शिवाजी तृतीय: Difference between revisions

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*[[मराठा|मराठों]] की बढ़ती हुई शक्ति रूपी विपत्ति का सामना करते हुए [[मुग़ल]] [[औरंगज़ेब|सम्राट औरंगज़ेब]] ने [[3 मार्च]], 1707 ई. को [[अहमदनगर]] में दम तोड़ दिया।
*[[मराठा|मराठों]] की बढ़ती हुई शक्ति रूपी विपत्ति का सामना करते हुए [[मुग़ल]] [[औरंगज़ेब|सम्राट औरंगज़ेब]] ने [[3 मार्च]], 1707 ई. को [[अहमदनगर]] में दम तोड़ दिया।
*1707 ई. में [[ताराबाई]] के पति के अग्रज [[शम्भुजी]] के पुत्र और वास्तविक उत्तराधिकारी [[शाहू]] अथवा 'शिवाजी द्वितीय' को मुग़लों ने जब बंदीगृह से मुक्त कर दिया तो ताराबाई बड़ी विकट स्थिति में पड़ गई।
*1707 ई. में [[ताराबाई]] के पति के अग्रज [[शम्भुजी]] के पुत्र और वास्तविक उत्तराधिकारी [[शाहू]] अथवा 'शिवाजी द्वितीय' को मुग़लों ने जब बंदीगृह से मुक्त कर दिया तो ताराबाई बड़ी विकट स्थिति में पड़ गई।
*शाहू ने [[महाराष्ट्र]] आकर ताराबाई से अपनी पैतृक सम्पत्ति का अधिकार माँगा। उसको शीघ्र [[पेशवा]] [[बालाजी विश्वनाथ]] के नेतृत्व में बहुत-से समर्थक भी मिल गए।
*शाहू ने [[महाराष्ट्र]] आकर ताराबाई से अपनी पैतृक सम्पत्ति का अधिकार माँगा। उसको शीघ्र ही [[पेशवा]] [[बालाजी विश्वनाथ]] के नेतृत्व में बहुत-से समर्थक भी मिल गए।
*ताराबाई का पक्ष कमज़ोर पड़ गया और उसे शाहू को [[मराठा साम्राज्य]] का 'छत्रपति' स्वीकार कर लेना पड़ा। फिर भी वह अपने पुत्र शिवाजी तृतीय को [[सतारा]] में राज पद पर बनाये रखने में सफल रही।
*ताराबाई का पक्ष कमज़ोर पड़ गया और उसे शाहू को [[मराठा साम्राज्य]] का 'छत्रपति' स्वीकार कर लेना पड़ा। फिर भी वह अपने पुत्र शिवाजी तृतीय को [[सतारा]] में राज पद पर बनाये रखने में सफल रही।



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शिवाजी तृतीय छत्रपति शिवाजी के द्वितीय पुत्र राजाराम तथा ताराबाई का पुत्र था।

  • ताराबाई अपने पति राजाराम की मृत्यु के बाद 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी तृतीय का राज्याभिषेक करवाकर मराठा साम्राज्य की वास्तविक संरक्षिका बन गई।
  • मराठों की बढ़ती हुई शक्ति रूपी विपत्ति का सामना करते हुए मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने 3 मार्च, 1707 ई. को अहमदनगर में दम तोड़ दिया।
  • 1707 ई. में ताराबाई के पति के अग्रज शम्भुजी के पुत्र और वास्तविक उत्तराधिकारी शाहू अथवा 'शिवाजी द्वितीय' को मुग़लों ने जब बंदीगृह से मुक्त कर दिया तो ताराबाई बड़ी विकट स्थिति में पड़ गई।
  • शाहू ने महाराष्ट्र आकर ताराबाई से अपनी पैतृक सम्पत्ति का अधिकार माँगा। उसको शीघ्र ही पेशवा बालाजी विश्वनाथ के नेतृत्व में बहुत-से समर्थक भी मिल गए।
  • ताराबाई का पक्ष कमज़ोर पड़ गया और उसे शाहू को मराठा साम्राज्य का 'छत्रपति' स्वीकार कर लेना पड़ा। फिर भी वह अपने पुत्र शिवाजी तृतीय को सतारा में राज पद पर बनाये रखने में सफल रही।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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