हरविलास शारदा: Difference between revisions

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===जीवन परिचय===
===जीवन परिचय===
हरविलास शारदा का जन्म [[3 जून]], [[1867]] ई. को [[अजमेर]] में हुआ था। आपने पिता से [[महाभारत]] और [[रामायण]] की कहानियाँ सुनकर उनके अंदर हिंदुत्व के संस्कार पुष्ट हुए। उन्हें [[स्वामी दयानंद सरस्वती]] के भाषण सुनने और उनके संपर्क में आने का भी अवसर मिला। आगरा कॉलेज से स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने आजीविका के लिए अनेक कार्य किए।  
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हरविलास शारदा
विवरण हरविलास शारदा शिक्षाविद, राजनेता, प्रसिद्ध समाजसुधारक, न्यायविद और लेखक थे। वह बाल-विवाह प्रथा पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से, बहुचर्चित 'शारदा ऐक्ट' के प्रकल्पक भी थे।
जन्म 3 जून 1867
जन्म स्थान जैसलमेर, राजस्थान
मृत्यु 20 जनवरी 1955
मृत्यु स्थान जैसलमेर, राजस्थान
ग्रंथ 'हिंदू सुपीरियॉरिटी', 'महाराजा कुंभा', 'महाराजा सांगा', 'शंकराचार्य और दयानन्द' तथा 'लाइफ ऑफ़ स्वामी दयानन्द सरस्वती।'
सुधार कार्य हरविलास शारदा ने केंद्रीय असेम्बली से इसे रोकने के लिए 1925 में एक बिल पेश किया। 'शारदा बिल' के नाम से प्रसिद्ध यह बिल सितंबर, 1929 में पास हुआ और 1 अप्रैल 1930 से पूरे देश में लागू किया गया।
पदवी 'राय बहादुर' और 'दीवान बहादुर' की पदवियों से अलंकृत।
अन्य जानकारी 1924 में हरविलास शारदा अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। इसी सीट से 1924 और 1930 में उन्हें पुन: निर्वाचित किया गया। इस सदस्यता की अवधि में ही उन्होंने समाज सुधार का ऐसा कार्य किया, जिसके लिए उनका नाम इतिहास में स्थायी हो गया।

हरविलास शारदा (अंग्रेज़ी:Harbilas Sharda, जन्म-3 जून 1867; मृत्यु-20 जनवरी 1955) शिक्षाविद, राजनेता, प्रसिद्ध समाजसुधारक, न्यायविद और लेखक थे। वह बाल-विवाह प्रथा पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से, बहुचर्चित 'शारदा ऐक्ट' के प्रकल्पक थे।

जीवन परिचय

हरविलास शारदा का जन्म 3 जून, 1867 ई. को अजमेर में हुआ था। आपने पिता से महाभारत और रामायण की कहानियाँ सुनकर उनके अंदर हिंदुत्व के संस्कार पुष्ट हुए। उन्हें स्वामी दयानंद सरस्वती के भाषण सुनने और उनके संपर्क में आने का भी अवसर मिला। आगरा कॉलेज से स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने आजीविका के लिए अनेक कार्य किए।

कॅरियर

अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात वे जज की अदालत में अनुवादक रहे, जैसलमेर के राजा के अभिभावक रहे, 1902 में अमजेर के कमिश्नर के कार्यालय में 'वर्नाक्यूलर सुपरिटेंडेट' बने। रजिस्टार, सब जज और अजमेर-मारवाड़ के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद 1924 में इस सेवा से निवृत्त हुए।

समाज सेवक के रूप में

समाज सेवा के क्षेत्र में वे आरंभ से ही अग्रणी थे। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित 'परोपकारिणी सभा' के सचिव के रूप में उन्होंने काम किया, लाहौर में हुए 'इंडियन नेशनल सोशल सम्मेलन' की अध्यक्षता की। 1924 में बरेली के अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी वही थे।

1924 में वह अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। इसी सीट से 1924 और 1930 में उन्हें पुन: निर्वाचित किया गया। इस सदस्यता की अवधि में ही उन्होंने समाज सुधार का ऐसा कार्य किया, जिसके लिए उनका नाम इतिहास में स्थायी हो गया। भारत में लड़कियों के बाल विवाह की बड़ी चिंताजनक प्रथा थी। इन्होंने केंद्रीय असेम्बली से इसे रोकने के लिए 1925 में एक बिल पेश किया। 'शारदा बिल' के नाम से प्रसिद्ध यह बिल सितंबर, 1929 में पास हुआ और 1 अप्रैल 1930 से पूरे देश में लागू किया गया। समाज सेवा के कार्यों के लिए सरकार ने उन्हें 'राय बहादुर' और 'दीवान बहादुर' की पदवियों से अलंकृत किया था।

लेखन कार्य

हरविलास शारदा लेखक भी थे। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ- 'हिंदू सुपीरियॉरिटी' है। 1906 में प्रकाशित इस ग्रन्थ में उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि इतिहास काल में सभी क्षेत्रों में हिंदू सभ्यता अन्य देशों से बहुत आगे थी। उनके कुछ अन्य ग्रन्थ हैं- 'महाराजा कुंभा', 'महाराजा सांगा', 'शंकराचार्य और दयानन्द' तथा 'लाइफ ऑफ़ स्वामी दयानन्द सरस्वती।'

निधन

हरविलास शारदा का 20 जनवरी, 1952 में देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 973 |


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