बालपन-बाँसुरी बजैया का -नज़ीर अकबराबादी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Nazeer-Akbarabadi....' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 34: Line 34:
मोहन-सरूप निरत करैया का बालपन ।
मोहन-सरूप निरत करैया का बालपन ।
बन-बन के ग्‍वाल गौएँ चरैया का बालपन ।।
बन-बन के ग्‍वाल गौएँ चरैया का बालपन ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।1।।  
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।1।।  


       ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे ।  
       ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे ।  
Line 42: Line 41:
       परदे में बालपन के यह उनके मिलाप थे ।  
       परदे में बालपन के यह उनके मिलाप थे ।  
       जोती सरूप कहिए जिन्‍हें सो वह आप थे ।।  
       जोती सरूप कहिए जिन्‍हें सो वह आप थे ।।  
             ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
             ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
             क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।2।।  
             क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।2।।  
Line 50: Line 48:
मालिक थे वो तो आपी उन्‍हें बालपन से क्‍या ।  
मालिक थे वो तो आपी उन्‍हें बालपन से क्‍या ।  
वाँ बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक सा ।।
वाँ बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक सा ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।3।।  
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।3।।  


       मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ याँ सरे ।
       मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ याँ सरे ।
Line 65: Line 62:
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए ।  
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए ।  
इक यह भी लहर थी कि जहाँ को जता गए ।।  
इक यह भी लहर थी कि जहाँ को जता गए ।।  
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।5।।  
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।5।।  


       यूँ बालपन तो होता है हर तिफ़्ल का भला ।
       यूँ बालपन तो होता है हर तिफ़्ल का भला ।
Line 80: Line 76:
आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे ।
आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे ।
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे ।।
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।7।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।7।।


       वह बालपन में देखते जिधर नज़र उठा ।
       वह बालपन में देखते जिधर नज़र उठा ।
Line 95: Line 90:
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका ।
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका ।
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था ।।  
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था ।।  
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।9।।  
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।9।।  


       मोहन, मदन, गोपाल, हरी, बंस, मन हरन ।
       मोहन, मदन, गोपाल, हरी, बंस, मन हरन ।
Line 110: Line 104:
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार ।
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार ।
माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार ।।
माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।11।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।11।।


       जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल ब्रज राज ।
       जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल ब्रज राज ।
Line 125: Line 118:
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बँटते थे ।
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बँटते थे ।
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे ।।
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।13।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।13।।


       अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयाँ करूँ ।
       अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयाँ करूँ ।
Line 140: Line 132:
बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल ।
बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल ।
अकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल ।।
अकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।15।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।15।।


       थी उनकी चाल की जो अ़जब, यारो चाल-ढाल ।
       थी उनकी चाल की जो अ़जब, यारो चाल-ढाल ।
Line 155: Line 146:
जाता था होश देख के शाही वज़ीर का ।
जाता था होश देख के शाही वज़ीर का ।
मैं किस तरह कहूँ इसे चॊरा अहीर का ।।  
मैं किस तरह कहूँ इसे चॊरा अहीर का ।।  
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।17।।  
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।17।।  


       जब पाँवों चलने लागे बिहारी न किशोर ।
       जब पाँवों चलने लागे बिहारी न किशोर ।
Line 170: Line 160:
माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल ।
माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल ।
की अपनी दधि की चोरी घर घर में धूम डाल ।।
की अपनी दधि की चोरी घर घर में धूम डाल ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।19।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।19।।


       थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा ।
       थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा ।
Line 185: Line 174:
ऊँचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना ।
ऊँचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना ।
पहुँचा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना ।।
पहुँचा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।21।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।21।।


       गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ ।
       गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ ।
Line 200: Line 188:
चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा ।
चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा ।
हर तरह वाँ से भाग निकलते उड़ा छुड़ा ।।
हर तरह वाँ से भाग निकलते उड़ा छुड़ा ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।23।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।23।।


       ग़ुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर ।
       ग़ुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर ।
Line 215: Line 202:
ज़ाहिर में उनके हाथ से वह ग़ुल मचाती थीं ।
ज़ाहिर में उनके हाथ से वह ग़ुल मचाती थीं ।
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं ।।
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।25।।  
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।25।।  


       कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाएँगे ।
       कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाएँगे ।
Line 230: Line 216:
देता है हमको गालियाँ फिर फाड़ता है चीर ।
देता है हमको गालियाँ फिर फाड़ता है चीर ।
छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर ।।
छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।27।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।27।।


       माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियाँ ।
       माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियाँ ।
Line 245: Line 230:
आप ही मुझे रुठातीं हैं आपी मनाती हैं ।
आप ही मुझे रुठातीं हैं आपी मनाती हैं ।
मारो इन्हें ये मुझको बहुत सा सताती हैं ।।
मारो इन्हें ये मुझको बहुत सा सताती हैं ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।29।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।29।।


       माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं ।
       माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं ।
Line 260: Line 244:
मुँह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया ।
मुँह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया ।
एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया ।
एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया ।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।31।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।31।।


       थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह ।
       थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह ।
Line 275: Line 258:
दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै ।
दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै ।
तुम भी 'नज़ीर' किशन बिहारी की बोलो जै ।।
तुम भी 'नज़ीर' किशन बिहारी की बोलो जै ।।
 
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।  
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।33।।
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।33।।
</poem>
</poem>
{{Poemclose}}
{{Poemclose}}

Latest revision as of 12:21, 27 December 2012

बालपन-बाँसुरी बजैया का -नज़ीर अकबराबादी
कवि नज़ीर अकबराबादी
जन्म 1735
जन्म स्थान दिल्ली
मृत्यु 1830
मुख्य रचनाएँ बंजारानामा, दूर से आये थे साक़ी, फ़क़ीरों की सदा, है दुनिया जिसका नाम आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
नज़ीर अकबराबादी की रचनाएँ

यारो सुनो ! ये दधि के लुटैया का बालपन ।
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।
मोहन-सरूप निरत करैया का बालपन ।
बन-बन के ग्‍वाल गौएँ चरैया का बालपन ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।1।।

      ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे ।
      वरना वह आप माई थे और आप बाप थे ।।
      परदे में बालपन के यह उनके मिलाप थे ।
      जोती सरूप कहिए जिन्‍हें सो वह आप थे ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।2।।

उनको तो बालपन से न था काम कुछ ज़रा ।
संसार की जो रीति थी उसको रखा बचा ।।
मालिक थे वो तो आपी उन्‍हें बालपन से क्‍या ।
वाँ बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक सा ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।3।।

      मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ याँ सरे ।
      चाहे वह नंगे पाँव फिरे या मुकुट धरे ।।
      सब रूप हैं उसी के वह जो चाहे सो करे ।
      चाहे जवाँ हो, चाहे लड़कपन से मन हरे ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।4।।

बाले हो ब्रज राज जो दुनियाँ में आ गए ।
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गए ।।
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए ।
इक यह भी लहर थी कि जहाँ को जता गए ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।5।।

      यूँ बालपन तो होता है हर तिफ़्ल का भला ।
      पर उनके बालपन में तो कुछ और भेद था ।।
      इस भेद की भला जी, किसी को ख़बर है क्या ।
      क्या जाने अपने खेलने आए थे क्या कला ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।6।।

राधारमन तो यारो अजब जायेगौर थे ।
लड़कों में वह कहाँ है, जो कुछ उनमें तौर थे ।।
आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे ।
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।7।।

      वह बालपन में देखते जिधर नज़र उठा ।
      पत्थर भी एक बार तो बन जाता मोम सा ।।
      उस रूप को ज्ञानी कोई देखता जो आ ।
      दंडवत ही वह करता था माथा झुका झुका ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।8।।
 
परदा न बालपन का वह करते अगर ज़रा ।
क्‍या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता ।।
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका ।
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।9।।

      मोहन, मदन, गोपाल, हरी, बंस, मन हरन ।
      बलिहारी उनके नाम पै मेरा यह तन बदन ।।
      गिरधारी, नंदलाल, हरि नाथ, गोवरधन ।
      लाखों किए बनाव, हज़ारों किए जतन ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।10।।

पैदा तो मधु पुरी में हुए श्याम जी मुरार ।
गोकुल में आके नन्द के घर में लिया क़रार ।।
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार ।
माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।11।।

      जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल ब्रज राज ।
      सबके गले के कठुले थे और सबके सर के ताज ।।
      सुन्दर जो नारियाँ थीं वे करती थीं कामो-काज ।
      रसिया का उन दिनों तो अजब रस का था मिज़ाज ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।12।।

बदशक्ल से तो रोके सदा दूर हटते थे ।
और ख़ूबरू को देखके हँस-हँस चिमटते थे ।।
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बँटते थे ।
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।13।।

      अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयाँ करूँ ।
      या मीठी बातें मुँह से निकलना बयाँ करूँ ।।
      या बालकों में इस तरह से पलना बयाँ करूँ ।
      या गोदियों में उनका मचलना बयाँ करूँ ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।14।।
 
पाटी पकड़ के चलने लगे जब मदन गोपाल ।
धरती तमाम हो गई एक आन में निहाल ।।
बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल ।
अकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।15।।

      थी उनकी चाल की जो अ़जब, यारो चाल-ढाल ।
      पाँवों में घुंघरू बाजते, सर पर झंडूले बाल ।।
      चलते ठुमक-ठुमक के जो वह डगमगाती चाल ।
      थांबे कभी जसोदा कभी नन्द लें संभाल ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।16।।

पहने झगा गले में जो वह दखिनी चीर का ।
गहने में भर रहा गोया लड़का अमीर का ।।
जाता था होश देख के शाही वज़ीर का ।
मैं किस तरह कहूँ इसे चॊरा अहीर का ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।17।।

      जब पाँवों चलने लागे बिहारी न किशोर ।
      माखन उचक्के ठहरे, मलाई दही के चोर ।।
      मुँह हाथ दूध से भरे कपड़े भी शोर-बोर ।
      डाला तमाम ब्रज की गलियों में अपना शोर ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।18।।

करने लगे यह धूम, जो गिरधारी नन्द लाल ।
इक आप और दूसरे साथ उनके ग्वाल बाल ।।
माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल ।
की अपनी दधि की चोरी घर घर में धूम डाल ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।19।।

      थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा ।
      जिस घर को ख़ाली देखा उसी घर में जा फिरा ।।
      माखन मलाई, दूध, जो पाया सो खा लिया ।
      कुछ खाया, कुछ ख़राब किया, कुछ गिरा दिया ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।20।।

कोठी में होवे फिर तो उसी को ढंढोरना ।
गोली में हो तो उसमें भी जा मुँह को बोरना ।।
ऊँचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना ।
पहुँचा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।21।।

      गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ ।
      और उसने आ पकड़ लिया तो उससे बोले हाँ ।।
      मैं तो तेरे दही की उड़ाता था मक्खियाँ ।
      खाता नहीं मैं उसकी निकाले था चूँटियाँ ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।22।।

गर मारने को हाथ उठाती कोई ज़रा ।
तो उसकी अंगिया फाड़ते घूसे लगा-लगा ।।
चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा ।
हर तरह वाँ से भाग निकलते उड़ा छुड़ा ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।23।।

      ग़ुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर ।
      तो उसको वह सरूप दिखाते थे मुरलीधर ।।
      जो आपी लाके धरती वह माखन कटोरी भर ।
      ग़ुस्सा वह उनका आन में जाता वहीं उतर ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।24।।

उनको तो देख ग्वालिनें जी जान पाती थीं ।
घर में इसी बहाने से उनको बुलाती थीं ।।
ज़ाहिर में उनके हाथ से वह ग़ुल मचाती थीं ।
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।25।।

      कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाएँगे ।
      श्रीकिशन इसी बहाने हमें मुँह दिखाएँगे ।।
      और जो हमारे घर में यह माखन न पाएँगे ।
      तो उनको क्या गरज़ है यह काहे को आएँगे ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।26।।

सब मिल जसोदा पास यह कहती थी आके बीर ।
अब तो तुम्हारा कान्ह हुआ है बड़ा शरीर ।।
देता है हमको गालियाँ फिर फाड़ता है चीर ।
छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।27।।

      माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियाँ ।
      और कान्ह को डराती उठा बन की साँटियाँ ।।
      जब कान्हा जी जसोदा से करते यही बयाँ ।
      तुम सच न जानो माता, यह सारी हैं झूटियाँ ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।28।।

माता कभी यह मेरी छुंगलियाँ छुपाती हैं ।
जाता हूँ राह में तो मुझे छेड़ जाती हैं ।।
आप ही मुझे रुठातीं हैं आपी मनाती हैं ।
मारो इन्हें ये मुझको बहुत सा सताती हैं ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।29।।

      माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं ।
      गाने में अपने साथ मुझे भी गवाती हैं ।।
      सब नाचती हैं आप मुझे भी नचाती हैं ।
      आप ही तुम्हारे पास यह फ़रयादी आती हैं ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।30।।

एक रोज़ मुँह में कान्ह ने माखन झुका दिया ।
पूछा जसोदा ने तो वहीं मुँह बना दिया ।।
मुँह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया ।
एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया ।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।31।।

      थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह ।
      मोहन नवल किशोर की थी सबके दिल में चाह ।।
      उनको जो देखता था सो कहता था वाह-वाह ।
      ऐसा तो बालपन न हुआ है किसी का आह ।।
            ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
            क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।32।।

सब मिलकर यारो किशन मुरारी की बोलो जै ।
गोबिन्द छैल कुंज बिहारी की बोलो जै ।।
दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै ।
तुम भी 'नज़ीर' किशन बिहारी की बोलो जै ।।
      ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन ।
      क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।33।।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख