शेरी भोपाली: Difference between revisions

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'''शेरी भोपाली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sheri Bhopali'', जन्म: [[1914]], मृत्यु: [[9 जुलाई]] [[1991]]; [[आगरा]]) [[भोपाल]] के सुप्रसिद्ध [[शायर]] थे।  
'''शेरी भोपाली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sheri Bhopali'', जन्म: [[1914]], [[आगरा]], [[उत्तर प्रदेश]], मृत्यु: [[9 जुलाई]] [[1991]]; [[भोपाल]]) [[भोपाल]] के सुप्रसिद्ध [[शायर]] थे।  
==संक्षिप्त परिचय==
==संक्षिप्त परिचय==
*शेरी भोपाली का असली नाम मोहम्मद असग़र खान था ।  
*शेरी भोपाली का असली नाम '''मोहम्मद असग़र खान''' था ।  
*उनका जन्म [[आगरा]] में [[1914]] में हुआ। पर यह असल में [[भोपाल]] से ताल्लुक रखते थे।  
*उनका जन्म [[आगरा]] में [[1914]] में हुआ। पर यह असल में [[भोपाल]] से ताल्लुक रखते थे।  
*शेरी भोपाली ने शायरी में शेरी तखल्लुस उपयोग करना शुरू किया।  
*शेरी भोपाली ने शायरी में '''शेरी''' तख़ल्लुस उपयोग करना शुरू किया।  
*यह मेल संदेलवी के शिष्य रहे और उन्होंने ज़की वारसी का भी अपनी शायरी में अनुशरण किया।  
*यह मेल संदेलवी के शिष्य रहे और उन्होंने ज़की वारसी का भी अपनी शायरी में अनुसरण किया।  
*यह शायरी के हुनर को [[दिल्ली]] की आबो-हवा की देन कहते है।
*यह शायरी के हुनर को [[दिल्ली]] की आबो-हवा की देन कहते है।
*उनका कहना था कि दिल्ली उनकी शायरी की माँ है।
*उनका कहना था कि दिल्ली उनकी शायरी की माँ है।
*उनकी प्रकाशित ग़ज़ल संग्रहों में शब्-ऐ-ग़ज़ल प्रमुख है जो की इदारा-इ-ईशात-क़ुरआन उर्दू में छपा था ।
*उनकी प्रकाशित ग़ज़ल संग्रहों में शब्-ऐ-ग़ज़ल प्रमुख है जो कि इदारा-इ-ईशात-क़ुरआन उर्दू में छपा था ।
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Revision as of 13:28, 3 July 2018

शेरी भोपाली
पूरा नाम शेरी भोपाली
जन्म 1914
जन्म भूमि आगरा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 9 जुलाई, 1991
मृत्यु स्थान भोपाल
कर्म-क्षेत्र साहित्य
भाषा उर्दू
प्रसिद्धि उर्दू शायर
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी यह शायरी के हुनर को दिल्ली की आबो-हवा की देन कहते है।
अद्यतन‎
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

शेरी भोपाली (अंग्रेज़ी: Sheri Bhopali, जन्म: 1914, आगरा, उत्तर प्रदेश, मृत्यु: 9 जुलाई 1991; भोपाल) भोपाल के सुप्रसिद्ध शायर थे।

संक्षिप्त परिचय

  • शेरी भोपाली का असली नाम मोहम्मद असग़र खान था ।
  • उनका जन्म आगरा में 1914 में हुआ। पर यह असल में भोपाल से ताल्लुक रखते थे।
  • शेरी भोपाली ने शायरी में शेरी तख़ल्लुस उपयोग करना शुरू किया।
  • यह मेल संदेलवी के शिष्य रहे और उन्होंने ज़की वारसी का भी अपनी शायरी में अनुसरण किया।
  • यह शायरी के हुनर को दिल्ली की आबो-हवा की देन कहते है।
  • उनका कहना था कि दिल्ली उनकी शायरी की माँ है।
  • उनकी प्रकाशित ग़ज़ल संग्रहों में शब्-ऐ-ग़ज़ल प्रमुख है जो कि इदारा-इ-ईशात-क़ुरआन उर्दू में छपा था ।
  • शेरी का 9 जुलाई 1991 को भोपाल में निधन हुआ था।[1]


;शेरी भोपाली की गजल के नगमें-


ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए
कि मंज़िल दूर हो और रास्ते में शाम हो जाए

वही नाला वही नग़्मा बस इक तफ़रीक़-ए-लफ़्ज़ी है
क़फ़स को मुंतशिर कर दो नशेमन नाम हो जाए

तसद्दुक़ इस्मत-ए-कौनैन उस मज्ज़ूब-ए-उल्फ़त पर
जो उन का ग़म छुपाए और ख़ुद बद-नाम हो जाए

ये आलम हो तो उन को बे-हिजाबी की ज़रूरत क्या
नक़ाब उठने न पाए और जल्वा आम हो जाए

ये मेरा फ़ैसला है आप मेरे हो नहीं सकते
मैं जब जानूँ कि ये जज़्बा मिरा नाकाम हो जाए

अभी तो दिल में हल्की सी ख़लिश महसूस होती है
बहुत मुमकिन है कल इस का मोहब्बत नाम हो जाए

जो मेरा दिल न हो 'शेरी' हरीफ़ उन की निगाहों का
तो दुनिया भर में बरपा इंक़लाब-ए-आम हो जाए[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए - शेरी भोपाली (हिन्दी) .jakhira.com। अभिगमन तिथि: 24 जून, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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