पिंगल: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=पिंगल |लेख का नाम=पिंगल (बहुविकल्पी)}} | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=पिंगल |लेख का नाम=पिंगल (बहुविकल्पी)}} | ||
'''पिंगल''' नामक एक भाषा-शैली का जन्म पूर्वी राजस्थान में, [[ब्रज]] क्षेत्रीय भाषा-शैली के उपकरणों को ग्रहण करते हुआ था। इस [[भाषा]] में चारण परंपरा के श्रेष्ठ [[साहित्य]] की रचना हुई। [[राजस्थान]] के अनेक चारण [[कवि|कवियों]] ने इस नाम का उल्लेख किया है। | '''पिंगल''' नामक एक भाषा-शैली का जन्म पूर्वी राजस्थान में, [[ब्रज]] क्षेत्रीय भाषा-शैली के उपकरणों को ग्रहण करते हुआ था। इस [[भाषा]] में [[चारण]] परंपरा के श्रेष्ठ [[साहित्य]] की रचना हुई। [[राजस्थान]] के अनेक चारण [[कवि|कवियों]] ने इस नाम का उल्लेख किया है। | ||
{{tocright}} | {{tocright}} | ||
==उद्भव== | ==उद्भव== | ||
Line 7: | Line 7: | ||
'पिंगल' शब्द [[राजस्थान]] और [[ब्रज]] के सम्मिलित क्षेत्र में विकसित और चारणों में प्रचलित ब्रजी की एक शैली के लिए प्रयुक्त हुआ है। पिंगल का संबंध [[शौरसेनी भाषा|शौरसेनी]] अपभ्रंश और उसके मध्यवर्ती क्षेत्र से है। सूरजमल ने इसका क्षेत्र [[दिल्ली]] और [[ग्वालियर]] के बीच माना है। इस प्रकार पीछे राजस्थान से इस [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] का अनिवार्य लगाव नहीं रहा। यह शब्द '[[ब्रजभाषा]] वाचक हो गया। [[गुरु गोविंद सिंह]] के विचित्र [[नाटक]] में भाषा पिंगल दी कथन मिलता है। इससे इसका ब्रजभाषा से अभेद स्पष्ट हो जाता है। | 'पिंगल' शब्द [[राजस्थान]] और [[ब्रज]] के सम्मिलित क्षेत्र में विकसित और चारणों में प्रचलित ब्रजी की एक शैली के लिए प्रयुक्त हुआ है। पिंगल का संबंध [[शौरसेनी भाषा|शौरसेनी]] अपभ्रंश और उसके मध्यवर्ती क्षेत्र से है। सूरजमल ने इसका क्षेत्र [[दिल्ली]] और [[ग्वालियर]] के बीच माना है। इस प्रकार पीछे राजस्थान से इस [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] का अनिवार्य लगाव नहीं रहा। यह शब्द '[[ब्रजभाषा]] वाचक हो गया। [[गुरु गोविंद सिंह]] के विचित्र [[नाटक]] में भाषा पिंगल दी कथन मिलता है। इससे इसका ब्रजभाषा से अभेद स्पष्ट हो जाता है। | ||
==ब्रजभाषा का प्रभाव== | ==ब्रजभाषा का प्रभाव== | ||
'पिंगल' और '[[डिंगल]]' दोनों ही शैलियों के नाम हैं, भाषाओं के नहीं। 'डिंगल' इससे कुछ भिन्न भाषा-शैली थी। यह भी चारणों में ही विकसित हो रही थी। इसका आधार पश्चिमी राजस्थानी बोलियाँ प्रतीत होती है। 'पिंगल' संभवतः 'डिंगल' की अपेक्षा अधिक परिमार्जित थी और इस पर '[[ब्रजभाषा]]' का अधिक प्रभाव था। इस शैली को '[[अवहट्ठ]]' और '[[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]]' के मिश्रण से उत्पन्न भी माना जा सकता है। '[[पृथ्वीराज रासो]]' जैसी रचनाओं ने इस शैली का गौरव बढ़ाया। | 'पिंगल' और '[[डिंगल]]' दोनों ही शैलियों के नाम हैं, भाषाओं के नहीं। 'डिंगल' इससे कुछ भिन्न भाषा-शैली थी। यह भी [[चारण|चारणों]] में ही विकसित हो रही थी। इसका आधार पश्चिमी राजस्थानी बोलियाँ प्रतीत होती है। 'पिंगल' संभवतः 'डिंगल' की अपेक्षा अधिक परिमार्जित थी और इस पर '[[ब्रजभाषा]]' का अधिक प्रभाव था। इस शैली को '[[अवहट्ठ]]' और '[[राजस्थानी भाषा|राजस्थानी]]' के मिश्रण से उत्पन्न भी माना जा सकता है। '[[पृथ्वीराज रासो]]' जैसी रचनाओं ने इस शैली का गौरव बढ़ाया। | ||
====काव्य शैली==== | ====काव्य शैली==== | ||
'रासो' की [[भाषा]] को इतिहासकारों ने 'ब्रज' या 'पिंगल' माना है। वास्तव में 'पिंगल' ब्रजभाषा पर आधारित एक काव्य शैली थी। यह जनभाषा नहीं थी। इसमें राजस्थानी और [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] का पुट है। ओजपूर्ण शैली की दृष्टि से [[प्राकृत]] या [[अपभ्रंश]] रूपों का भी मिश्रण इसमें किया गया है। इस शैली का निर्माण तो प्राकृत पैंगलम (12वीं-13वीं शती) के समय हो गया था, पर इसका प्रयोग चारण बहुत पीछे के समय तक करते रहे। इस शैली में विदेशी शब्द भी प्रयुक्त होते थे। इस परंपरा में कई रासो ग्रंथ आते हैं। बाद के समय में पिंगल शैली भक्ति साहित्य में संक्रमित हो गई। इस स्थिति में ओजपूर्ण संदर्भों की विशेष संरचना के भाग होकर अथवा पूर्वकालीन भाषा स्थिति के अवशिष्ट के रूप में जो अपभ्रंश के द्वित्व या अन्य रूप मिलते थे, उनमें ह्रास होने लगा। | 'रासो' की [[भाषा]] को इतिहासकारों ने 'ब्रज' या 'पिंगल' माना है। वास्तव में 'पिंगल' ब्रजभाषा पर आधारित एक काव्य शैली थी। यह जनभाषा नहीं थी। इसमें राजस्थानी और [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] का पुट है। ओजपूर्ण शैली की दृष्टि से [[प्राकृत]] या [[अपभ्रंश]] रूपों का भी मिश्रण इसमें किया गया है। इस शैली का निर्माण तो प्राकृत पैंगलम (12वीं-13वीं शती) के समय हो गया था, पर इसका प्रयोग चारण बहुत पीछे के समय तक करते रहे। इस शैली में विदेशी शब्द भी प्रयुक्त होते थे। इस परंपरा में कई रासो ग्रंथ आते हैं। बाद के समय में पिंगल शैली भक्ति साहित्य में संक्रमित हो गई। इस स्थिति में ओजपूर्ण संदर्भों की विशेष संरचना के भाग होकर अथवा पूर्वकालीन भाषा स्थिति के अवशिष्ट के रूप में जो अपभ्रंश के द्वित्व या अन्य रूप मिलते थे, उनमें ह्रास होने लगा। |
Latest revision as of 09:16, 22 July 2014
चित्र:Disamb2.jpg पिंगल | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- पिंगल (बहुविकल्पी) |
पिंगल नामक एक भाषा-शैली का जन्म पूर्वी राजस्थान में, ब्रज क्षेत्रीय भाषा-शैली के उपकरणों को ग्रहण करते हुआ था। इस भाषा में चारण परंपरा के श्रेष्ठ साहित्य की रचना हुई। राजस्थान के अनेक चारण कवियों ने इस नाम का उल्लेख किया है।
उद्भव
डॉ. चटर्जी के अनुसार 'अवह' ही राजस्थान में 'पिंगल' नाम से ख्यात थी। डॉ. तेसीतोरी ने राजस्थान के पूर्वी भाग की भाषा को 'पिंगल अपभ्रंश' नाम दिया। उनके अनुसार इस भाषा से संबंद्ध क्षेत्र में मेवाती, जयपुरी, आलवी आदि बोलियाँ मानी हैं। पूर्वी राजस्थान में, ब्रज क्षेत्रीय भाषा शैली के उपकरणों को ग्रहण करती हुई, पिंगल नामक एक भाषा-शैली का जन्म हुआ, जिसमें चारण- परंपरा के श्रेष्ठ साहित्य की रचना हुई।
'पिंगल' शब्द
'पिंगल' शब्द राजस्थान और ब्रज के सम्मिलित क्षेत्र में विकसित और चारणों में प्रचलित ब्रजी की एक शैली के लिए प्रयुक्त हुआ है। पिंगल का संबंध शौरसेनी अपभ्रंश और उसके मध्यवर्ती क्षेत्र से है। सूरजमल ने इसका क्षेत्र दिल्ली और ग्वालियर के बीच माना है। इस प्रकार पीछे राजस्थान से इस शब्द का अनिवार्य लगाव नहीं रहा। यह शब्द 'ब्रजभाषा वाचक हो गया। गुरु गोविंद सिंह के विचित्र नाटक में भाषा पिंगल दी कथन मिलता है। इससे इसका ब्रजभाषा से अभेद स्पष्ट हो जाता है।
ब्रजभाषा का प्रभाव
'पिंगल' और 'डिंगल' दोनों ही शैलियों के नाम हैं, भाषाओं के नहीं। 'डिंगल' इससे कुछ भिन्न भाषा-शैली थी। यह भी चारणों में ही विकसित हो रही थी। इसका आधार पश्चिमी राजस्थानी बोलियाँ प्रतीत होती है। 'पिंगल' संभवतः 'डिंगल' की अपेक्षा अधिक परिमार्जित थी और इस पर 'ब्रजभाषा' का अधिक प्रभाव था। इस शैली को 'अवहट्ठ' और 'राजस्थानी' के मिश्रण से उत्पन्न भी माना जा सकता है। 'पृथ्वीराज रासो' जैसी रचनाओं ने इस शैली का गौरव बढ़ाया।
काव्य शैली
'रासो' की भाषा को इतिहासकारों ने 'ब्रज' या 'पिंगल' माना है। वास्तव में 'पिंगल' ब्रजभाषा पर आधारित एक काव्य शैली थी। यह जनभाषा नहीं थी। इसमें राजस्थानी और पंजाबी का पुट है। ओजपूर्ण शैली की दृष्टि से प्राकृत या अपभ्रंश रूपों का भी मिश्रण इसमें किया गया है। इस शैली का निर्माण तो प्राकृत पैंगलम (12वीं-13वीं शती) के समय हो गया था, पर इसका प्रयोग चारण बहुत पीछे के समय तक करते रहे। इस शैली में विदेशी शब्द भी प्रयुक्त होते थे। इस परंपरा में कई रासो ग्रंथ आते हैं। बाद के समय में पिंगल शैली भक्ति साहित्य में संक्रमित हो गई। इस स्थिति में ओजपूर्ण संदर्भों की विशेष संरचना के भाग होकर अथवा पूर्वकालीन भाषा स्थिति के अवशिष्ट के रूप में जो अपभ्रंश के द्वित्व या अन्य रूप मिलते थे, उनमें ह्रास होने लगा।
|
|
|
|
|