मंगलवार: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
(12 intermediate revisions by 6 users not shown)
Line 1: Line 1:
*मंगलवार [[सप्ताह]] का एक दिन है।
'''मंगलवार''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mangalwar'' OR ''Tuesday'') [[सप्ताह]] का एक [[दिन]] है। मंगल को 'भौम' भी कहा जाता है। मंगलवार सप्ताह का तीसरा दिन है। मंगलवार [[सोमवार]] के बाद और [[बुधवार]] से पहला दिन है।  
*मंगल को 'भौम' भी कहा जाता है।  
*मंगलवार का नाम 'मंगल' से पड़ा है जिसका अर्थ कुशल होता है, मंगल का अर्थ भगवान [[हनुमान]] से भी माना जाता है ।
*मंगलवार [[सोमवार]] के बाद और [[बुधवार]] से पहला दिन है ।
*[[हिन्दू धर्म]] में मंगल का अर्थ 'पवित्र और शुभ' होता है, अत: हिन्दू मंगलवार को किसी कार्य का प्रारम्भ करने के लिए शुभ मानते हैं ।
*इसदिन [[मंगल देवता|मंगल]] की पूजा की जाती है।
*[[यूनान]] और स्पेन में मंगलवार किसी भी कार्य के लिए अशुभ माना जाता है । उनकी पारम्परिक कहावतों के अनुसार मंगलवार को यात्रा या विवाह नहीं करना चाहिए ।
*मंगलवार का नाम 'मंगल' से पड़ा है जिसका शाब्दिक अर्थ 'कुशल' है।
*जापान में मंगलवार को 'कायोबी' अर्थात् 'आग का दिन' माना जाता है।
*मंगल का अर्थ भगवान 'हनुमान' से भी लगाया जाता है और मंगलवार को हनुमान जी की पूजा की जाती है।
*रोमन केलैंण्डर में 'तीसरे दिन' को मंगल कहा जाता है।
*आथर्वणपरिशिष्ट <ref>(हेमाद्रि, व्रत0 2, 626 में उद्धृत)</ref> के अनुसार [[ब्राह्मण]], गाय, अग्नि, भूमि, सरसों, घी, शमी, चावल एवं जौ आठ शुभ वस्तुएँ हैं।  
*इस दिन [[मंगल देवता|मंगल]] की पूजा की जाती है।
*[[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोणपर्व]] <ref>[[महाभारत]] द्रोणपर्व (127|14)</ref> ने आठ मंगलों का उल्लेख किया है। द्रोणपर्व <ref>द्रोणपर्व (82|20-22)</ref> में लम्बी सूची है।  
*आथर्वणपरिशिष्ट <ref>हेमाद्रि, व्रत0 2, 626 में उद्धृत</ref> के अनुसार [[ब्राह्मण]], गाय, अग्नि, भूमि, सरसों, घी, शमी, चावल एवं जौ आठ शुभ वस्तुएँ हैं।  
*[[वामन पुराण]] <ref>वामनपुराण (14|36-37)</ref> ने शुभ वस्तुओं के रूप में कतिपय वस्तुओं का उल्लेख किया है, जिन्हें घर से बाहर जाते समय छूना चाहिए, यथा– दूर्वा, घृत, ब्राह्मण कुमारियाँ, श्वेत पुष्प, शमी, अग्नि, सूर्य चक्र, चन्दन एवं अश्ववत्थ वृक्ष <ref>(स्मृतिचन्द्रिका 1, पृ0 168 द्वारा उद्धृत)</ref>। <ref>अन्य मंगलमय वस्तुओं के लिए देखिए  पराशर (12|47), विष्णुधर्मोत्तरपुराण (2|163|18)</ref>।
*[[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोणपर्व]] <ref>[[महाभारत]] द्रोणपर्व (127|14</ref> ने आठ मंगलों का उल्लेख किया है। द्रोणपर्व <ref>द्रोणपर्व (82|20-22</ref> में लम्बी सूची है।  
*मंगल का रंग लाल है, अतः ताम्र, लाल एवं कुंकुम का प्रयोग होता है; <ref>हेमाद्रि (व्रत0 2, 567, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)</ref>;  
*[[वामन पुराण]] <ref>वामनपुराण (14|36-37</ref> ने शुभ वस्तुओं के रूप में कतिपय वस्तुओं का उल्लेख किया है, जिन्हें घर से बाहर जाते समय छूना चाहिए, यथा– दूर्वा, घृत, ब्राह्मण कुमारियाँ, श्वेत पुष्प, शमी, अग्नि, सूर्य चक्र, चन्दन एवं अश्ववत्थ वृक्ष <ref>स्मृतिचन्द्रिका 1, पृ0 168 द्वारा उद्धृत</ref>। <ref>अन्य मंगलमय वस्तुओं के लिए देखिए  पराशर (12|47), विष्णुधर्मोत्तरपुराण (2|163|18</ref>।
*मंगल का रंग लाल है, अतः ताम्र, लाल एवं कुंकुम का प्रयोग होता है; <ref>हेमाद्रि (व्रत0 2, 567, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण</ref>;  
*मंगलवार को मंगल पूजा करनी चाहिए।  
*मंगलवार को मंगल पूजा करनी चाहिए।  
*प्रातःकाल मंगल के नामों का जाप (कुल 21 नाम हैं, यथा–मंगल, कुज, लोहित, यम, सामवेदियो के प्रेमी); एक त्रिभुजाकार चित्र, बीच में छेद; कुंकुम एवं लाल चन्दन से प्रत्येक कोण पर तीन नाम (आर, वक्र एवं कुंज) लिखे जाते हैं।  
*प्रातःकाल मंगल के नामों का जाप (कुल 21 नाम हैं, यथा–मंगल, कुज, लोहित, यम, सामवेदियो के प्रेमी); एक त्रिभुजाकार चित्र, बीच में छेद; कुंकुम एवं लाल चन्दन से प्रत्येक कोण पर तीन नाम (आर, वक्र एवं कुंज) लिखे जाते हैं।  
*ऐसी मान्यता है कि मंगल का जन्म [[उज्जयिनी]] में [[भारद्वाज]] कुल में हुआ था और वह मेढ़ा (मेष) की सवारी करता है।  
*ऐसी मान्यता है कि मंगल का जन्म [[उज्जयिनी]] में [[भारद्वाज]] कुल में हुआ था और वह मेढ़ा (मेष) की सवारी करता है।  
*यदि कोई जीवन भर इस व्रत का करे तो वह समृद्धिशाली, पुत्र पौत्रवान हो जाता है और गहों के लोक में पहुँच जाता है; <ref>हेमाद्रि (व्रत0 2, 568-574, पद्मपुराण से उद्धरण)</ref>, <ref>वर्षकृत्यदीपक (443-451) में भौमव्रत तथा व्रतपूजा का विस्तृत उल्लेख है</ref>।  
*यदि कोई जीवन भर इस व्रत का करे तो वह समृद्धिशाली, पुत्र पौत्रवान हो जाता है और गहों के लोक में पहुँच जाता है; <ref>हेमाद्रि (व्रत0 2, 568-574, पद्मपुराण से उद्धरण</ref>, <ref>वर्षकृत्यदीपक (443-451) में भौमव्रत तथा व्रतपूजा का विस्तृत उल्लेख है</ref>।  
{{seealso|भौम व्रत}}
{{seealso|भौम व्रत}}
==कथा==  
==कथा==
वाराह कल्प की बात है। जब [[हिरण्यकशिपु]] का बड़ा भाई [[हिरण्याक्ष]] [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] को चुरा ले गया था और पृथ्वी के उद्धार के लिये भगवान ने [[वराह अवतार की कथा|वाराहवतार]] लिया तथा हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी देवी का उद्धार किया, उस समय भगवान को देखकर पृथ्वी देवी अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उनके मन में भगवान को पति रूप में वरण करने की इच्छा हुई। वाराहावतार के समय भगवान का तेज करोड़ों सूर्यों की तरह असह्य था। पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी की कामना पूर्ण करने के लिये भगवान अपने मनोरम रूप में आ गये और पृथ्वी देवी के साथ दिव्य एक वर्ष तक एकान्त में रहे। उस समय पृथ्वी देवी और भगवान के संयोग से [[मंगल ग्रह]] की उत्पत्ति हुई <ref>[[ब्रह्म वैवर्त पुराण]] 2।8।29 से 43)</ref> इस प्रकार विभिन्न कल्पों में मंगल ग्रह की उत्पत्ति की विभिन्न कथाएँ हैं। पूजा के प्रयोग में इन्हें भारद्वाज गोत्र कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह कथा गणेश पुराण में आयी है।
{{tocright}}
वाराह कल्प की बात है। जब [[हिरण्यकशिपु]] का बड़ा भाई [[हिरण्याक्ष]] [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] को चुरा ले गया था और पृथ्वी के उद्धार के लिये भगवान ने [[वराह अवतार की कथा|वाराहवतार]] लिया तथा हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी देवी का उद्धार किया, उस समय भगवान को देखकर पृथ्वी देवी अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उनके मन में भगवान को पति रूप में वरण करने की इच्छा हुई। वाराहावतार के समय भगवान का तेज़ करोड़ों सूर्यों की तरह असह्य था। पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी की कामना पूर्ण करने के लिये भगवान अपने मनोरम रूप में आ गये और पृथ्वी देवी के साथ दिव्य एक वर्ष तक एकान्त में रहे। उस समय पृथ्वी देवी और भगवान के संयोग से [[मंगल ग्रह]] की उत्पत्ति हुई <ref>[[ब्रह्म वैवर्त पुराण]] 2।8।29 से 43</ref> इस प्रकार विभिन्न कल्पों में मंगल ग्रह की उत्पत्ति की विभिन्न कथाएँ हैं। पूजा के प्रयोग में इन्हें भारद्वाज गोत्र कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह कथा गणेश पुराण में आयी है।


==पुराण में मंगल==  
==पुराण में मंगल==  
Line 21: Line 23:




{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{दिवस}}
{{दिवस}}{{तिथि}}{{काल गणना}}
{{तिथि}}
{{काल गणना}}
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:काल_गणना]]
[[Category:पंचांग]]
[[Category:पंचांग]]
[[Category:कैलंडर]]
[[Category:कैलंडर]]
[[Category:काल गणना]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:57, 7 November 2017

मंगलवार (अंग्रेज़ी: Mangalwar OR Tuesday) सप्ताह का एक दिन है। मंगल को 'भौम' भी कहा जाता है। मंगलवार सप्ताह का तीसरा दिन है। मंगलवार सोमवार के बाद और बुधवार से पहला दिन है।

  • मंगलवार का नाम 'मंगल' से पड़ा है जिसका अर्थ कुशल होता है, मंगल का अर्थ भगवान हनुमान से भी माना जाता है ।
  • हिन्दू धर्म में मंगल का अर्थ 'पवित्र और शुभ' होता है, अत: हिन्दू मंगलवार को किसी कार्य का प्रारम्भ करने के लिए शुभ मानते हैं ।
  • यूनान और स्पेन में मंगलवार किसी भी कार्य के लिए अशुभ माना जाता है । उनकी पारम्परिक कहावतों के अनुसार मंगलवार को यात्रा या विवाह नहीं करना चाहिए ।
  • जापान में मंगलवार को 'कायोबी' अर्थात् 'आग का दिन' माना जाता है।
  • रोमन केलैंण्डर में 'तीसरे दिन' को मंगल कहा जाता है।
  • इस दिन मंगल की पूजा की जाती है।
  • आथर्वणपरिशिष्ट [1] के अनुसार ब्राह्मण, गाय, अग्नि, भूमि, सरसों, घी, शमी, चावल एवं जौ आठ शुभ वस्तुएँ हैं।
  • द्रोणपर्व [2] ने आठ मंगलों का उल्लेख किया है। द्रोणपर्व [3] में लम्बी सूची है।
  • वामन पुराण [4] ने शुभ वस्तुओं के रूप में कतिपय वस्तुओं का उल्लेख किया है, जिन्हें घर से बाहर जाते समय छूना चाहिए, यथा– दूर्वा, घृत, ब्राह्मण कुमारियाँ, श्वेत पुष्प, शमी, अग्नि, सूर्य चक्र, चन्दन एवं अश्ववत्थ वृक्ष [5][6]
  • मंगल का रंग लाल है, अतः ताम्र, लाल एवं कुंकुम का प्रयोग होता है; [7];
  • मंगलवार को मंगल पूजा करनी चाहिए।
  • प्रातःकाल मंगल के नामों का जाप (कुल 21 नाम हैं, यथा–मंगल, कुज, लोहित, यम, सामवेदियो के प्रेमी); एक त्रिभुजाकार चित्र, बीच में छेद; कुंकुम एवं लाल चन्दन से प्रत्येक कोण पर तीन नाम (आर, वक्र एवं कुंज) लिखे जाते हैं।
  • ऐसी मान्यता है कि मंगल का जन्म उज्जयिनी में भारद्वाज कुल में हुआ था और वह मेढ़ा (मेष) की सवारी करता है।
  • यदि कोई जीवन भर इस व्रत का करे तो वह समृद्धिशाली, पुत्र पौत्रवान हो जाता है और गहों के लोक में पहुँच जाता है; [8], [9]
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

कथा

वाराह कल्प की बात है। जब हिरण्यकशिपु का बड़ा भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा ले गया था और पृथ्वी के उद्धार के लिये भगवान ने वाराहवतार लिया तथा हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी देवी का उद्धार किया, उस समय भगवान को देखकर पृथ्वी देवी अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उनके मन में भगवान को पति रूप में वरण करने की इच्छा हुई। वाराहावतार के समय भगवान का तेज़ करोड़ों सूर्यों की तरह असह्य था। पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी की कामना पूर्ण करने के लिये भगवान अपने मनोरम रूप में आ गये और पृथ्वी देवी के साथ दिव्य एक वर्ष तक एकान्त में रहे। उस समय पृथ्वी देवी और भगवान के संयोग से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई [10] इस प्रकार विभिन्न कल्पों में मंगल ग्रह की उत्पत्ति की विभिन्न कथाएँ हैं। पूजा के प्रयोग में इन्हें भारद्वाज गोत्र कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह कथा गणेश पुराण में आयी है।

पुराण में मंगल

मंगल ग्रह की पूजा की पुराणों में बड़ी महिमा बतायी गयी है। यह प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल व्रत में ताम्रपत्र पर भौमयन्त्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर पूजा करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। यह अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्रगति से न चलें तो एक-एक राशि को तीन-तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को डेढ़ वर्ष में पार करते हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि, व्रत0 2, 626 में उद्धृत
  2. महाभारत द्रोणपर्व (127|14
  3. द्रोणपर्व (82|20-22
  4. वामनपुराण (14|36-37
  5. स्मृतिचन्द्रिका 1, पृ0 168 द्वारा उद्धृत
  6. अन्य मंगलमय वस्तुओं के लिए देखिए पराशर (12|47), विष्णुधर्मोत्तरपुराण (2|163|18
  7. हेमाद्रि (व्रत0 2, 567, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण
  8. हेमाद्रि (व्रत0 2, 568-574, पद्मपुराण से उद्धरण
  9. वर्षकृत्यदीपक (443-451) में भौमव्रत तथा व्रतपूजा का विस्तृत उल्लेख है
  10. ब्रह्म वैवर्त पुराण 2।8।29 से 43

संबंधित लेख