सिकन्दर शाह लोदी: Difference between revisions
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जीवन के अन्तिम समय में सुल्तान सिकन्दर शाह के गले में बीमारी होने से 21 नवम्बर, 1517 को उसकी मृत्यु हो गई। आधुनिक इतिहासकार सिकन्दर लोदी को [[लोदी वंश]] का सबसे सफल शासक मानते है। सिकन्दर लोदी कहता था कि, “यदि मै अपने एक ग़ुलाम को भी पालकी में बैठा दूँ तो, मेरे आदेश पर मेरे सभी सरदार उसे अपने कन्धों पर उठाकर ले जायेगें।” सिकन्दर लोदी प्रथम सुल्तान था, जिसने [[आगरा]] को अपनी राजधानी बनाया। निष्पक्ष न्याय के लिए मियां भुआं को नियुक्त किया। सुल्तान [[शहनाई]] सुनने का शौक़ीन था। | जीवन के अन्तिम समय में सुल्तान सिकन्दर शाह के गले में बीमारी होने से 21 नवम्बर, 1517 को उसकी मृत्यु हो गई। आधुनिक इतिहासकार सिकन्दर लोदी को [[लोदी वंश]] का सबसे सफल शासक मानते है। सिकन्दर लोदी कहता था कि, “यदि मै अपने एक ग़ुलाम को भी पालकी में बैठा दूँ तो, मेरे आदेश पर मेरे सभी सरदार उसे अपने कन्धों पर उठाकर ले जायेगें।” सिकन्दर लोदी प्रथम सुल्तान था, जिसने [[आगरा]] को अपनी राजधानी बनाया। निष्पक्ष न्याय के लिए मियां भुआं को नियुक्त किया। सुल्तान [[शहनाई]] सुनने का शौक़ीन था। | ||
==विद्वानों का संरक्षणदाता== | ==विद्वानों का संरक्षणदाता== | ||
सिकन्दर शाह लोदी विद्या का पोषक था। उसके | सिकन्दर शाह लोदी विद्या का पोषक था। वह विद्वानों और दार्शनिकों को बड़े-बड़े अनुदान देता था। इसलिए उसके दरबार में अरब और ईरान सहित विभिन्न जातियों और देशों के सुसंस्कृत विद्वान पहुँचते थे। सुल्तान के प्रयत्नों से कई [[संस्कृत]] ग्रंथ [[फ़ारसी भाषा]] में अनुवादित हुए। उसके आदेश पर संस्कृत के एक आयुर्वेद ग्रंथ का फ़ारसी में ‘फरहंगे सिकन्दरी’ के नाम से अनुवाद हुआ। उसका उपनाम ‘गुलरुखी’ था। इसी उपनाम से वह कविताएँ लिखा करता था। उसने [[संगीत]] के एक ग्रन्थ ‘लज्जत-ए-सिकन्दरशाही’ की रचना की। | ||
सिकन्दर शाह लोदी स्वयं भी शिक्षित और विद्वान था। विद्वानों को संरक्षण देने के कारण उसका दरबार विद्वानों का केन्द्र स्थल बन गया था। प्रत्येक रात्रि को 70 विद्वान उसके पलंग के नीचे बैठकर विभिन्न प्रकार की चर्चा किया करते थे। उसने मस्जिदों को सरकारी संस्थाओं का स्वरूप प्रदान करके उन्हें शिक्षा का केन्द्र बनाने का प्रयत्न किया था। मुस्लिम शिक्षा में सुधार करने के लिए उसने तुलम्बा के विद्वान शेख़ अब्दुल्लाह और शेख़ अजीजुल्लाह को बुलाया था। उसके शासनकाल में हिन्दू भी बड़ी संख्या में फ़ारसी सीखने लगे थे और उन्हें उच्च पदों पर रखा गया था। | |||
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सिकन्दर शाह लोदी बहलोल लोदी का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। इसका मूल नाम 'निजाम ख़ाँ' था और यह 17 जुलाई, 1489 को 'सुल्तान सिकन्दर शाह' की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। वह स्वर्णकार हिन्दू माँ की संतान था। धार्मिक दृष्टि से सिकन्दर लोदी असहिष्णु था। वह विद्या का पोषक व प्रेमी था। गले की बीमारी के कारण 21 नवम्बर, 1517 को उसकी मृत्यु हो गई।
विजय अभियान
सिंहासन पर बैठने के उपरान्त सुल्तान ने सर्वप्रथम अपने विरोधियों में चाचा आलम ख़ाँ, ईसा ख़ाँ, आजम हुमायूं (सुल्तान का भतीजा) तथा जालरा के सरदार तातार ख़ाँ को परास्त किया। सिकन्दर लोदी ने जौनपुर को अपने अधीन करने के लिए अपने बड़े भाई 'बारबक शाह' के ख़िलाफ़ अभियान किया, जिसमें उसे पूर्ण सफलता मिली। जौनपुर के बाद सुल्तान सिकन्दर लोदी ने 1494 ई. में बनारस के समीप हुए एक युद्ध में हुसैनशाह शर्की को परास्त कर बिहार को दिल्ली में मिला लिया। इसके बाद उसने तिरहुत के शासक को अपने अधीन किया। राजपूत राज्यों में सिकन्दर लोदी ने धौलपुर, मन्दरेल, उतागिरि, नरवर एवं नागौर को जीता, परन्तु ग्वालियर पर अधिकार नहीं कर सका। राजस्थान के शासकों पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए तथा व्यापारिक शहर की नींव डाली।
शासन प्रबन्ध
सिकन्दर शाह लोदी गुजरात के महमूद बेगड़ा और मेवाड़ के राणा सांगा का समकालीन था। उसने दिल्ली को इन दोनों से मुक़ाबले के योग्य बनाया। उसने उन अफ़ग़ान सरदारों का दबाने की कोशिश भी की, जो जातिय स्वतंत्रता के आदी थे और सुल्तान को अपने बराबर समझते थे। सिकन्दर ने जब सरदारों को अपने सामने खड़े होने का हुक्म दिया, ताकि उनके ऊपर अपनी महत्ता प्रदर्शित कर सके। जब शाही फ़रमान भेजा जाता था तो सब सरदारों को शहर से बाहर आकर आदर के साथ उसका स्वागत करना पड़ता था। जिनके पास जागीरें थीं, उन्हें नियमित रूप से उनका लेखा देना होता था और हिसाब में गड़बड़ करने वाले और भ्रष्टाचारी ज़ागीरदारों को कड़ी सजाएँ दी जाती थीं। लेकिन सिकन्दर लोदी को इन सरदारों को क़ाबू में रखने में अधिक सफलता प्राप्त नहीं हुई। अपनी मृत्यु के समय बहलोल लोदी ने अपने पुत्रों और रिश्तेदारों में राज्य बांट दिया था। यद्यपि सिकन्दर एक बड़े संघर्ष के बाद उसे फिर से एकत्र करने में सफल हुआ था, लेकिन सुल्तान के पुत्रों में राज्य के बंटवारे का विचार अफ़ग़ानों के दिमाग़ में बना रहता था।
सुधार कार्य
सिकन्दर शाह ने भूमि के लिए एक प्रमाणिक पैमाना ‘गज-ए-सिकन्दरी’ का प्रचलन करवाया, जो 30 इंच का था। उसने अनाज पर से चुंगी हटा दी और अन्य व्यापारिक कर हटा दिये, जिससे अनाज, कपड़ा एवं आवश्यकता की अन्य वस्तुएँ सस्ती हो गयीं। सिकन्दर लोदी ने खाद्यान्न पर से जकात कर हटा लिया तथा भूमि में गढ़े हुए खज़ाने से कोई हिस्सा नहीं लिया। अपने व्यक्तित्व की सुन्दरता बनाये रखने के लिए वह दाढ़ी नहीं रखता था। सिकन्दर लोदी ने अफ़ग़ान सरदारों से समानता की नीति का परित्याग करके श्रेष्ठता की नीति का अनुसरण किया। सिकन्दर लोदी सल्तनत काल का एक मात्र सुल्तान हुआ, जिसमें खुम्स से कोई हिस्सा नहीं लिया। उसने निर्धनों के लिए मुफ़्त भोजन की व्यवस्था करायी। उसने आन्तरिक व्यापार कर को समाप्त कर दिया तथा गुप्तचर विभाग का पुनर्गठन किया।
असहिष्णु व्यक्ति
धार्मिक दृष्टि से सिकन्दर लोदी असहिष्णु था। उसने हिन्दू मंदिरों को तोड़ कर वहाँ पर मस्जिद का निर्माण करवाया। एक इतिहासकार के अनुसार, 'सिकन्दर ने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की मूर्ति को तोड़कर उसके टुकड़ों को कसाइयों को माँस तोलने के लिए दे दिया था।' सिकन्दर लोदी ने हिन्दुओं पर जज़िया कर पुनः लगा दिया। उसने एक ब्राह्मण को इसलिए फाँसी दे दी, क्योंकि उसका कहना था कि, हिन्दू और मुस्लिम समान रूप से पवित्र हैं। मुसलमानों को ‘ताजिया’ निकालने एवं मुसलमान स्त्रियों को पीरों एवं सन्तों के मजार पर जाने पर सुल्तान ने प्रतिबंध लगाया। क्रोध में उसने शर्की शासकों द्वारा जौनपुर में बनवायी गयी एक मस्जिद तोड़ने का आदेश दिया, यद्यपि उलेमाओं की सलाह पर आदेश वापस ले लिया गया।
मृत्यु
जीवन के अन्तिम समय में सुल्तान सिकन्दर शाह के गले में बीमारी होने से 21 नवम्बर, 1517 को उसकी मृत्यु हो गई। आधुनिक इतिहासकार सिकन्दर लोदी को लोदी वंश का सबसे सफल शासक मानते है। सिकन्दर लोदी कहता था कि, “यदि मै अपने एक ग़ुलाम को भी पालकी में बैठा दूँ तो, मेरे आदेश पर मेरे सभी सरदार उसे अपने कन्धों पर उठाकर ले जायेगें।” सिकन्दर लोदी प्रथम सुल्तान था, जिसने आगरा को अपनी राजधानी बनाया। निष्पक्ष न्याय के लिए मियां भुआं को नियुक्त किया। सुल्तान शहनाई सुनने का शौक़ीन था।
विद्वानों का संरक्षणदाता
सिकन्दर शाह लोदी विद्या का पोषक था। वह विद्वानों और दार्शनिकों को बड़े-बड़े अनुदान देता था। इसलिए उसके दरबार में अरब और ईरान सहित विभिन्न जातियों और देशों के सुसंस्कृत विद्वान पहुँचते थे। सुल्तान के प्रयत्नों से कई संस्कृत ग्रंथ फ़ारसी भाषा में अनुवादित हुए। उसके आदेश पर संस्कृत के एक आयुर्वेद ग्रंथ का फ़ारसी में ‘फरहंगे सिकन्दरी’ के नाम से अनुवाद हुआ। उसका उपनाम ‘गुलरुखी’ था। इसी उपनाम से वह कविताएँ लिखा करता था। उसने संगीत के एक ग्रन्थ ‘लज्जत-ए-सिकन्दरशाही’ की रचना की।
सिकन्दर शाह लोदी स्वयं भी शिक्षित और विद्वान था। विद्वानों को संरक्षण देने के कारण उसका दरबार विद्वानों का केन्द्र स्थल बन गया था। प्रत्येक रात्रि को 70 विद्वान उसके पलंग के नीचे बैठकर विभिन्न प्रकार की चर्चा किया करते थे। उसने मस्जिदों को सरकारी संस्थाओं का स्वरूप प्रदान करके उन्हें शिक्षा का केन्द्र बनाने का प्रयत्न किया था। मुस्लिम शिक्षा में सुधार करने के लिए उसने तुलम्बा के विद्वान शेख़ अब्दुल्लाह और शेख़ अजीजुल्लाह को बुलाया था। उसके शासनकाल में हिन्दू भी बड़ी संख्या में फ़ारसी सीखने लगे थे और उन्हें उच्च पदों पर रखा गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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