लक्ष्य और साधना -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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[[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी] | |||
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>लक्ष्य और साधना<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>लक्ष्य और साधना<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
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छोटे पहलवान का लक्ष्य था अपनी अंटी की सुरक्षा करना। इससे कोई मतलब नहीं था कि अंटी में चवन्नी है या हज़ार रुपए और इस लक्ष्य के लिए उसने भीषण लड़ाई लड़ी। इस बार मैंने 'लक्ष्य' और 'साधना' पर कुछ लिखने की कोशिश की है... | छोटे पहलवान का लक्ष्य था अपनी अंटी की सुरक्षा करना। इससे कोई मतलब नहीं था कि अंटी में चवन्नी है या हज़ार रुपए और इस लक्ष्य के लिए उसने भीषण लड़ाई लड़ी। इस बार मैंने 'लक्ष्य' और 'साधना' पर कुछ लिखने की कोशिश की है... | ||
[[स्वामी विवेकानंद]] अक्सर देश-विदेश के दौरे पर रहते थे। जगह-जगह पर उनके भाषण हुआ करते थे। 14-15 वर्ष की कच्ची उम्र के नरेन (विवेकानंद का बचपन का नाम) पर, 1876-78 के समय भारत में पड़े भीषण [[अकाल]] का गहरा असर पड़ा। बाद में भी वर्षों तक अकाल की विभीषिका भारत में अपनी काली छाया से बर्बादी करती रही। विवेकानंद अकाल के समय ध्यान और प्रवचन छोड़ कर अकालग्रस्त लोगों की सहायता करने में लग जाते थे और दिन-रात उसमें लगे रहते थे। एक बार, उनके सम्पर्क के लोगों को एतराज़ हुआ, जिनमें से कुछ संन्यासी भी थे। वो चार-पांच लोग उनके पास आये और उनमें से एक नौजवान संन्यासी ने उनसे कहा- | [[स्वामी विवेकानंद]] अक्सर देश-विदेश के दौरे पर रहते थे। जगह-जगह पर उनके भाषण हुआ करते थे। 14-15 वर्ष की कच्ची उम्र के नरेन (विवेकानंद का बचपन का नाम) पर, 1876-78 के समय भारत में पड़े भीषण [[अकाल]] का गहरा असर पड़ा। बाद में भी वर्षों तक अकाल की विभीषिका भारत में अपनी काली छाया से बर्बादी करती रही। विवेकानंद अकाल के समय ध्यान और प्रवचन छोड़ कर अकालग्रस्त लोगों की सहायता करने में लग जाते थे और दिन-रात उसमें लगे रहते थे। एक बार, उनके सम्पर्क के लोगों को एतराज़ हुआ, जिनमें से कुछ संन्यासी भी थे। वो चार-पांच लोग उनके पास आये और उनमें से एक नौजवान संन्यासी ने उनसे कहा- | ||
"ये आप क्या कर रहे हैं ? स्वामी जी ! ना तो ये आपका लक्ष्य है और ना ही आपका कार्य। आपका लक्ष्य है भारत की संस्कृति से सम्बन्धित प्रवचन देना। सारे देश- | "ये आप क्या कर रहे हैं ? स्वामी जी ! ना तो ये आपका लक्ष्य है और ना ही आपका कार्य। आपका लक्ष्य है भारत की संस्कृति से सम्बन्धित प्रवचन देना। सारे देश-दुनिया में उसे फैलाना और लोगों को जागृत करना। आपने तो ध्यान करना भी बंद कर दिया है।" | ||
"अच्छा ठीक है... आज ध्यान ही करते हैं... तुम सही कह रहो हो, ध्यान करना आवश्यक है।" विवेकानन्द जी ने कहा | "अच्छा ठीक है... आज ध्यान ही करते हैं... तुम सही कह रहो हो, ध्यान करना आवश्यक है।" विवेकानन्द जी ने कहा | ||
जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान संन्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए। वह एकदम उत्तेजित और परेशान हो गया। उसके साथ में जो तीन-चार लोग थे, वह भी एकदम से चौंक गए। वो खड़े हुए और कहने लगे- | जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान संन्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए। वह एकदम उत्तेजित और परेशान हो गया। उसके साथ में जो तीन-चार लोग थे, वह भी एकदम से चौंक गए। वो खड़े हुए और कहने लगे- | ||
"ये आप क्या रहे हैं ? आपने इस तरह से क्यों पीटना शुरू कर दिया ? | "ये आप क्या रहे हैं ? आपने इस तरह से क्यों पीटना शुरू कर दिया ?" | ||
इस पर स्वामी विवेकानंद ने कहा- | |||
"क्या इन परिस्थिति में तुम ध्यान कर सकते हो ? जब मैंने डंडा उठाया तो तुम डंडे से ख़ुद को बचाने में लग गये। ठीक यही स्थिति मेरी है। जब मेरे देश में अकाल पड़ा हुआ है, लोग भूखो मर रहे हैं, यहाँ तक कि ग़रीब स्त्रियों ने अपने बच्चे बेच दिए, लोग भूख की वजह से अपने हाथ खा गये और तुम चाहते हो कि मैं अकाल राहत कार्य छोड़ कर ध्यान, योग और संस्कृति की बातें करूँ ? इस समय मेरा लक्ष्य, लोगों को अकाल से बचाना है और यही है सच्ची 'साधना'" | "क्या इन परिस्थिति में तुम ध्यान कर सकते हो ? जब मैंने डंडा उठाया तो तुम डंडे से ख़ुद को बचाने में लग गये। ठीक यही स्थिति मेरी है। जब मेरे देश में अकाल पड़ा हुआ है, लोग भूखो मर रहे हैं, यहाँ तक कि ग़रीब स्त्रियों ने अपने बच्चे बेच दिए, लोग भूख की वजह से अपने हाथ खा गये और तुम चाहते हो कि मैं अकाल राहत कार्य छोड़ कर ध्यान, योग और संस्कृति की बातें करूँ ? इस समय मेरा लक्ष्य, लोगों को अकाल से बचाना है और यही है सच्ची 'साधना'" | ||
अपनी इन विलक्षणताओं के कारण ही स्वामी विवेकानन्द को आज सम्मानपूर्वक याद किया जाता है। | अपनी इन विलक्षणताओं के कारण ही स्वामी विवेकानन्द को आज सम्मानपूर्वक याद किया जाता है। | ||
साधक, साधना और साध्य; इन तीनों में क्या | साधक, साधना और साध्य; इन तीनों में क्या महत्त्वपूर्ण है ? लक्ष्य क्या होना चाहिए ? फल की इच्छा न करने के लिए गीता में क्यों लिखा है ? | ||
साध्य वह लक्ष्य है, जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं। साधना उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जो कुछ आप कर रहे हैं, वो है। आपके क्रियान्वयन हैं, आपके प्रयास हैं और साधक, साधक आप हैं। क्या महत्त्वपूर्ण है इन तीनों में? हमेशा यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सबसे महत्त्वपूर्ण साधना होती है। लक्ष्य महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण आप भी नहीं हैं। महत्त्वपूर्ण है वह साधना। इस साधना के बल पर ही, आप कुछ रचना कर सकते हैं, कुछ ख़ास बन सकते हैं, महत्त्वपूर्ण बन सकते हैं। इसे समझा कैसे जाए? | साध्य वह लक्ष्य है, जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं। साधना उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जो कुछ आप कर रहे हैं, वो है। आपके क्रियान्वयन हैं, आपके प्रयास हैं और साधक, साधक आप हैं। क्या महत्त्वपूर्ण है इन तीनों में? हमेशा यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सबसे महत्त्वपूर्ण साधना होती है। लक्ष्य महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण आप भी नहीं हैं। महत्त्वपूर्ण है वह साधना। इस साधना के बल पर ही, आप कुछ रचना कर सकते हैं, कुछ ख़ास बन सकते हैं, महत्त्वपूर्ण बन सकते हैं। इसे समझा कैसे जाए? | ||
एक कहावत है "या तो कुछ ऐसा करो कि लोग उस पर लिखें, या कुछ ऐसा लिखो कि लोग उसे पढ़ें"</poem>{{दाँयाबक्सा|पाठ=जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान संन्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए।|विचारक=}} | एक कहावत है "या तो कुछ ऐसा करो कि लोग उस पर लिखें, या कुछ ऐसा लिखो कि लोग उसे पढ़ें"</poem>{{दाँयाबक्सा|पाठ=जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान संन्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए।|विचारक=}} | ||
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इसी में एक प्रसंग और आता है कि अर्जुन ने एक बार रात में खाना खाते हुए ये सोचा- | इसी में एक प्रसंग और आता है कि अर्जुन ने एक बार रात में खाना खाते हुए ये सोचा- | ||
"अभ्यासवश जब मैं बिना देखे रात में खाना खा रहा हूँ। खाना खाना मेरे अभ्यास में है, इसलिए मैं बिना देखे ही थाली में से भोजन को हाथ से उठाता हूँ और मुँह तक ले जाता हूँ। कभी ऐसा नहीं होता कि भोजन आँख में, कान में या नाक में चला जाए, तो उसने सोचा कि रात में तीर चलाने का अभ्यास भी किया जा सकता है। इसलिए धनुष पर तीर रखने तक की प्रक्रिया के लिए अर्जुन को लक्ष्य से ध्यान हटाकर धनुष और बाण की ओर देखने की भी आवश्यकता नहीं थी। | "अभ्यासवश जब मैं बिना देखे रात में खाना खा रहा हूँ। खाना खाना मेरे अभ्यास में है, इसलिए मैं बिना देखे ही थाली में से भोजन को हाथ से उठाता हूँ और मुँह तक ले जाता हूँ। कभी ऐसा नहीं होता कि भोजन आँख में, कान में या नाक में चला जाए, तो उसने सोचा कि रात में तीर चलाने का अभ्यास भी किया जा सकता है। इसलिए धनुष पर तीर रखने तक की प्रक्रिया के लिए अर्जुन को लक्ष्य से ध्यान हटाकर धनुष और बाण की ओर देखने की भी आवश्यकता नहीं थी। | ||
आपका लक्ष्य क्या है, यह सबसे | आपका लक्ष्य क्या है, यह सबसे महत्त्वपूर्ण है। यदि आप युद्ध में हैं, तो लक्ष्य दूसरे को हराना नहीं बल्कि ख़ुद जीतना होना चाहिए। यदि आपका लक्ष्य दूसरे को हारते हुए देखना है, तो आप योद्धा नहीं, एक साधारण से व्यक्ति हैं जो कि बदला लेना चाहता है। यदि ख़ुद को जीतते हुए देखना, आपका लक्ष्य है तो आप सचमुच योद्धा हैं और इतिहास आपको याद रखेगा। अब इसे ऐसे देखें- | ||
[[महात्मा गांधी]] और [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] का एक ही लक्ष्य था, लेकिन तरीक़े अलग थे। क्या था ये लक्ष्य ? अंग्रेज़ों को [[भारत]] से भगाना ? नहीं ऐसा नहीं था। उनका लक्ष्य था, भारत को आज़ाद कराना... स्वतंत्रता। इन दोनों बातों में बड़ा फ़र्क़ है। एक सकारात्मक है और एक नकारात्मक। अंग्रेज़ों को भगाना नकारात्मक है और स्वतंत्रता पाना सकारात्मक। लक्ष्य वही है जो सकारात्मक हो। छात्र जीवन में इस प्रकार की बातें अक्सर हमारे सामने आती हैं। कुछ छात्र लक्ष्य बनाते हैं पास होने का, कुछ बनाते हैं बहुत अच्छे अंक लाने का और जो सर्वश्रेष्ठ होते हैं उनका लक्ष्य होता है 'ज्ञानार्जन'। | [[महात्मा गांधी]] और [[भगत सिंह|सरदार भगत सिंह]] का एक ही लक्ष्य था, लेकिन तरीक़े अलग थे। क्या था ये लक्ष्य ? अंग्रेज़ों को [[भारत]] से भगाना ? नहीं ऐसा नहीं था। उनका लक्ष्य था, भारत को आज़ाद कराना... स्वतंत्रता। इन दोनों बातों में बड़ा फ़र्क़ है। एक सकारात्मक है और एक नकारात्मक। अंग्रेज़ों को भगाना नकारात्मक है और स्वतंत्रता पाना सकारात्मक। लक्ष्य वही है जो सकारात्मक हो। छात्र जीवन में इस प्रकार की बातें अक्सर हमारे सामने आती हैं। कुछ छात्र लक्ष्य बनाते हैं पास होने का, कुछ बनाते हैं बहुत अच्छे अंक लाने का और जो सर्वश्रेष्ठ होते हैं उनका लक्ष्य होता है 'ज्ञानार्जन'। | ||
सिर्फ़ डिग्रियों से नौकरी मिलने का ज़माना अब ख़त्म हो रहा है। आज स्थितियाँ ये हो गई हैं कि बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने डिग्रियाँ देखना बन्द कर दिया है। वो उस फ़ाइल को उठाकर भी नहीं देखते जो आप इंटरव्यू में अपने साथ ले जाते हैं। वो सिर्फ़ आपसे बात करते हैं और कुछ दिन आपको कुछ काम या कोई प्रोजेक्ट दे देते हैं, जो आपको पूरा करके लाना होता है। इससे आपकी योग्यता की पहचान हो जाती है और नौकरी मिल जाती है। ये तभी सम्भव है, जब आपकी साधना पूरी रही हो, आपने पढ़ाई अच्छे ढंग से की हो। जो पढ़ाई केवल नम्बर लाने के लिए नहीं, बल्कि ख़ुद की योग्यता और जानकारी बढ़ाने के लिए की गई हो। | सिर्फ़ डिग्रियों से नौकरी मिलने का ज़माना अब ख़त्म हो रहा है। आज स्थितियाँ ये हो गई हैं कि बड़ी-बड़ी कम्पनियों ने डिग्रियाँ देखना बन्द कर दिया है। वो उस फ़ाइल को उठाकर भी नहीं देखते जो आप इंटरव्यू में अपने साथ ले जाते हैं। वो सिर्फ़ आपसे बात करते हैं और कुछ दिन आपको कुछ काम या कोई प्रोजेक्ट दे देते हैं, जो आपको पूरा करके लाना होता है। इससे आपकी योग्यता की पहचान हो जाती है और नौकरी मिल जाती है। ये तभी सम्भव है, जब आपकी साधना पूरी रही हो, आपने पढ़ाई अच्छे ढंग से की हो। जो पढ़ाई केवल नम्बर लाने के लिए नहीं, बल्कि ख़ुद की योग्यता और जानकारी बढ़ाने के लिए की गई हो। | ||
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इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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Latest revision as of 11:45, 3 August 2017
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश लक्ष्य और साधना -आदित्य चौधरी एक वीरान इलाक़े से छोटे पहलवान गुज़र रहा था। अचानक चार लठैतों ने घेर लिया।
वास्तविक लक्ष्य क्या होता है ? सचिन तेंदुलकर जब खेलने जाते हैं, तो क्या लक्ष्य होता है ? बढ़िया खेलना, देश को जिताना या 100-200 रन बनाना ? यदि देश को जिताना लक्ष्य होता है, तो ध्यान खेल में नहीं लग सकता, 100 रन बनाने का लक्ष्य रहे, तब भी ध्यान खेल में नहीं लगेगा, खेल पर ध्यान देने के लिए तो एकाग्रता से उस गेंद को देखना होता है, जो गेंदबाज़ के हाथ से छूटती है और सचिन के बल्ले तक आती है। गड़बड़ी कहाँ होती है ? जब रनों की संख्या 90 से ऊपर पहुँचती है। इस स्थिति में लक्ष्य 100 रन बनाने का हो जाता है और खेल से ध्यान हट जाता है, फिर गेंद नहीं स्कोर-बोर्ड दिमाग़ में ऊधम मचाने लगता है। इस 90 और 100 के बीच आउट होने की संभावना बढ़ जाती है। |