वैष्णव जन तो तेने कहिये: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
'''वैष्णव जन तो तेने कहिये''' [[गुजरात]] के संत कवि [[नरसी मेहता]] द्वारा रचित भजन है जो [[महात्मा गाँधी]] को बहुत प्रिय था।
{{Poemopen}}
{{Poemopen}}
<poem>
<poem>
Line 21: Line 21:
{{Poemclose}}
{{Poemclose}}


* गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचा ये भजन गाँधी जी को बहुत प्रिय था।


 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://podcast.hindyugm.com/2008/10/gandhi-jayanti-ahimsa-vaishanv-jan.html वैष्णव जन तो तेने कहिये,जे पीड पराई जाणे रे...]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{महात्मा गाँधी}}
[[Category:नया पन्ना दिसंबर-2011]]
[[Category: भक्ति साहित्य ]]
 
[[Category: साहित्य कोश]][[Category: महात्मा गाँधी]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Revision as of 11:09, 5 August 2014

वैष्णव जन तो तेने कहिये गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचित भजन है जो महात्मा गाँधी को बहुत प्रिय था।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।
सकल लोक मां सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।
राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख