बटेश्वर उत्तर प्रदेश: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
Line 9: Line 9:
[[अकबर]] के समय में यहाँ भदौरिया राजपूत राज्य करते थे। कहा जाता है कि एक बार राजा बदनसिंह जो यहाँ के तत्कालीन शासक थे, अकबर से मिलने आए और उसे बटेश्वर आने का निमंत्रण देते समय भूल से यह कह गए कि आगरे से बटेश्वर पहुँचने में [[यमुना नदी|यमुना]] को नहीं पार करना पड़ता, जो वस्तु स्थिति के विपरीत था। घर लौटने पर उन्हें अपनी भूल मालूम हुई, क्योंकि आगरे से बिना यमुना पार किए बटेश्वर नहीं पहुँचा जा सकता था। राजा बदनसिंह बड़ी चिन्ता में पड़ गए और भय से कहीं सम्राट के सामने झुठा न बनना पड़े, उन्होंने यमुना की धारा को पूर्व से पश्चिम की ओर मुड़वा कर उसे बटेश्वर के दूसरी ओर कर दिया और इसलिए की नगर को यमुना की धारा से हानि न पहुँचे, एक मील लम्बे, अत्यन्त सुदृढ़ और पक्के घाटों का नदी तट पर निर्माण करवाया।  
[[अकबर]] के समय में यहाँ भदौरिया राजपूत राज्य करते थे। कहा जाता है कि एक बार राजा बदनसिंह जो यहाँ के तत्कालीन शासक थे, अकबर से मिलने आए और उसे बटेश्वर आने का निमंत्रण देते समय भूल से यह कह गए कि आगरे से बटेश्वर पहुँचने में [[यमुना नदी|यमुना]] को नहीं पार करना पड़ता, जो वस्तु स्थिति के विपरीत था। घर लौटने पर उन्हें अपनी भूल मालूम हुई, क्योंकि आगरे से बिना यमुना पार किए बटेश्वर नहीं पहुँचा जा सकता था। राजा बदनसिंह बड़ी चिन्ता में पड़ गए और भय से कहीं सम्राट के सामने झुठा न बनना पड़े, उन्होंने यमुना की धारा को पूर्व से पश्चिम की ओर मुड़वा कर उसे बटेश्वर के दूसरी ओर कर दिया और इसलिए की नगर को यमुना की धारा से हानि न पहुँचे, एक मील लम्बे, अत्यन्त सुदृढ़ और पक्के घाटों का नदी तट पर निर्माण करवाया।  


बटेश्वर के घाट इसी कारण प्रसिद्ध हैं कि उनकी लम्बी श्रेणी अविच्छिन्नरूप से दूर तक चली गई है। उनमें [[बनारस]] की भाँति बीच-बीच में रिक्त नहीं दिखलाई पड़ता। बटेश्वर के घाटों पर स्थित मन्दिरों की संख्या 101 है। यमुना की धारा को मोड़ देने के कारण 19 मील का चक्कर पड़ गया है। [[भदोरिया वंश]] के पतन के पश्चात बटेश्वर में 17वीं शती में मराठों का आधिपत्य स्थापित हुआ। इस काल में [[संस्कृत]] विद्या का यहाँ पर अधिक प्रचलन था। जिसके कारण बटेश्वर को छोटी काशी भी कहा जाता है। पानीपत के तृतीय युद्ध (1761 ई.) के पश्चात्त वीरगति पाने वाले मराठों को नारूशंकर नामक सरदार ने इसी स्थान पर श्रद्धांजलि दी थी और उनकी स्मृति में एक विशाल मन्दिर भी बनवाया था, जो कि आज भी विद्यमान है। शौरीपुर के सिद्धि क्षेत्र की खुदाई में अनेक वैष्णव और जैन मन्दिरों के ध्वंसावशेष तथा मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ के वर्तमान शिव मन्दिर बड़े विशाल एवं भव्य हैं। एक मन्दिर में स्वर्णाभूषणों से अलंकृत पार्वती की 6 फुट ऊँची मूर्ति है, जिसकी गणना [[भारत]] की सुन्दरतम मूर्तियों में की जाती है।
बटेश्वर के घाट इसी कारण प्रसिद्ध हैं कि उनकी लम्बी श्रेणी अविच्छिन्नरूप से दूर तक चली गई है। उनमें [[बनारस]] की भाँति बीच-बीच में रिक्त नहीं दिखलाई पड़ता। बटेश्वर के घाटों पर स्थित मन्दिरों की संख्या 101 है। यमुना की धारा को मोड़ देने के कारण 19 मील का चक्कर पड़ गया है। [[भदोरिया वंश]] के पतन के पश्चात बटेश्वर में 17वीं शती में [[मराठा|मराठों]] का आधिपत्य स्थापित हुआ। इस काल में [[संस्कृत]] विद्या का यहाँ पर अधिक प्रचलन था। जिसके कारण बटेश्वर को छोटी काशी भी कहा जाता है। [[पानीपत युद्ध तृतीय|पानीपत के तृतीय युद्ध]] (1761 ई.) के पश्चात्त वीरगति पाने वाले मराठों को नारूशंकर नामक सरदार ने इसी स्थान पर श्रद्धांजलि दी थी और उनकी स्मृति में एक विशाल मन्दिर भी बनवाया था, जो कि आज भी विद्यमान है। शौरीपुर के सिद्धि क्षेत्र की खुदाई में अनेक वैष्णव और जैन मन्दिरों के ध्वंसावशेष तथा मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ के वर्तमान शिव मन्दिर बड़े विशाल एवं भव्य हैं। एक मन्दिर में स्वर्णाभूषणों से अलंकृत [[पार्वती]] की 6 फुट ऊँची मूर्ति है, जिसकी गणना [[भारत]] की सुन्दरतम मूर्तियों में की जाती है।
 
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
[[Category:उत्तर_प्रदेश_के_ऐतिहासिक_नगर]][[Category:उत्तर_प्रदेश_के_ऐतिहासिक_स्थान]][[Category:उत्तर_प्रदेश_के_नगर]][[Category:उत्तर_प्रदेश]]__INDEX__
[[Category:उत्तर_प्रदेश_के_ऐतिहासिक_नगर]][[Category:उत्तर_प्रदेश_के_ऐतिहासिक_स्थान]][[Category:उत्तर_प्रदेश_के_नगर]][[Category:उत्तर_प्रदेश]]__INDEX__

Revision as of 06:15, 17 January 2011

बटेश्वर आगरा, उत्तर प्रदेश से 44 मील और शिकोहाबाद से 13 मील दूर यह प्राचीन क़स्बा यमुनातट पर बसा हुआ है। यह ब्रजमण्डल की चौरासी कोस की यात्रा के अंतर्गत आता है। इसका पुराना नाम शौरिपुर है।

ग्रन्थों के अनुसार

  • किंवदन्ती के अनुसार यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण के पितामह राजा शूरसेन की राजधानी थी। (शौरि कृष्ण का भी नाम है)। जरासंध ने जब मथुरा पर आक्रमण किया तो यह स्थान भी नष्ट-भ्रष्ट हो गया था।
  • बटेश्वर-महात्म्य के अनुसार महाभारत युद्ध के समय बलभद्र विरक्त होकर इस स्थान पर तीर्थ यात्रा के लिए आए थे।
  • यह भी लोकश्रुति है कि कंस का मृत शरीर बहते हुए बटेश्वर में आकर कंस किनारा नामक स्थान पर ठहर गया था। बटेश्वर को ब्रजभाषा का मूल उदगम और केन्द्र माना जाता है।
  • जैनों के 22वें तीर्थकर स्वामी नेमिनाथ का जन्म स्थल शौरिपुर ही माना जाता है। जैनमुनि गर्भकल्याणक तथा जन्म-कल्याणक का इसी स्थान पर निर्वाण हुआ था, ऐसी जैन परम्परा भी यहाँ प्रचलित है।

इतिहास

अकबर के समय में यहाँ भदौरिया राजपूत राज्य करते थे। कहा जाता है कि एक बार राजा बदनसिंह जो यहाँ के तत्कालीन शासक थे, अकबर से मिलने आए और उसे बटेश्वर आने का निमंत्रण देते समय भूल से यह कह गए कि आगरे से बटेश्वर पहुँचने में यमुना को नहीं पार करना पड़ता, जो वस्तु स्थिति के विपरीत था। घर लौटने पर उन्हें अपनी भूल मालूम हुई, क्योंकि आगरे से बिना यमुना पार किए बटेश्वर नहीं पहुँचा जा सकता था। राजा बदनसिंह बड़ी चिन्ता में पड़ गए और भय से कहीं सम्राट के सामने झुठा न बनना पड़े, उन्होंने यमुना की धारा को पूर्व से पश्चिम की ओर मुड़वा कर उसे बटेश्वर के दूसरी ओर कर दिया और इसलिए की नगर को यमुना की धारा से हानि न पहुँचे, एक मील लम्बे, अत्यन्त सुदृढ़ और पक्के घाटों का नदी तट पर निर्माण करवाया।

बटेश्वर के घाट इसी कारण प्रसिद्ध हैं कि उनकी लम्बी श्रेणी अविच्छिन्नरूप से दूर तक चली गई है। उनमें बनारस की भाँति बीच-बीच में रिक्त नहीं दिखलाई पड़ता। बटेश्वर के घाटों पर स्थित मन्दिरों की संख्या 101 है। यमुना की धारा को मोड़ देने के कारण 19 मील का चक्कर पड़ गया है। भदोरिया वंश के पतन के पश्चात बटेश्वर में 17वीं शती में मराठों का आधिपत्य स्थापित हुआ। इस काल में संस्कृत विद्या का यहाँ पर अधिक प्रचलन था। जिसके कारण बटेश्वर को छोटी काशी भी कहा जाता है। पानीपत के तृतीय युद्ध (1761 ई.) के पश्चात्त वीरगति पाने वाले मराठों को नारूशंकर नामक सरदार ने इसी स्थान पर श्रद्धांजलि दी थी और उनकी स्मृति में एक विशाल मन्दिर भी बनवाया था, जो कि आज भी विद्यमान है। शौरीपुर के सिद्धि क्षेत्र की खुदाई में अनेक वैष्णव और जैन मन्दिरों के ध्वंसावशेष तथा मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ के वर्तमान शिव मन्दिर बड़े विशाल एवं भव्य हैं। एक मन्दिर में स्वर्णाभूषणों से अलंकृत पार्वती की 6 फुट ऊँची मूर्ति है, जिसकी गणना भारत की सुन्दरतम मूर्तियों में की जाती है।

संबंधित लेख