अवधी भाषा: Difference between revisions

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[[मलूकदास]] आदि संतों ने भी इसी भाषा में रचनाएं कीं। प्रेमाख्यान का प्रतिनिधि ग्रंथ [[मलिक मुहम्मद जायसी]] रचित ‘[[पद्मावत]]’ है, जिसकी रचना ‘रामचरितमानस’  से चौंतीस वर्ष पहले हुई। अवधी की यह संपन्न परंपरा आज भी चली आ रही है
[[मलूकदास]] आदि संतों ने भी इसी भाषा में रचनाएं कीं। प्रेमाख्यान का प्रतिनिधि ग्रंथ [[मलिक मुहम्मद जायसी]] रचित ‘[[पद्मावत]]’ है, जिसकी रचना ‘रामचरितमानस’  से चौंतीस वर्ष पहले हुई। अवधी की यह संपन्न परंपरा आज भी चली आ रही है। 
==संक्षिप्त परिचय==
*'''केन्द्र'''— [[अयोध्या]]/अवध
*'''बोलने वालों की संख्या'''— 2 करोड़
*देश के बाहर फीजी में अवधी बोलने वाले लोग हैं।
*'''साहित्य'''— सूफ़ी काव्य, रामभक्ति काव्य। अवधी में प्रबन्ध काव्य परम्परा विशेषतः विकसित हुई।
*'''रचनाकार'''— सूफ़ी कवि— मुल्ला दाउद ('चंदायन'), [[मलिक मुहम्मद जायसी|जायसी]] ('[[पद्मावत -जायसी|पद्मावत]]'), क़ुत्बन ('मृगावती'), उसमान ('चित्रावली'), रामभक्त कवि— [[तुलसीदास]] ('[[रामचरितमानस]]')
*'''नमूना'''— एक गाँव मा एक अहिर रहा। ऊ बड़ा भोंग रहा। सबेरे जब सोय के उठै तो पहले अपने महतारी का चार टन्नी धमकाय दिये तब कौनो काम करत रहा। बेचारी बहुत पुरनिया रही नाहीं तौ का मज़ाल रहा केऊ देहिं पै तिरिन छुआय देत।
 
==संबंधित लेख==
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{{भाषा और लिपि}}
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Latest revision as of 14:24, 30 May 2017

अवध क्षेत्र की भाषा अवधी कहलाती है, जो हिन्दी की एक उपभाषा है। अवधी का प्राचीन साहित्य बड़ा संपन्न है। इसमें भक्ति काव्य और प्रेमाख्यान काव्य दोनों का विकास हुआ। भक्तिकाव्य का शिरोमणि ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ है।

मलूकदास आदि संतों ने भी इसी भाषा में रचनाएं कीं। प्रेमाख्यान का प्रतिनिधि ग्रंथ मलिक मुहम्मद जायसी रचित ‘पद्मावत’ है, जिसकी रचना ‘रामचरितमानस’ से चौंतीस वर्ष पहले हुई। अवधी की यह संपन्न परंपरा आज भी चली आ रही है।

संक्षिप्त परिचय

  • केन्द्रअयोध्या/अवध
  • बोलने वालों की संख्या— 2 करोड़
  • देश के बाहर फीजी में अवधी बोलने वाले लोग हैं।
  • साहित्य— सूफ़ी काव्य, रामभक्ति काव्य। अवधी में प्रबन्ध काव्य परम्परा विशेषतः विकसित हुई।
  • रचनाकार— सूफ़ी कवि— मुल्ला दाउद ('चंदायन'), जायसी ('पद्मावत'), क़ुत्बन ('मृगावती'), उसमान ('चित्रावली'), रामभक्त कवि— तुलसीदास ('रामचरितमानस')।
  • नमूना— एक गाँव मा एक अहिर रहा। ऊ बड़ा भोंग रहा। सबेरे जब सोय के उठै तो पहले अपने महतारी का चार टन्नी धमकाय दिये तब कौनो काम करत रहा। बेचारी बहुत पुरनिया रही नाहीं तौ का मज़ाल रहा केऊ देहिं पै तिरिन छुआय देत।

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