण सिद्ध होता है। रानी पद्मिनी के महल नामक प्रासाद के खंडहर भी क़िले के अन्दर ही अवस्थित हैं। [[चित्र:Chittorgarh-Fort-8.jpg|thumb|250px|चित्तौड़गढ़ क़िला
Chittorgarh Fort]] इस भवन को 1535 ई. में गुजरात के सुलतान बहादुरशाह ने नष्ट कर दिया था। गुजरात के सुलतान बहादुरशाह (1405-1442ई.) ने चित्तौड़ विजय से लौटते समय चन्द्रावती को आँखों से देखकर इसका चित्रण अपनी पुस्तक 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' में किया है। चित्तौड़ का दूसरा 'साका' या जौहर गुजरात के सुलतान बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण के समय हुआ। इस अवसर पर महारानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजकर उसे अपना राखीबंद भाई बनाया था। चित्तौड़ के निकट ही पिंडौली नामक ग्राम है, जहाँ अकबर और मेवाड़ की सेना में युद्ध हुआ था। तीसरा 'साका' अकबर के समय में हुआ, जिसमें वीर जयमल और पत्ता ने मेवाड़ की रक्षा के लिए हँसते-हँसते प्राणदान किया था। अकबर के समय में ही महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर नामक नगर को बसाकर मेवाड़ की नई राजधानी वहाँ बनाई। चित्तौड़ के क़िले के अन्दर आठ विशाल सरोवर हैं। प्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई (जन्म 1498 ई.) का भी यहाँ मन्दिर है, जिसे बहादुरशाह ने तोड़ डाला था। महाराणा कुम्भा का कीर्तिस्तम्भ, जो उन्होंने गुजरात के सुलतान बहादुरशाह को परास्त करने के उपलक्ष्य में बनवाया था, चित्तौड़ का सर्वप्रथम स्मारक है। 122 फुट ऊँचे इस स्तम्भ के निर्माण में 10 लाख रुपया लगा था। यह नौ मंज़िला है और इसके शिखर तक पहुँचने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हैं। 12वीं-13वीं शती में जीजा नामक एक धनाढ्य जैन ने आदिनाथ की स्मृति में सात मंज़िला कीर्तिस्तम्भ बनवाया था जो 80 फुट ऊँचा है। इसमें 49 सीढ़ियाँ हैं। नीचे से ऊपर तक इस स्तम्भ में सुन्दर शिल्पकारी दिखाई देती है। चित्तौड़-द्वार के पास राणा साँगा (बाबर का समकालीन) का निर्मित करवाया हुआ सूरज मन्दिर स्थित है। thumb|250px|left|रानी पद्मिनी का महल, चित्तौड़गढ़

सात दरवाज़े

चित्तौड़गढ़ के सात सात दरवाज़े बहुत प्रसिद्ध हैं। इन दरवाज़ों के नाम हैं—पद्मपोल, भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोठलापोल और रामपोल। भैरवपोल के पास जयमल और कल्लू राठौर के स्मारक हैं। पत्ता का स्मारक भी पास ही है। रामपोल के ही निकट पलालेश्वर है, जहाँ राणा सांगा की कई तोपे रखी हैं। निकटस्थ शांतिनाथ के जैन मन्दिर को बहादुरशाह ने विध्वंस कर दिया था। वीरांगना पन्ना धाय का महल रानीमहल के निकट ही है। पन्नामहल ही में पन्ना के अपूर्व बलिदान की प्रसिद्ध कथा घटित हुई थी। राणा कुम्भा का बनवाया हुआ जटाशंकर नामक मन्दिर भी पास ही स्थित है। भैरवपोल, रामपोल और हनुमानपोल द्वारों की रचना महाराणा कुम्भा ने ही की थी।

प्रमुख धार्मिक स्थल

[[चित्र:Chittorgarh-Fort-11.jpg|thumb|250px|चित्तौड़गढ़ क़िला
Chittorgarh Fort]] चित्तौड़ के अन्य उल्लेखनीय स्थान हैं—श्रंगार चवरी, कालिका मन्दिर, तुलजा भवानी, अन्नपूर्णा, नीलकंठ, शतविंश देवरा, मुकुटेश्वर, सूर्यकुंड, चित्रांगद-तड़ाग तथा पद्मिनी, जयमल, पत्ता और हिंगलु के महल। प्राचीन संस्कृत साहित्य में चित्तौड़ का चित्रकोट नाम मिलता है। चित्तौड़ इसी का अपभ्रंश हो सकता है।

प्रमुख दर्शनीय स्थल

  1. चित्तौड़गढ़ क़िला
  2. रानी पद्मिनी का महल
  3. कीर्ति स्तम्भ
  4. कलिका माता का मन्दिर


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

thumb|600px|center|चित्तौड़गढ़ का दृश्य

संबंधित लेख