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==इतिहास में खत्ती का उल्लेख==
==इतिहास में खत्ती का उल्लेख==
*[[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के गोंडा-बहराइच ज़िलों की सीमा पर [[बौद्ध]] तीर्थ स्थान [[श्रावस्ती]] में कच्ची कुटी के द्वार से [[स्तूप]] की दिशा में फोगल ने 6 ½ फुट विस्तृत एक खत्ती खुदवाई थी। यहाँ से उन्हें एक निचली संरचना के अवशेष मिले थे। इस संरचना में प्रयुक्त ईंटों को चार परतों का भी पता चलता है। उत्खनन में बड़ी संख्या में छोटे मृण्भांड एवं कुछ मृण्मूर्तियाँ भी मिली हैं।<ref>{{cite web |url=http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80#.E0.A4.B8.E0.A5.8D.E0.A4.A4.E0.A5.82.E0.A4.AA_.E2.80.98.E0.A4.8F.E2.80.99 |title=श्रावस्ती |accessmonthday=30 जुलाई |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी. |publisher=भारतकोश |language=हिंदी }}</ref>
*[[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के गोंडा-बहराइच ज़िलों की सीमा पर [[बौद्ध]] तीर्थ स्थान [[श्रावस्ती]] में कच्ची कुटी के द्वार से [[स्तूप]] की दिशा में फोगल ने 6 ½ फुट विस्तृत एक खत्ती खुदवाई थी। यहाँ से उन्हें एक निचली संरचना के अवशेष मिले थे। इस संरचना में प्रयुक्त ईंटों को चार परतों का भी पता चलता है। उत्खनन में बड़ी संख्या में छोटे मृण्भांड एवं कुछ मृण्मूर्तियाँ भी मिली हैं।<ref>{{cite web |url=http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80#.E0.A4.B8.E0.A5.8D.E0.A4.A4.E0.A5.82.E0.A4.AA_.E2.80.98.E0.A4.8F.E2.80.99 |title=श्रावस्ती |accessmonthday=30 जुलाई |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी. |publisher=भारतकोश |language=हिंदी }}</ref>
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*[[ईरान]] और मिस्त्र में [[आर्य|आर्यों]] का संघर्ष जिटी (जाट) और हत्ती अथवा खत्ती लोगों से ही हुआ है। आर्यों का यह खत्ती कबीला कसाइट कबीले से युद्ध में हार गया जो कि मूलरूप से मिस्त्र में फैला हुआ तथा इसी की एक शाखा पश्चिम में समुद्र पार करके मैक्सिको में भी पहुँची थी। जिसने वहाँ पर अजटेक सभ्यता का विकास किया था, जिसको माया सभ्यता भी कहा जाता है। संभवत: यह नाम भय से ही पडा है। क्योंकि ब्राह्मण आर्यों ने मय जैसे वास्तु-शिल्पियों के वंशजों को अथवा असुए ही कहा है। इसका कारण आर्यों के इस हत्ती या खत्ती कबीले का पूर्व निवास मिस्त्र और सीरिया में रहना ही हो सकता है। आर्य ब्राह्मण सीरिया में बसने वाले अहुर (वरुण देव) के उपासकों को ही असुर मानते थे। कहने की आवश्यकता नहीं है कि आर्यब्राह्मणों ने इस कबीले को पहले ही विजित करके अपना दास बना लिया था। वरना पहले ये लोग बड़े ही सम्पन्न किसान थे जो कि अपने अन्न को खत्तों (गड्डों) में गाड़कर जमा रखते थे। संभवत इसीलिए इनका नाम हत्ती से खत्ती पडा है। ऐसा डॉ. अतलसिह खोखर का मत है।<ref>{{cite web |url=http://www.jangidjagat.com/(S(rzpuld45yf432545hwpke155))/Jangidjagat/JangidDharm/History_Present.aspx |title=जांगिड अथवा विश्वकर्मा जाति का इतिहास |accessmonthday=30 जुलाई |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी. |publisher=जांगिड जगत |language=हिंदी }}</ref>





Revision as of 13:24, 21 January 2012

[[चित्र:Jetavana-Sravasti.jpg|thumb|250px|खत्ती, श्रावस्ती]]

  • खत्ती एक प्रकार का गोदाम होता है जो ज़मीन के भीतर बनाया जाता है।
  • यह कच्ची भी होती थीं और पक्की ईंटों की भी बनाई जाती थीं।
  • इसका प्रयोग गेहूँ आदि अनाज, हथियार, शराब, नील या शोरा आदि जमा करने के लिए होता है।
  • आजकल बहुत कम प्रचलन में है।

इतिहास में खत्ती का उल्लेख

  • भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गोंडा-बहराइच ज़िलों की सीमा पर बौद्ध तीर्थ स्थान श्रावस्ती में कच्ची कुटी के द्वार से स्तूप की दिशा में फोगल ने 6 ½ फुट विस्तृत एक खत्ती खुदवाई थी। यहाँ से उन्हें एक निचली संरचना के अवशेष मिले थे। इस संरचना में प्रयुक्त ईंटों को चार परतों का भी पता चलता है। उत्खनन में बड़ी संख्या में छोटे मृण्भांड एवं कुछ मृण्मूर्तियाँ भी मिली हैं।[1]
  • ईरान और मिस्त्र में आर्यों का संघर्ष जिटी (जाट) और हत्ती अथवा खत्ती लोगों से ही हुआ है। आर्यों का यह खत्ती कबीला कसाइट कबीले से युद्ध में हार गया जो कि मूलरूप से मिस्त्र में फैला हुआ तथा इसी की एक शाखा पश्चिम में समुद्र पार करके मैक्सिको में भी पहुँची थी। जिसने वहाँ पर अजटेक सभ्यता का विकास किया था, जिसको माया सभ्यता भी कहा जाता है। संभवत: यह नाम भय से ही पडा है। क्योंकि ब्राह्मण आर्यों ने मय जैसे वास्तु-शिल्पियों के वंशजों को अथवा असुए ही कहा है। इसका कारण आर्यों के इस हत्ती या खत्ती कबीले का पूर्व निवास मिस्त्र और सीरिया में रहना ही हो सकता है। आर्य ब्राह्मण सीरिया में बसने वाले अहुर (वरुण देव) के उपासकों को ही असुर मानते थे। कहने की आवश्यकता नहीं है कि आर्यब्राह्मणों ने इस कबीले को पहले ही विजित करके अपना दास बना लिया था। वरना पहले ये लोग बड़े ही सम्पन्न किसान थे जो कि अपने अन्न को खत्तों (गड्डों) में गाड़कर जमा रखते थे। संभवत इसीलिए इनका नाम हत्ती से खत्ती पडा है। ऐसा डॉ. अतलसिह खोखर का मत है।[2]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रावस्ती (हिंदी) (पी.एच.पी.) भारतकोश। अभिगमन तिथि: 30 जुलाई, 2011।
  2. जांगिड अथवा विश्वकर्मा जाति का इतिहास (हिंदी) (ए.एस.पी.) जांगिड जगत। अभिगमन तिथि: 30 जुलाई, 2011।

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