सुनील दत्त: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "कदम" to "क़दम")
m (Text replace - "खानदान" to "ख़ानदान")
Line 15: Line 15:
|कर्म-क्षेत्र=अभिनय, निर्माता, निर्देशक, राजनीतिज्ञ
|कर्म-क्षेत्र=अभिनय, निर्माता, निर्देशक, राजनीतिज्ञ
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य फ़िल्में=मदर इंडिया, वक्त, मिलन, मेहरबान, हमराज़़, साधना, सुजाता, मुझे जीने दो,  खानदान, पड़ोसन, नागिन, जानी दुश्मन
|मुख्य फ़िल्में=मदर इंडिया, वक्त, मिलन, मेहरबान, हमराज़़, साधना, सुजाता, मुझे जीने दो,  ख़ानदान, पड़ोसन, नागिन, जानी दुश्मन
|विषय=
|विषय=
|शिक्षा=स्नातक
|शिक्षा=स्नातक
Line 48: Line 48:
सुनील दत्त की सुपरहिट फ़िल्म 'वक्त' 1965 में प्रदर्शित हुई। उनके सामने इस फ़िल्म में बलराज साहनी, राजकुमार, शशि कपूर और रहमान जैसे नामी सितारे थे, इसके बावज़ूद सुनील अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। सुनील दत्त के सिने करियर का 1967 सबसे महत्वपूर्ण साल साबित हुआ। उस साल उनकी 'मिलन', 'मेहरबान' और 'हमराज़़' जैसी सुपरहिट फ़िल्में प्रदर्शित हुई, जिनमें उनके अभिनय के नए रूप देखने को मिले। इन फ़िल्मों की सफलता के बाद वह अभिनेता के रुप में शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे।  
सुनील दत्त की सुपरहिट फ़िल्म 'वक्त' 1965 में प्रदर्शित हुई। उनके सामने इस फ़िल्म में बलराज साहनी, राजकुमार, शशि कपूर और रहमान जैसे नामी सितारे थे, इसके बावज़ूद सुनील अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। सुनील दत्त के सिने करियर का 1967 सबसे महत्वपूर्ण साल साबित हुआ। उस साल उनकी 'मिलन', 'मेहरबान' और 'हमराज़़' जैसी सुपरहिट फ़िल्में प्रदर्शित हुई, जिनमें उनके अभिनय के नए रूप देखने को मिले। इन फ़िल्मों की सफलता के बाद वह अभिनेता के रुप में शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे।  


सुनील दत्त भारतीय सिनेमा के उन अभिनेताओं मे से एक है जिनकी फ़िल्मो ने पचास और साथ के दशक मे दर्शको पर अमित छाप छोड़ी। 'मदर  इंडिया' की सफलता के बाद उन्हें 'साधना' ([[1958]]), 'सुजाता' ([[1959]]), 'मुझे जीने दो' ([[1963]]),  'खानदान' ([[1965]] ), 'पड़ोसन' ([[1967]] ) जैसी सफल फ़िल्मों से भारतीय दर्शको के बीच एक सफल अभिनेता के रूप में पहचान मिली। सुनील दत्त को निर्देशक बी. आर. चोपड़ा के साथ 'गुमराह' (1963),  'वक़्त' (1965 ) और 'हमराज़' (1967) जैसी फ़िल्मों में निभाई गई यादगार भूमिकाओं ने भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय किया।<ref name="बॉलीबुड ब्लॉग" />
सुनील दत्त भारतीय सिनेमा के उन अभिनेताओं मे से एक है जिनकी फ़िल्मो ने पचास और साथ के दशक मे दर्शको पर अमित छाप छोड़ी। 'मदर  इंडिया' की सफलता के बाद उन्हें 'साधना' ([[1958]]), 'सुजाता' ([[1959]]), 'मुझे जीने दो' ([[1963]]),  'ख़ानदान' ([[1965]] ), 'पड़ोसन' ([[1967]] ) जैसी सफल फ़िल्मों से भारतीय दर्शको के बीच एक सफल अभिनेता के रूप में पहचान मिली। सुनील दत्त को निर्देशक बी. आर. चोपड़ा के साथ 'गुमराह' (1963),  'वक़्त' (1965 ) और 'हमराज़' (1967) जैसी फ़िल्मों में निभाई गई यादगार भूमिकाओं ने भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय किया।<ref name="बॉलीबुड ब्लॉग" />
{{सुनील दत्त फ़िल्म सूची}}
{{सुनील दत्त फ़िल्म सूची}}
====मल्टी स्टारर फ़िल्मों का अहम हिस्सा====
====मल्टी स्टारर फ़िल्मों का अहम हिस्सा====
Line 68: Line 68:
==पुरस्कार==
==पुरस्कार==
*[[1963]] - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (मुझे जीने दो)
*[[1963]] - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (मुझे जीने दो)
*[[1965]] - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (खानदान)
*[[1965]] - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (ख़ानदान)
*[[1968]] - [[पद्मश्री]]
*[[1968]] - [[पद्मश्री]]
*[[1995]] - फ़िल्मफ़ेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
*[[1995]] - फ़िल्मफ़ेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार

Revision as of 15:36, 8 July 2011

सुनील दत्त
पूरा नाम बलराज रघुनाथ दत्त
जन्म 6 जून, 1929
जन्म भूमि गाँव खुर्दी, पंजाब (पाकिस्तान)
मृत्यु 25 मई, 2005
मृत्यु स्थान मुंबई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी नर्गिस दत्त
संतान संजय दत्त, प्रिया दत्त, नम्रता दत्त
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र अभिनय, निर्माता, निर्देशक, राजनीतिज्ञ
मुख्य फ़िल्में मदर इंडिया, वक्त, मिलन, मेहरबान, हमराज़़, साधना, सुजाता, मुझे जीने दो, ख़ानदान, पड़ोसन, नागिन, जानी दुश्मन
शिक्षा स्नातक
विद्यालय जय हिंद कालेज
पुरस्कार-उपाधि फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (दो बार), पद्मश्री, फ़िल्मफ़ेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार, फाल्के रत्न पुरस्कार
प्रसिद्धि अभिनेता
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
अन्य जानकारी सुनील दत्त 2004 - 05 के दौरान भारत सरकार में युवा मामलों और खेल विभाग मे कैबिनेट मंत्री रहे।

सुनील दत्त (जन्म- 6 जून, 1929, गाँव खुर्दी, पंजाब (पाकिस्तान); मृत्यु- 25 मई, 2005, मुंबई) भारतीय सिनेमा में एक ऐसे अभिनेता थे जिनको परदे पर देख एक आम हिन्दुस्तानी अपनी जिंदगी की झलक देखता था।[1] सुनील दत्त का वास्तविक नाम बलराज रघुनाथ दत्त था।

जीवन परिचय

हिन्दी सिनेमा जगत में सुनील दत्त को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने फ़िल्म निर्माण, निर्देशन और अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। उनके किरदार वास्तविक जीवन के बहुत क़रीब होते थे और उनका व्यक्तित्व भी उनके किरदार की तरह उज्जवल और प्रभावशाली रहा। सुनील दत्त का जन्म 6 जून, 1929 में झेलम ज़िले के खुर्दी गाँव में एक ब्राह्मण परिवार मे हुआ था। सुनील दत्त बचपन से ही अभिनय के क्षेत्र में जाना चाहते थे। बलराज साहनी फ़िल्म इंडस्ट्री में अभिनेता के रुप में उन दिनों स्थापित हो चुके थे, इसे देखते हुए उन्होंने अपना नाम बलराज दत्त से बदलकर सुनील दत्त रख लिया। उनका बचपन यमुना नदी के किनारे मंदाली गाँव में बीता जो हरियाणा प्रदेश में है। सुनील दत्त इसके बाद लखनऊ चले गये और जहाँ पर वह अख्तर नाम से अमीनाबाद गली में एक मुसलमान औरत के घर पर रहे। कुछ समय बाद अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह मुंबई चले गए।[1]

कार्यक्षेत्र

मुम्बई आकर सुनील दत्त ने मुंबई परिवहन सेवा के बस डिपो में चेकिंग क्लर्क के रुप में कार्य किया, जहाँ उनको 120 रुपए महीने के मिलते थे। फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए 1955 से 1957 तक सुनील दत्त संघर्ष करते रहे। हिन्दी सिनेमा जगत में अपने पैर जमाने के लिए वह ज़मीन की तलाश में एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो भटकते रहे थे। उसके बाद सुनील दत्त ने जय हिंद कालेज में पढ़कर स्नातक किया। सुनील दत्त ने रेडियो सिलोन की हिन्दी सेवा के उद्घोषक के तौर पर अपना करियर शुरु किया था। जहाँ वह फ़िल्मी कलाकारों का इंटरव्यू लिया करते थे। एक इंटरव्यू के लिए उन्हें 25 रुपये मिलते थे। यह दक्षिण एशिया की पचास के दशक मे सबसे लोकप्रिय रेडियो सेवा थी।

विवाह

सुनील दत्त ने 'मदर इंडिया' फ़िल्म की शूटिंग के दौरान एक आग की दुर्घटना में नर्गिस को अपनी जान की परवाह किये बिना बचाया। इस हादसे में सुनील दत्त काफ़ी जल गए थे तथा नर्गिस पर भी आग की लपटों का असर पड़ा था। उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनके स्वस्थ होकर बाहर निकलने के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। नर्गिस 11 मार्च, 1958 में सुनील दत्त की जीवन संगिनी बन गई।[1]

फ़िल्मी सफर की शुरुआत

सुनील दत्त की पहली फ़िल्म 'रेलवे प्लेटफॉर्म' 1955 में प्रदर्शित हुई, जिसमें उन्होंने अभिनेता के रूप में कार्य किया। अपनी पहली फ़िल्म से उन्हें कुछ ख़ास पहचान नही मिली। उन्होंने इस फ़िल्म के बाद 'कुंदन', 'राजधानी', 'किस्मत का खेल' और 'पायल' जैसी कई छोटी फ़िल्मों में अभिनय किया, लेकिन इनमें से उनकी कोई भी फ़िल्म सफल नहीं हुई। [[चित्र:Mother-India-2.jpg|thumb|left|नर्गिस (राधा), सुनील दत्त (बिरजू) और राजेन्द्र कुमार (रामू)]]

मदर इंडिया

1957 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म 'मदर इंडिया' से सुनील दत्त को अभिनेता के रूप में ख़ास पहचान और लोकप्रियता मिलीI उन्होंने इस फ़िल्म में एक ऐसे युवक 'बिरजू' की भूमिका निभाई जो गाँव में सामाजिक व्यवस्था से काफ़ी नाराज़ है और इसी की वजह से विद्रोह कर डाकू बन जाता है। साहूकार से बदला लेने के लिए वह उसकी पुत्री का अपहरण कर लेता है लेकिन इस कोशिश में अंत में वह अपनी मां के हाथों मारा जाता है। इस फ़िल्म में नकारात्मक हीरो का किरदार निभाकर वह दर्शकों के दिल में जगह बनाने में सफल रहे।[1]

वक्त

सुनील दत्त की सुपरहिट फ़िल्म 'वक्त' 1965 में प्रदर्शित हुई। उनके सामने इस फ़िल्म में बलराज साहनी, राजकुमार, शशि कपूर और रहमान जैसे नामी सितारे थे, इसके बावज़ूद सुनील अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। सुनील दत्त के सिने करियर का 1967 सबसे महत्वपूर्ण साल साबित हुआ। उस साल उनकी 'मिलन', 'मेहरबान' और 'हमराज़़' जैसी सुपरहिट फ़िल्में प्रदर्शित हुई, जिनमें उनके अभिनय के नए रूप देखने को मिले। इन फ़िल्मों की सफलता के बाद वह अभिनेता के रुप में शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे।

सुनील दत्त भारतीय सिनेमा के उन अभिनेताओं मे से एक है जिनकी फ़िल्मो ने पचास और साथ के दशक मे दर्शको पर अमित छाप छोड़ी। 'मदर इंडिया' की सफलता के बाद उन्हें 'साधना' (1958), 'सुजाता' (1959), 'मुझे जीने दो' (1963), 'ख़ानदान' (1965 ), 'पड़ोसन' (1967 ) जैसी सफल फ़िल्मों से भारतीय दर्शको के बीच एक सफल अभिनेता के रूप में पहचान मिली। सुनील दत्त को निर्देशक बी. आर. चोपड़ा के साथ 'गुमराह' (1963), 'वक़्त' (1965 ) और 'हमराज़' (1967) जैसी फ़िल्मों में निभाई गई यादगार भूमिकाओं ने भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय किया।[1]

सुनील दत्त का फ़िल्मी सफ़र[2]
वर्ष फ़िल्म नायिका निर्देशक
1965 खानदान नूतन ए.भीम. सिंह
1966 गबन साधना ऋषिकेश मुखर्जी
मेरा साया साधना राज खोसला
आम्रपाली वैजयंती माला लेख टंडन
मेहरबान नूतन ए. भीम सिंह
1967 हमराज विम्मी बी. आर. चोपड़ा
मिलन नूतन ए. सुब्बाराव
1968 पड़ोसन सायरा बानो ज्योति स्वरूप
गौरी नूतन, मुमताज़ ए.भीम सिंह
1969 चिराग आशा पारेख राज खोसला
प्यासी शाम शर्मिला टैगोर अमर कुमार
मेरी भाभी वहीदा रहमान खालिद अख्तर
भाई-बहन नूतन ए.भीम सिंह
1970 दर्पण वहीदा रहमान ए.सुब्बा राव
भाई-भाई आशा पारेख राजा नवाथे
ज्वाला मधुबाला एम.वी.रामन
1971 रेश्मा और शेरा राखी, वहीदा रहमान सुनील दत्त
1972 जमीन-आसमान रेखा ए.वीरप्पा
जिंदगी जिंदगी वहीदा रहमान तपन सिन्हा
1973 हीरा आशा पारेख सुल्तान अहमद
प्राण जाए पर वचन न जाए रेखा अली राजा
1974 छतीस घंटे माला सिन्हा राज तिलक
गीता मेरा नाम साधना साधना नैयर
कोरा बदन बी.एस. शाद
1975 हिमालय से ऊंचा मल्लिका साराभाई बी.एस. थापा
नीलिमा पुष्पराज
उम्रकैद रीना राय सिकंदर खन्ना
जख्मी आशा पारेख राजा ठाकुर
1976 नागिन रेखा राजकुमार कोहली
नहले पे दहला सायरा बानो राज खोसला
1952 आखिरी गोली लीना चंद्रावरकर शिबू मित्रा
चरणदास बी.एस. थापा
दरिंदा परवीन बाबी कौशल भारती
ज्ञानी जी रीना राय चमन पिल्ले, प्रेमनाथ
पापी रीना राय ओ.पी.रल्हन
1978 डाकू और जवान लीना चंद्रावरकर सुनील दत्त
काला आदमी सायरा बानो रमेश लखनपाल
राम कसम रेखा चांद
1979 जानी दुश्मन रीना राय राजकुमार कोहली
अहिंसा रेखा चांद
मुक़ाबला रीना राय राजकुमार कोहली
1980 एक गुनाह और सही परवीन बाबी योगी कथूरिया
गंगा और सूरज रीना राय ए. सलाम
लहू पुकारेगा सायरा बानो अख्तर-उल-ईमान
शान राखी रमेश सिप्पी
यारी दुश्मनी रीना राय सिकंदर खन्ना
1981 रॉकी राखी सुनील दत्त
1982 बदले की आग रीना राय राजकुमार कोहली
1983 दर्द का रिश्ता स्मिता पाटिल सुनील दत्त

मल्टी स्टारर फ़िल्मों का अहम हिस्सा

सुनील दत्त के सिने करियर पर नज़र डालने पर पता लगता है कि वह मल्टी स्टारर फ़िल्मों का अहम हिस्सा रहे है। फ़िल्म निर्माताओं को ऐसी फ़िल्मों में जब कभी अभिनेता की ज़रूरत होती थी वह उन्हें नज़र अंदाज़ नहीं कर पाते थे। सुनील दत्त की मल्टीस्टारर सुपरहिट फ़िल्मों में 'नागिन', 'जानी दुश्मन', 'शान', 'बदले की आग', 'राज तिलक', 'काला धंधा गोरे लोग', 'वतन के रखवाले', 'परंपरा', 'क्षत्रिय' आदि प्रमुख हैं।[3]

मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस

1993 में प्रदर्शित फ़िल्म 'क्षत्रिय' के बाद सुनील दत्त लगभग 10 वर्ष तक फ़िल्म अभिनय से दूर रहे । विधु विनोद चोपड़ा के ज़ोर देने पर उन्होंने 2007 में प्रदर्शित फ़िल्म 'मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस' में अभिनय किया। फ़िल्म में उन्होंने अभिनेता संजय दत्त के पिता की भूमिका निभाई। पिता-पुत्र की इस जोड़ी को दर्शकों ने काफी पसंद किया। इस फ़िल्म के माध्यम से पहली बार पिता पुत्र (सुनील दत्त और संजय दत्त) एक साथ पर्दे पर नजर आए थे। हालांकि फ़िल्म 'क्षत्रिय' और 'रॉकी' में भी सीनियर और जूनियर दत्त ने साथ काम किया मगर एक भी दृश्य में वे साथ में नहीं थे।[1]

फ़िल्म निर्देशन

फ़िल्म यादें (1964) के साथ सुनील दत्त ने फ़िल्म निर्देशन मे भी क़दम रखा। इस पूरी फ़िल्म में सिर्फ एक युवक की भूमिका थी जो अपने संस्मरण को याद करता रहता है। इस किरदार को सुनील दत्त ने निभाया था। उनकी यह फ़िल्म बहुत सफल नहीं रही, लेकिन भारतीय सिनेमा जगत के इतिहास में अपना नाम दर्ज करा गई।

फ़िल्म निर्माण

सुनील दत्त ने 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म 'यह रास्ते है प्यार के' के ज़रिए फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रख दिया। यह फ़िल्म टिकट खिड़की पर ज़्यादा सफल नहीं रही। इस फ़िल्म के बाद सुनील दत्त ने फ़िल्म 'मुझे जीने दो' का निर्माण किया। यह फ़िल्म डाकुओं के जीवन पर आधारित थी। यह फ़िल्म सुपरहिट साबित हुई। इसके बाद उन्होंने अपने भाई सोम दत्त को बतौर मुख्य अभिनेता फ़िल्म 'मन का मीत' मे लांच किया। सोम दत्त का फ़िल्मी सफर बहुत सफल नही रहा। सुनील दत्त ने 1971 में अपनी महत्वकांक्षी फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' का निर्माण और निर्देशन किया। इस फ़िल्म में उन्होने भूमिका भी निभाई। यह एक पीरियड और बड़े बजट की फ़िल्म थी जिसे दर्शको ने नकार दिया। निर्माता और निर्देशक बनने के बाद भी सुनील दत्त अभिनय से कभी ज़्यादा समय के लिए दूर नही रहे।[1]

सुनील दत्त की सत्तर और अस्सी के दशक मे बनी फ़िल्में 'प्राण जाए पर वचन ना जाई' (1974), 'नागिन' (1976), 'जानी दुश्मन' (1979) और 'शान' (1980) में उनकी भूमिकाए पसंद की गयी। इस समय में सुनील दत्त धार्मिक पंजाबी फ़िल्मो से भी जुड़े रहे। जिन फ़िल्मों में 'मन जीते जाग जीते' (1973 ), 'धुख भजन तेरा नाम' (1974 ), 'सात श्री अकल' (1977 ) प्रमुख हैं। left|thumb|200px|सुनील दत्त
Sunil Dutt

राजनीति में

सुनील दत्त ने फ़िल्मों में कई भूमिकाएँ निभाने के बाद समाज सेवा के लिए राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस के सहयोग से लोकसभा के सदस्य बने। साल 1968 में वह पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किए गए। सुनील दत्त को 1982 में मुंबई का शेरिफ नियुक्त किया गया। हिन्दी फ़िल्मों के अलावा सुनील दत्त ने कई पंजाबी फ़िल्मों में भी अपने अभिनय का जलवा दिखाया। इनमें 'मन जीत जग जीत' 1973, 'दुख भंजन तेरा नाम' 1974 और 'सत श्री अकाल' 1977 जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल है।[3]

नर्गिस की मृत्यु

1980 मे सुनील दत्त ने अपने बेटे संजय दत्त को फ़िल्म 'रॉकी' मे लांच किया। यह एक सुपरहिट फ़िल्म साबित हुई लेकिन फ़िल्म के प्रदर्शित होने के थोड़े समय के बाद ही उनकी पत्नी नर्गिस का कैंसर बीमारी की वजह से देहांत हो गया। नर्गिस की कैंसर से हुई मृत्यु के कारण उन्हें इस बीमारी के प्रति सामाजिक जागरूकता के प्रति बढ़ने की प्रेरणा मिली। सुनील दत्त ने पत्नी की याद मे 'नर्गिस दत्त फाउंडेशन' की स्थापना की। यह वो समय था जब सुनील दत्त सामाजिक कार्यक्रमों मे ज़्यादा दिलचस्पी लेने लगे।[1] thumb|250px|सुनील दत्त, पत्नी नर्गिस, पुत्र संजय और पुत्रियाँ प्रिया, नम्रता के साथ

पुरस्कार

  • 1963 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (मुझे जीने दो)
  • 1965 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (ख़ानदान)
  • 1968 - पद्मश्री
  • 1995 - फ़िल्मफ़ेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 1997 - स्टार स्क्रीन लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2001 -जी सिने लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
  • 2005 - फाल्के रत्न पुरस्कार

मृत्यु

हिन्दी फ़िल्मो के पहले एंग्री यंग मैन और राजनैतिक तौर पर एक आदर्श नेता सुनील दत्त का 25 मई, 2005 को ह्रदय गति रुकने के कारण बांद्रा स्थित उनके निवास स्थान पर देहांत हो गया। सुनील दत्त 'मदर इंडिया' के 'बिरजू' के रूप में या एक आदर्श नेता के तौर पर आज भी हमारे बीच मौज़ूद हैं।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 1.5 1.6 1.7 1.8 हिन्दी सिनेमा के बिरजू सुनील दत्त (हिन्दी) बॉलीबुड ब्लॉग। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2011
  2. सूची पूरी नहीं हैं
  3. 3.0 3.1 सुनील दत्त (हिन्दी) पी7 न्यूज। अभिगमन तिथि: 19 मई, 2011

संबंधित लेख