अंकन (लिपि)

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:24, 25 October 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - "khoj.bharatdiscovery.org" to "bharatkhoj.org")
Jump to navigation Jump to search

अंकन (लिपि) को प्राय: 'क्यूनिफ़ार्म लिपि' या 'कीलाक्षर लिपि' भी कहते हैं। छठी-सातवीं सदी ई.पू. से लगभग एक हजार वर्षों तक ईरान में किसी-न-किसी रूप में इसका प्रचलन रहा। प्राचीन फ़ारसी या अबेस्ता के अलावा मध्ययुगीन फ़ारसी या ईरानी (300 ई.पू.-800 ई.) भी इसमें लिखी जाती थी। सिकंदर के आक्रमण के समय के प्रसिद्ध बादशाह दारा के अनेक अभिलेख एवं प्रसिद्ध शिलालेख इसी लिपि में अंकित है। इन्हें दारा के कीलाक्षर लेख भी कहते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस लिपि का विकास मेसोपोटामिया एवं बेबीलोनिया की प्राचीन सभ्य जातियों ने किया था।
  • भाषाभिव्यक्ति चित्रों द्वारा होती थी और चित्र मेसोपोटामिया में कीलों से नरम ईटों पर अंकित किए जाते थे।
  • तिरछी-सीधी रेखाएँ खींचने में सरलता होती थी, किंतु गोलाकार चित्रांकन में प्राय: कठिनाई आती थी।
  • साम देश के लोगों ने इन्हीं से अक्षरात्मक लिपि का विकास किया, जिससे आज की अरबी लिपि विकसित हुई।
  • मेसोपोटामिया और साम से ही ईरान वालों ने इसे प्राप्त किया था।
  • कतिपय स्रोत इस लिपि को फ़िनीश (फ़ोनीशियन) लिपि से विकसित मानते हैं।
  • दारा प्रथम (ई. पू. 521-485) के खुदवाए कीलाक्षरों के 400 शब्दों में प्राचीन फ़ारसी के रूप सुरक्षित हैं।
  • क्यूनिफ़ार्म लिपि या कीलाक्षर नामकरण आधुनिक है। इसे 'प्रेसिपोलिटेन' भी कहते हैं।
  • यह अर्ध वर्णात्मक लिपि थी, इसमें 41 वर्ण थे, जिनमें 4 परमावश्यक एवं 37 ध्वन्यात्मक संकेत थे।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अंकन (लिपि) (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2014।

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः