रमेश सिप्पी का फ़िल्मी कॅरियर: Difference between revisions

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सिप्पी ने अपने शुरुआती करियर में पहली ही फ़िल्म में उन्होंने उस दौर के सुपरस्टार्स [[राजेश खन्ना]], [[हेमा मालिनी]] और [[शम्मी कपूर]] को लेकर अंदाज ([[1971]]) बनाई थी। जिंदगी एक सफर है सुहाना गीत का फ़िल्मांकन तेज भागती मोटर साइकिल पर कुछ इस अंदाज में किया गया था कि युवा वर्ग में उसका क्रेज पैदा हो गया। बॉक्स ऑफिस पर फ़िल्म ने सफलता दर्ज की और रमेश फ़िल्म जगत में स्थापित हो गए। इसके बाद हेमा मालिनी को डबल रोल देते हुए उन्होंने 'सीता और गीता' ([[1972]]) के रूप में दो विपरीत स्वभाव की बहनों का अनूठा चित्रण किया। यह फ़िल्म नायिका प्रधान थी और इस तरह की फ़िल्म बनाना व्यवसाय की दृष्टि से रिस्की था। लेकिन रमेश ने यह जोखिम उठाया और सीता और गीता सुपरहिट रही।<ref name="bb"/>
सिप्पी ने अपने शुरुआती करियर में पहली ही फ़िल्म में उन्होंने उस दौर के सुपरस्टार्स [[राजेश खन्ना]], [[हेमा मालिनी]] और [[शम्मी कपूर]] को लेकर अंदाज़([[1971]]) बनाई थी। जिंदगी एक सफर है सुहाना गीत का फ़िल्मांकन तेज भागती मोटर साइकिल पर कुछ इस अंदाज़में किया गया था कि युवा वर्ग में उसका क्रेज पैदा हो गया। बॉक्स ऑफिस पर फ़िल्म ने सफलता दर्ज की और रमेश फ़िल्म जगत में स्थापित हो गए। इसके बाद हेमा मालिनी को डबल रोल देते हुए उन्होंने 'सीता और गीता' ([[1972]]) के रूप में दो विपरीत स्वभाव की बहनों का अनूठा चित्रण किया। यह फ़िल्म नायिका प्रधान थी और इस तरह की फ़िल्म बनाना व्यवसाय की दृष्टि से रिस्की था। लेकिन रमेश ने यह जोखिम उठाया और सीता और गीता सुपरहिट रही।<ref name="bb"/>


लगातार दो सफल फ़िल्म देने के बाद रमेश सिप्पी का उत्साह और बढ़ गया। उन्होंने ‘शोले’ जैसी भव्य फ़िल्म बनाई। 'शोले' जब रिलीज हुई थी, उन्हीं दिनों जेबी मंघाराम बिस्किट वालों ने 35 लाख की लागत से 'जय संतोषी माँ' फ़िल्म बनाकर प्रदर्शित की थी। इन दोनों फ़िल्मों में जबरदस्त विरोधाभास रहा है। जैसे 'शोले' में सर्वाधिक हिंसा का प्रदर्शन होकर रजतपट को खून से लाल कर दिया गया था। जबकि 'संतोषी माँ' के माध्यम से संतोष और शांति का संदेश दिया गया था। 'शोले' की लागत 3 करोड़ रुपए थी और संतोषी माँ सिर्फ 35 लाख में बनी थी। मजेदार तथ्य यह है कि संतोषी माँ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन शोले से आनुपातिक अधिक रहा। इस तरह शोले फ़िल्म सिनेमाघरों में गब्बरसिंह की बंदूक से गोलियाँ उगल रही थी जबकि संतोषी माँ की श्रद्धालु दर्शक सिनेमाघरों में नारियल फोड़कर जय-जयकार कर रहे थे।<ref name="bb"/>
लगातार दो सफल फ़िल्म देने के बाद रमेश सिप्पी का उत्साह और बढ़ गया। उन्होंने ‘शोले’ जैसी भव्य फ़िल्म बनाई। 'शोले' जब रिलीज हुई थी, उन्हीं दिनों जेबी मंघाराम बिस्किट वालों ने 35 लाख की लागत से 'जय संतोषी माँ' फ़िल्म बनाकर प्रदर्शित की थी। इन दोनों फ़िल्मों में जबरदस्त विरोधाभास रहा है। जैसे 'शोले' में सर्वाधिक हिंसा का प्रदर्शन होकर रजतपट को खून से लाल कर दिया गया था। जबकि 'संतोषी माँ' के माध्यम से संतोष और शांति का संदेश दिया गया था। 'शोले' की लागत 3 करोड़ रुपए थी और संतोषी माँ सिर्फ 35 लाख में बनी थी। मजेदार तथ्य यह है कि संतोषी माँ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन शोले से आनुपातिक अधिक रहा। इस तरह शोले फ़िल्म सिनेमाघरों में गब्बरसिंह की बंदूक से गोलियाँ उगल रही थी जबकि संतोषी माँ की श्रद्धालु दर्शक सिनेमाघरों में नारियल फोड़कर जय-जयकार कर रहे थे।<ref name="bb"/>

Latest revision as of 06:39, 10 February 2021

Template:साँचा:रमेश सिप्पी विषय सूची Template:साँचा:सूचना बक्सा रमेश सिप्पी रमेश सिप्पी एक भारतीय फ़िल्म निर्माता-निर्देशक हैं। रमेश सिप्पी हिंदी सिनेमा में फ़िल्म 'शोले', 'सीता-गीता' जैसी ब्लाकबस्टर हित फ़िल्मों के लिए जाने जाते हैं। रमेश सिप्पी एक फ़िल्मकार के रूप में बड़े बजट, बहुल सितारा और भव्य पैमाने की फ़िल्म पूरे परफेक्शन के साथ निर्देशित करने के रूप में जाने जाते हैं।[1]

फ़िल्मी सफर

सिप्पी ने अपने शुरुआती करियर में पहली ही फ़िल्म में उन्होंने उस दौर के सुपरस्टार्स राजेश खन्ना, हेमा मालिनी और शम्मी कपूर को लेकर अंदाज़(1971) बनाई थी। जिंदगी एक सफर है सुहाना गीत का फ़िल्मांकन तेज भागती मोटर साइकिल पर कुछ इस अंदाज़में किया गया था कि युवा वर्ग में उसका क्रेज पैदा हो गया। बॉक्स ऑफिस पर फ़िल्म ने सफलता दर्ज की और रमेश फ़िल्म जगत में स्थापित हो गए। इसके बाद हेमा मालिनी को डबल रोल देते हुए उन्होंने 'सीता और गीता' (1972) के रूप में दो विपरीत स्वभाव की बहनों का अनूठा चित्रण किया। यह फ़िल्म नायिका प्रधान थी और इस तरह की फ़िल्म बनाना व्यवसाय की दृष्टि से रिस्की था। लेकिन रमेश ने यह जोखिम उठाया और सीता और गीता सुपरहिट रही।[1]

लगातार दो सफल फ़िल्म देने के बाद रमेश सिप्पी का उत्साह और बढ़ गया। उन्होंने ‘शोले’ जैसी भव्य फ़िल्म बनाई। 'शोले' जब रिलीज हुई थी, उन्हीं दिनों जेबी मंघाराम बिस्किट वालों ने 35 लाख की लागत से 'जय संतोषी माँ' फ़िल्म बनाकर प्रदर्शित की थी। इन दोनों फ़िल्मों में जबरदस्त विरोधाभास रहा है। जैसे 'शोले' में सर्वाधिक हिंसा का प्रदर्शन होकर रजतपट को खून से लाल कर दिया गया था। जबकि 'संतोषी माँ' के माध्यम से संतोष और शांति का संदेश दिया गया था। 'शोले' की लागत 3 करोड़ रुपए थी और संतोषी माँ सिर्फ 35 लाख में बनी थी। मजेदार तथ्य यह है कि संतोषी माँ का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन शोले से आनुपातिक अधिक रहा। इस तरह शोले फ़िल्म सिनेमाघरों में गब्बरसिंह की बंदूक से गोलियाँ उगल रही थी जबकि संतोषी माँ की श्रद्धालु दर्शक सिनेमाघरों में नारियल फोड़कर जय-जयकार कर रहे थे।[1]

'शोले' के रूप में रमेश सिप्पी ने इतनी बड़ी लकीर खींच दी कि हर बार उनके द्वारा बनाई गई फ़िल्मों की तुलना ‘शोले’ से होने लगी। कलात्मक दृष्टि से भी और व्यावसायिक दृष्टि से भी। शोले की सफलता रमेश पर भारी पड़ने लगी और वे एक तरह के दबाव में आ गए। शोले की अपार सफलता और मुंबई के मेट्रो सिनेमा में लगातार 5 वर्षों से अधिक चलकर रिकॉर्ड बनाने वाली फ़िल्म के बाद उनकी शान (1980) भी बड़े बजट और बहुल सितारों से लकदक थी।

इसके बाद सलीम जावेद की जोड़ी द्वारा लिखित शक्ति (1982) रमेश सिप्पी ने निर्देशित की। पहली बार दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन जैसे मेगा स्टार साथ में आए। उन्होंने पिता-पुत्र के रोल में बेहतरीन अभिनय किया। रमेश सिप्पी का निर्देशन भी कसा हुआ था। एक अच्छी फ़िल्म होने के बावजूद शक्ति को बॉक्स ऑफिस पर खास सफलता नहीं मिली। रमेश ने ट्रेक चेंज करते हुए अपनी अगली फ़िल्म में एक्शन की बजाय प्रेम कहानी को महत्व दिया। बॉबी की जोड़ी (ऋषि कपूर - डिम्पल) के साथ कमल हासन को भी जोड़ा गया। फ़िल्म की कहानी में नयापन नहीं था, लेकिन रमेश सिप्पी ने एक कविता की तरह फ़िल्म को पर्दे पर पेश किया। लेकिन सागर (1985) को भी औसत सफलता मिली। सागर और केसी बो‍काडि़या की फ़िल्म ‘तेरी मेहरबानियाँ’ एक ही दिन रिलीज हुई थी। 'तेरी मेहरबानियाँ' का हीरो एक कुत्ता था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 रमेश सिप्पी (हिन्दी) hindi.filmibeat.com। अभिगमन तिथि: 8 जुलाई, 2016।

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