राखी -नज़ीर अकबराबादी: Difference between revisions

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मैं अपने हाथ से प्यारे के बाँधूँ प्यार की राखी ।।3।।
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       हुई है ज़ेबो ज़ीनत<ref>शृंगार और सजावट</ref>और ख़ूबाँ<ref>सुंदर स्त्रियाँ</ref> को तो राखी से ।
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       व लेकिन तुमसे अब जान और कुछ राखी के गुल फूले ।
       व लेकिन तुमसे अब जान और कुछ राखी के गुल फूले ।
       दिवानी बुलबुलें हों देख गुल चुनने लगीं तिनके ।
       दिवानी बुलबुलें हों देख गुल चुनने लगीं तिनके ।

Latest revision as of 07:59, 7 November 2017

राखी -नज़ीर अकबराबादी
कवि नज़ीर अकबराबादी
जन्म 1735
जन्म स्थान दिल्ली
मृत्यु 1830
मुख्य रचनाएँ बंजारानामा, दूर से आये थे साक़ी, फ़क़ीरों की सदा, है दुनिया जिसका नाम आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
नज़ीर अकबराबादी की रचनाएँ

चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी ।
सुनहरी, सब्ज़, रेशम, ज़र्द और गुलनार[1] की राखी ।
बनी है गो[2] कि नादिर[3] ख़ूब हर सरदार की राखी ।
सलूनों में अजब रंगीं है उस दिलदार[4] की राखी ।
न पहुँचे एक गुल[5] को यार जिस गुलज़ार[6] की राखी ।।1।।

       अयाँ[7] है अब तो राखी भी, चमन भी, गुल भी, शबनम[8] भी ।
       झमक जाता है मोती और झलक जाता है रेशम भी ।
       तमाशा है अहा ! हा ! हा गनीमत है यह आलम भी ।
       उठाना हाथ, प्यारे वाह वा टुक देख लें हम भी ।
       तुम्हारी मोतियों की और ज़री[9] के तार की राखी ।।2।।

मची है हर तरफ़ क्या क्या सलूनों की बहार अब तो ।
हर एक गुलरू[10] फिरे है राखी बाँधे हाथ में ख़ुश हो ।
हवस[11] जो दिल में गुज़रे है कहूँ क्या आह में तुमको ।
यही आता है जी में बनके बाम्हन आज तो यारो ।
मैं अपने हाथ से प्यारे के बाँधूँ प्यार की राखी ।।3।।

       हुई है ज़ेबो ज़ीनत[12]और ख़ूबाँ[13] को तो राखी से ।
       व लेकिन तुमसे अब जान और कुछ राखी के गुल फूले ।
       दिवानी बुलबुलें हों देख गुल चुनने लगीं तिनके ।
       तुम्हारे हाथ ने मेंहदी ने अंगश्तो[14] ने नाख़ुन ने ।
       गुलिस्ताँ[15] की, चमन[16] की, बाग़ की गुलज़ार[17] की राखी ।।4।।

अदा से हाथ उठने में गुले राखी जो हिलते हैं ।
कलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं ।
कहाँ नाज़ुक यह पहुँचे और कहाँ यह रंग मिलते हैं ।
चमन में शाख़ पर कब इस तरह के फूल खिलते हैं ।
जो कुछ ख़ूबी में है उस शोख़ गुल रुख़सार[18] की राखी ।।5।।

       फिरें हैं राखियाँ बाँधे जो हर दम हुस्न के मारे ।
       तो उनकी राखियों को देख ऐ ! जाँ ! चाव के मारे ।
       पहन ज़ुन्नार[19] और क़श्क़ः[20] लगा माथे ऊपर बारे ।
       ’नज़ीर’ आया है बाम्हन बनके राखी बाँधने प्यारे ।
        बँधा लो उससे तुम हँसकर अब इस त्यौहार की राखी ।।6।।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनार का फूल
  2. यद्यपि
  3. अद्भुत्त
  4. प्रेमपात्र
  5. फूल
  6. बाग़
  7. प्रकट
  8. ओस
  9. सोने चाँदी के तार
  10. फूल जैसे सुंदर और सुकुमार मुख वाली नायिका
  11. लालसा
  12. श्रृंगार और सजावट
  13. सुंदर स्त्रियाँ
  14. उँगलियाँ
  15. बाग़
  16. बाग़
  17. रौनकदार
  18. कपोल
  19. यज्ञोपवीत
  20. तिलक

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