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+[[पावापुरी]]
 
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-[[वाराणसी]]
 
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||[[चित्र:Jal-Mandir-Pawapuri.jpg|right|100px|जल मंदिर, पावापुरी]]'[[बिहार शरीफ़]]' से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पूर्व [[पावापुरी]] जैनियों का प्रमुख [[तीर्थ स्थल]] है। [[जैन धर्म]] के [[ग्रंथ]] '[[कल्पसूत्र]]' के अनुसार [[महावीर |महावीर स्वामी]] ने पावापुरी में एक [[वर्ष]] बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन धर्म के संम्प्रदाय का [[सारनाथ]] माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा 'जैन संघ' की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी। उनकी मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 'अपापा' के राजा हस्तिपाल के लेखकों के कार्यालय में हुई थी। [[कनिंघम]] ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पावापुरी]]
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||[[चित्र:Jal-Mandir-Pawapuri.jpg|right|100px|जल मंदिर, पावापुरी]]'[[बिहार शरीफ़]]' से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पूर्व [[पावापुरी]] जैनियों का प्रमुख [[तीर्थ स्थल]] है। [[जैन धर्म]] के [[ग्रंथ]] '[[कल्पसूत्र]]' के अनुसार [[महावीर|महावीर स्वामी]] ने पावापुरी में एक [[वर्ष]] बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन धर्म के संम्प्रदाय का [[सारनाथ]] माना जाता है। महावीर स्वामी द्वारा 'जैन संघ' की स्थापना पावापुरी में ही की गई थी। उनकी मृत्यु 72 वर्ष की आयु में 'अपापा' के राजा हस्तिपाल के लेखकों के कार्यालय में हुई थी। [[कनिंघम]] ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पावापुरी]]
  
 
{किस विदेशी दूत ने अपने को 'भागवत' घोषित किया था?
 
{किस विदेशी दूत ने अपने को 'भागवत' घोषित किया था?
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+[[यजुर्वेद]]
 
+[[यजुर्वेद]]
 
-[[अथर्ववेद]]
 
-[[अथर्ववेद]]
||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]'यर्जुवेद' मूलतः कर्मकाण्ड वाला [[ग्रन्थ]] है। इसकी रचना [[कुरुक्षेत्र]] में मानी जाती है। [[यजुर्वेद]] में [[आर्य|आर्यों]] की धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की झाँकी मिलती है। 'यजुर्वेद ग्रन्थ' से पता चलता है कि आर्य '[[सप्त सिंघव]]' से आगे बढ़ गए थे और वे प्राकृतिक पूजा के प्रति उदासीन होने लगे थे। [[यजुर्वेद]] के [[मंत्र|मंत्रों]] का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक [[पुरोहित]] करता था। इस [[वेद]] में अनेक प्रकार के [[यज्ञ|यज्ञों]] को सम्पन्न करने की विधियों का उल्लेख है। यह 'गद्य' तथा 'पद्य' दोनों में लिखा गया है। गद्य को 'यजुष' कहा गया है। यजुर्वेद से '[[उत्तर वैदिक काल]]' की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[यजुर्वेद]]
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||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]] 'यर्जुवेद' मूलतः कर्मकाण्ड वाला [[ग्रन्थ]] है। इसकी रचना [[कुरुक्षेत्र]] में मानी जाती है। [[यजुर्वेद]] में [[आर्य|आर्यों]] की धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की झाँकी मिलती है। 'यजुर्वेद ग्रन्थ' से पता चलता है कि आर्य '[[सप्त सिंघव]]' से आगे बढ़ गए थे और वे प्राकृतिक पूजा के प्रति उदासीन होने लगे थे। [[यजुर्वेद]] के [[मंत्र|मंत्रों]] का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक [[पुरोहित]] करता था। इस [[वेद]] में अनेक प्रकार के [[यज्ञ|यज्ञों]] को सम्पन्न करने की विधियों का उल्लेख है। यह 'गद्य' तथा 'पद्य' दोनों में लिखा गया है। गद्य को 'यजुष' कहा गया है। यजुर्वेद से '[[उत्तर वैदिक काल]]' की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[यजुर्वेद]]
  
 
{'ज्ञानमार्गी शाखा' के [[कवि|कवियों]] को किस नाम से पुकारा जाता है?
 
{'ज्ञानमार्गी शाखा' के [[कवि|कवियों]] को किस नाम से पुकारा जाता है?
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+[[सूरजमल]]
 
+[[सूरजमल]]
 
-[[बदनसिंह]]
 
-[[बदनसिंह]]
||[[चित्र:Maharaja-Surajmal-1.jpg|right|80px|राजा सूरजमल]]'राजा सूरजमल' ने [[ब्रज]] में एक स्वतंत्र [[हिन्दू]] राज्य को बना [[इतिहास]] में गौरव प्राप्त किया था। उसके शासन का समय सन 1755 से 1763 ई. तक है। वह सन 1755 से कई साल पहले से अपने [[पिता]] [[बदनसिंह]] के शासन के समय से ही राजकार्य सम्भालता था। [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में [[सूरजमल]] को 'जाटों का प्लेटो' कहकर भी सम्बोधित किया गया है। सूरजमल के दरबारी कवि '[[सूदन]]' ने राजा की तारीफ़ में '[[सुजानचरित -सूदन|सुजानचरित]]' नामक [[ग्रंथ]] लिखा था। इस [[ग्रंथ]] में सूदन ने राजा सूरजमल द्वारा लड़ी लड़ाईयों का आँखों देखा वर्णन किया है। इस ग्रन्थ में सन 1745 से सन 1753 तक के समय में लड़ी गयी लड़ाईयों का वर्णन है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरजमल]]
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||[[चित्र:Maharaja-Surajmal-1.jpg|right|80px|राजा सूरजमल]]'राजा सूरजमल' ने [[ब्रज]] में एक स्वतंत्र [[हिन्दू]] राज्य को बना [[इतिहास]] में गौरव प्राप्त किया था। उसके शासन का समय सन 1755 से 1763 ई. तक है। वह सन 1755 से कई साल पहले से अपने [[पिता]] [[बदनसिंह]] के शासन के समय से ही राजकार्य संभालता था। [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में [[सूरजमल]] को 'जाटों का प्लेटो' कहकर भी सम्बोधित किया गया है। सूरजमल के दरबारी कवि '[[सूदन]]' ने राजा की तारीफ़ में '[[सुजानचरित -सूदन|सुजानचरित]]' नामक [[ग्रंथ]] लिखा था। इस [[ग्रंथ]] में सूदन ने राजा सूरजमल द्वारा लड़ी लड़ाईयों का आँखों देखा वर्णन किया है। इस ग्रन्थ में सन 1745 से सन 1753 तक के समय में लड़ी गयी लड़ाईयों का वर्णन है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरजमल]]
  
 
{किस [[बौद्ध संगीति]] में [[बौद्ध धर्म]] के [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में [[संस्कृत]] का प्रयोग प्रारम्भ हुआ?
 
{किस [[बौद्ध संगीति]] में [[बौद्ध धर्म]] के [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में [[संस्कृत]] का प्रयोग प्रारम्भ हुआ?
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-[[ब्राह्मण ग्रंथ|ब्राह्मण ग्रंथों]] को
 
-[[ब्राह्मण ग्रंथ|ब्राह्मण ग्रंथों]] को
 
+[[उपनिषद|उपनिषदों]] को
 
+[[उपनिषद|उपनिषदों]] को
||[[सर्वपल्ली राधाकृष्णन|डॉ. राधाकृष्णन]] के अनुसार [[उपनिषद]] शब्द की व्युत्पत्ति 'उप' (निकट), 'नि' (नीचे), और 'षद' (बैठो) से है। इस संसार के बारे में सत्य को जानने के लिए शिष्यों के दल अपने गुरु के निकट बैठते थे। उपनिषदों का [[दर्शन]] [[वेदान्त]] भी कहलाता है, जिसका अर्थ है- 'वेदों का अन्त', उनकी परिपूर्ति। इनमें मुख्यत: ज्ञान से सम्बन्धित समस्याऔं पर विचार किया गया है। [[भर्तुमित्र]], जयन्त कृत 'न्यायमंजरी' तथा [[यामुनाचार्य]] के 'सिद्धित्रय' वेदांत आचार्य रहे थे। उपनिषद [[भारत]] के अनेक दार्शनिकों, जिन्हें [[ऋषि]] या [[मुनि]] कहा गया है, के अनेक वर्षों के गम्भीर चिंतन-मनन का परिणाम है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[उपनिषद]]
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||[[सर्वपल्ली राधाकृष्णन|डॉ. राधाकृष्णन]] के अनुसार [[उपनिषद]] शब्द की व्युत्पत्ति 'उप' (निकट), 'नि' (नीचे), और 'षद' (बैठो) से है। इस संसार के बारे में सत्य को जानने के लिए शिष्यों के दल अपने गुरु के निकट बैठते थे। उपनिषदों का [[दर्शन]] [[वेदान्त]] भी कहलाता है, जिसका अर्थ है- 'वेदों का अन्त', उनकी परिपूर्ति। इनमें मुख्यत: ज्ञान से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार किया गया है। [[भर्तुमित्र]], जयन्त कृत 'न्यायमंजरी' तथा [[यामुनाचार्य]] के 'सिद्धित्रय' वेदांत आचार्य रहे थे। उपनिषद [[भारत]] के अनेक दार्शनिकों, जिन्हें [[ऋषि]] या [[मुनि]] कहा गया है, के अनेक वर्षों के गम्भीर चिंतन-मनन का परिणाम है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[उपनिषद]]
 
   
 
   
 
{[[महात्मा बुद्ध]] द्वारा दिये गये प्रथम उपदेश को क्या कहा जाता है?
 
{[[महात्मा बुद्ध]] द्वारा दिये गये प्रथम उपदेश को क्या कहा जाता है?
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{{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
 
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samany jnan prashnottari
rajyoan ke samany jnan


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  2. REDIRECTsaancha:nila band itihas praangan, itihas kosh, aitihasik sthan kosh

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1 mahavir ne 'jain sangh' ki sthapana kahaan ki thi?

kundagram
vaishali
pavapuri
varanasi

2 kis videshi doot ne apane ko 'bhagavat' ghoshit kiya tha?

megasthaniz
heliodoras
plootark
uparyukt mean se koee nahian

3 vaidik kalin logoan ne sarvapratham kis dhatu ka prayog kiya?

loha
kaansa
taanba
sona

4 hal sambandhi anushthan ka pahala vyakhyatmak varnan kahaan se mila hai?

gopath brahman mean
shatapath brahman mean
aitarey brahman mean
panchaviansh brahman mean

5 kis ved ki rachana gady evan pady donoan mean ki gee hai?

rrigved
samaved
yajurved
atharvaved

6 'jnanamargi shakha' ke kaviyoan ko kis nam se pukara jata hai?

siddh kavi
nathapanthi kavi
bhakt kavi
sant kavi

7 nimnalikhit mean se kise 'jatoan ka pleto' kaha jata tha?

rajaram
choo daman
soorajamal
badanasianh

9 vedant kise kaha gaya hai?

vedoan ko
aranyakoan ko
brahman granthoan ko
upanishadoan ko

10 mahatma buddh dvara diye gaye pratham upadesh ko kya kaha jata hai?

mahabhinishkraman
dharmachakr pravartan
pratity samutpad
upasanpada

panne par jaean
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samany jnan prashnottari
rajyoan ke samany jnan