राजाराम शिवाजी

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राजाराम, छत्रपति शिवाजी का द्वितीय पुत्र था। जब इसका बड़ा भाई शम्भुजी मुग़लों द्वारा बन्दी बनाकर मार डाला गया और उसका पुत्र शाहू भी 1689 ई. में औरंगज़ेब का बन्दी हो गया, तब राजाराम कर्नाटक में जिंजी नामक क़िले में चला गया और वहीं से उसने औरंगज़ेब के विरुद्ध मराठों के स्वातंत्र्य-युद्ध का संचालन किया। इस प्रकार 1689 ई. में वह मराठों का वास्तविक शासक बनकर मुग़लों का वीरतापूर्वक सामना करने लगा। उसने 8 वर्षों तक उनके आक्रमणों से जिंजी की रक्षा की। तदुपरान्त जब 1689 ई. में मुग़लों का उस पर अधिकार हो गया, तब वह सतारा भाग गया और मृत्युपर्यन्त (1700 ई. में मृत्यु) मुग़लों के विरुद्ध मराठों के स्वतंत्रता युद्ध का नेतृत्व करते हुए, उनका शासक बना रहा।

राज्याभिषेक

शम्भुजी की गिरफ़्तारी के बाद शिवाजी के द्वितीय पुत्र राजाराम का नये छत्रपति के रूप में 19 फ़रवरी, 1689 ई. में राज्याभिषेक किया गया था। राजाराम के कुशल प्रशासन के पीछे प्रह्लाद, नीराजी, रामचन्द्र, परशुराम, त्र्यम्बकराव दाभाड़े, शंकर जी नारायण, संताजी घोरपड़े, धनाजी जादव आदि का हाथ था। राजाराम के प्रशासन के प्रारम्भिक दस वर्षों को मराठा इतिहास का संक्रान्ति काल माना जाता है।

मुग़लों का आक्रमण

औरंगज़ेब मराठा शक्ति को पूर्णत: कुचलने के लिए दक्षिण में डेरा डाले हुए था। संघर्ष के आरम्भिक चरण में औरंगज़ेब ने सेनापति ज़ुल्फ़िक़ार ख़ाँ को रायगढ़ पर आक्रमण का आदेश दिया। शम्भुजी की विधवा येसूबाई ने राजाराम को विशालगढ़ के सुरक्षित क़िले में भेजकर मराठा सेना की कमान स्वयं सम्भाल ली। उसके पराक्रम एवं शौर्य से मुग़ल सेना को कई जगह मात खानी पड़ी, किन्तु उसके एक अधिकारी सूर्यजी पिसालीघा के विश्वासघात के कारण मुग़लों ने रायगढ़ के क़िले पर अधिकार कर लिया। येसूबाई, उसके पुत्र शाहू एवं अनेक मराठा सरदारों को क़ैद कर लिया गया।

राजाराम का पलायन

11 मार्च, 1689 ई. में शिवाजी के दूसरे पुत्र शम्भुजी को मुग़लों द्वारा तरह-तरह की यातनाएँ देकर मार डाला गया था। शाही दल ने शीघ्र ही बहुत से मराठा दुर्गों पर अधिकार कर लिया। यहाँ तक की मराठा राजधानी रायगढ़ पर भी घेरा डाल दिया गया। परन्तु शम्भुजी का छोटा भाई राजाराम भिखारी के वेश में नगर से भाग निकला तथा काफ़ी साहसिक यात्रा के बाद कर्नाटक में जिंजी पहुँचा। औरंगज़ेब ने जुल्फ़िकार ख़ाँ को जिंजी दुर्ग पर आक्रमण के लिए भेजा। लगभग आठ वर्ष के घेरे के बाद भी मुग़लों को सफलता नहीं मिली।

पंत प्रतिनिधि

'पंत प्रतिनिधि' मराठा साम्राज्य में पेशवा से भी उच्च पद था। यह नया पद छत्रपति शिवाजी के दूसरे पुत्र राजाराम ने उस समय सृजित किया था, जब उसने जिंजी के दुर्ग में शरण ले रखी थी। शाहू के समय में पंत प्रतिनिधि के पद का महत्त्व घट गया और पेशवा पद का महत्त्व बढ़ गया।

शिवाजी की प्रेरणा

राजाराम ने बाद के दिनों में सतारा को अपनी राजधानी बनाया था। मुग़लों ने सतारा पर अब भी लगातार आक्रमण किया और अन्तत: उसे जीतकर अपने अधीन कर लिया। जिस समय रायगढ़, महाराष्ट्र में मुग़लों ने शम्भुजी के परिवार को, जिसमें उसका बहुत छोटा पुत्र शाहू भी था, पकड़ लिया, उस समय ऐसा प्रतीत होने लगा कि मराठा शक्ति पूर्ण रूप से विध्वंस हो गई। परन्तु वह भावना, जिससे शिवाजी ने अपने लोगों को प्रेरित किया था, इतनी आसानी से नष्ट नहीं हो सकती थी।

मृत्यु

मुग़लों से युद्ध करते हुए राजाराम ने 30 वर्ष की अल्पायु में ही 12 मार्च, 1700 ई. को अपने प्राण त्याग दिए और मृत्यु का वरण कर लिया।


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