ठक्कर बाप्पा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "खाली " to "ख़ाली ")
Line 49: Line 49:
देश की स्वाधीनता के बाद ठक्कर बाप्पा कुछ समय तक [[संसद]] के भी सदस्य रहे। इस पद का उपयोग भी उन्होंने दलितों और आदिम जातियों की [[सेवा]] में ही किया। उनकी सेवा-भावना का स्मरण करके ही [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]] ने कहा था‌- "जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी, ठक्कर बाप्पा की मूर्ती [[आंख|आंखों]] के सामने आकर खड़ी हो जायेगी।"
देश की स्वाधीनता के बाद ठक्कर बाप्पा कुछ समय तक [[संसद]] के भी सदस्य रहे। इस पद का उपयोग भी उन्होंने दलितों और आदिम जातियों की [[सेवा]] में ही किया। उनकी सेवा-भावना का स्मरण करके ही [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]] ने कहा था‌- "जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी, ठक्कर बाप्पा की मूर्ती [[आंख|आंखों]] के सामने आकर खड़ी हो जायेगी।"
==गाँधी जी द्वारा प्रेरणा==
==गाँधी जी द्वारा प्रेरणा==
इस बीच जब [[गाँधी जी]] की प्रेरणा से ‘अस्पृश्यता निवारण संघ’, जो बाद में ‘हरिजन सेवक संघ’ कहलाया, बना तो ठक्कर बाप्पा उसके मंत्री बनाए गए। [[1933]] में जब हरिजन कार्य के लिए गाँधी जी ने पूरे देश का भ्रमण किया तो ठक्कर बाप्पा उसके साथ थे। उन्होंने हरिजनो के मंदिर प्रवेश तथा [[जलाशय|जलाशयों]] के उपयोग के उनके अधिकारों के आंन्दोलन को भी आगे बढ़ाया। [[1946]]-[[1947]] के सांप्रदायिक दंगों के दौरान गाँधी जी की नोआखाली यात्रा में भी वे उनके साथ थे। <ref name="a"/>
इस बीच जब [[गाँधी जी]] की प्रेरणा से ‘अस्पृश्यता निवारण संघ’, जो बाद में ‘हरिजन सेवक संघ’ कहलाया, बना तो ठक्कर बाप्पा उसके मंत्री बनाए गए। [[1933]] में जब हरिजन कार्य के लिए गाँधी जी ने पूरे देश का भ्रमण किया तो ठक्कर बाप्पा उसके साथ थे। उन्होंने हरिजनो के मंदिर प्रवेश तथा [[जलाशय|जलाशयों]] के उपयोग के उनके अधिकारों के आंन्दोलन को भी आगे बढ़ाया। [[1946]]-[[1947]] के सांप्रदायिक दंगों के दौरान गाँधी जी की नोआख़ाली यात्रा में भी वे उनके साथ थे। <ref name="a"/>
==निधन==
==निधन==
[[20 जनवरी]], [[1951]] ई. को ठक्कर बाप्पा का देहांत हुआ।
[[20 जनवरी]], [[1951]] ई. को ठक्कर बाप्पा का देहांत हुआ।

Revision as of 11:17, 5 July 2017

ठक्कर बाप्पा
पूरा नाम अमृतलाल ठक्कर
जन्म 29 नवंबर, 1869
जन्म भूमि ज़िला भावनगर, गुजरात
मृत्यु 20 जनवरी, 1951
अभिभावक पिता- विट्ठलदास लालजी ठक्कर
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र समाज सेवक
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख महात्मा गाँधी, गोपाल कृष्ण गोखले
विशेष ठक्कर बाप्पा ने 1914 में ‘भारत सेवक समाज’ के संस्थापक गोपालकृष्ण गोखले से समाज सेवा की दीक्षा ली और जीवनपर्यंत लोक-सेवा में ही लगे रहे। इसी कारण वे ठक्कर बाप्पा के नाम से प्रसिद्ध हुए।
अन्य जानकारी गाँधी जी की प्रेरणा से ‘अस्पृश्यता निवारण संघ’, जो बाद में ‘हरिजन सेवक संघ’ कहलाया, बना तो ठक्कर बाप्पा उसके मंत्री बनाए गए। 1933 में जब हरिजन कार्य के लिए गाँधी जी ने पूरे देश का भ्रमण किया तो ठक्कर बाप्पा उनके साथ थे।

ठक्कर बाप्पा (अंग्रेज़ी: Thakkar Bapa, जन्म- 29 नवंबर, 1869, ज़िला भावनगर, गुजरात; मृत्यु- 20 जनवरी, 1951) अपने सेवा‌ कार्यों के लिये प्रसिद्ध थे। उनकी सेवा-भावना का स्मरण करके ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था‌- "जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी, ठक्कर बाप्पा की मूर्ती आंखों के सामने आकर खड़ी हो जायेगी।" देश की स्वाधीनता के बाद ठक्कर बाप्पा कुछ समय तक संसद के भी सदस्य रहे थे।[1]

परिचय

ठक्कर बाप्पा का जन्म 29 नवंबर, 1869 ई. को आज़ादी से पूर्व काठियावाड़ के भावनगर नामक स्थान पर हुआ था। उनका मूल नाम अमृतलाल ठक्कर था। बाद में सेवा‌-कार्य में प्रसिद्धि के बाद ही वे ठक्कर बाप्पा कहलाए। उनके पिता विट्ठलदास लालजी ठक्कर साधारण स्थिति के व्यक्ति थे। पर ठक्कर बाप्पा के ही नहीं, पूरे समाज के बच्चों की शिक्षा की ओर उनका विशेष ध्यान था। पिता की सेवावृत्ति का प्रभाव ठक्कर बाप्प के जीवन पर भी पड़ा‌‌‌‌‌ था। उस समय समाज में छुआछूत कलंक बुरी तरह से फैला हुआ था। ठक्कर के अंदर इसके प्रति विरोध का भाव बचपन से ही पैदा हो चुका था। ठक्कर बाप्पा ने छात्रवृत्ति मिलने पर पुणे से इंजीनियरिंग की परीक्षा पास की थी।

नौकरी

ठक्कर बाप्पा ने कुछ समय तक शोलापुर और भावनगर में रेलवे की नौकरी की। परंतु अन्य अधिकारियों की भांति रिश्वत न लेने के कारण वे अधिक समय तक इस नौकरी में नहीं रह सके। फिर ठक्कर बाप्पा ने बढ़वण और पोरबंदर राज्य में काम किया। युगांडा (अफ्रीका) जाकर एक रेलवे लाइन बिछाई। लौटने पर कुछ दिन सांगली राज्य में नौकरी करने के बाद उन्हें मुंबई नगरपालिका में उस रेलवे में काम मिला जो पूरे शहर का कचरा बाहर ले जाती थी। वहां ठक्कर बाप्पा ने देखा कि कूड़ा उठाने का काम पाने के लिऐ भी अछूतों को रिश्वत देनी पड़ती है। इससे उनके अंदर हरिजनों की सेवा का भाव और भी जाग्रत हुआ। उन्होंने 23 वर्ष तक नौकरी की थी।[1]

समाजसेवा

ठक्कर बाप्पा ने 1914 ई. में ‘भारत सेवक समाज’ के संस्थापक गोपालकृष्ण गोखले से समाज सेवा की दीक्षा ली और जीवनपर्यंत लोक-सेवा में ही लगे रहे। इसी कारण वे ठक्कर बाप्पा के नाम से प्रसिद्ध हुए। ठक्कर बाप्पा ने काठियावड़ में खादी का काम आगे बढ़ाया। उड़ीसा के अकाल में लोगों की सहायता की, देशी रियासतों में लोंगों पर होने वाले अत्याचारों का विरोध किया। ठक्कर बाप्पा ने 1922 से आगामी दस वर्ष भीलों की सेवा करते हुए गुज़ारे। भारत का शायद ही कोई प्रदेश होगा, जहां किसी-न-किसी सेवा-कार्य से ठक्कर बाप्पा न पहुंचे हों।

देश की स्वाधीनता के बाद ठक्कर बाप्पा कुछ समय तक संसद के भी सदस्य रहे। इस पद का उपयोग भी उन्होंने दलितों और आदिम जातियों की सेवा में ही किया। उनकी सेवा-भावना का स्मरण करके ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था‌- "जब-जब नि:स्वार्थ सेवकों की याद आएगी, ठक्कर बाप्पा की मूर्ती आंखों के सामने आकर खड़ी हो जायेगी।"

गाँधी जी द्वारा प्रेरणा

इस बीच जब गाँधी जी की प्रेरणा से ‘अस्पृश्यता निवारण संघ’, जो बाद में ‘हरिजन सेवक संघ’ कहलाया, बना तो ठक्कर बाप्पा उसके मंत्री बनाए गए। 1933 में जब हरिजन कार्य के लिए गाँधी जी ने पूरे देश का भ्रमण किया तो ठक्कर बाप्पा उसके साथ थे। उन्होंने हरिजनो के मंदिर प्रवेश तथा जलाशयों के उपयोग के उनके अधिकारों के आंन्दोलन को भी आगे बढ़ाया। 1946-1947 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान गाँधी जी की नोआख़ाली यात्रा में भी वे उनके साथ थे। [1]

निधन

20 जनवरी, 1951 ई. को ठक्कर बाप्पा का देहांत हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 347 |

संबंधित लेख