वाराणसी की नदियाँ: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "खतरा" to "ख़तरा") |
||
Line 3: | Line 3: | ||
[[चित्र:Ganga-River-Varanasi.jpg|[[गंगा नदी]], वाराणसी|thumb|250px]] | [[चित्र:Ganga-River-Varanasi.jpg|[[गंगा नदी]], वाराणसी|thumb|250px]] | ||
{{मुख्य|गंगा नदी}} | {{मुख्य|गंगा नदी}} | ||
गंगा का वाराणसी की प्राकृतिक रचना में मुख्य स्थान है। गंगा वाराणसी में गंगापुर के बेतवर गाँव से पहले घुसती है। यहाँ पर इससे सुबहा नाला आ मिला है। वाराणसी को वहाँ से प्राय: सात मील तक गंगा मिर्ज़ापुर ज़िले से अलग करती है और इसके बाद वाराणसी ज़िले में वाराणसी और चन्दौली को विभाजित करती है। गंगा की धारा अर्ध-वृत्ताकार रूप में वर्ष भर बहती है। इसके बाहरी भाग के ऊपर करारे पड़ते हैं और भीतरी भाग में बालू अथवा बाढ़ की मिट्टी मिलती है। गंगा का रुख पहले उत्तर की तरफ होता हुआ रामनगर के कुछ आगे तक देहात अमानत को राल्हूपुर से अलग करता है। यहाँ पर करारा कंकरीला है और नदी उसके ठीक नीचे बहती है। यहाँ तूफ़ान में नावों को काफ़ी | गंगा का वाराणसी की प्राकृतिक रचना में मुख्य स्थान है। गंगा वाराणसी में गंगापुर के बेतवर गाँव से पहले घुसती है। यहाँ पर इससे सुबहा नाला आ मिला है। वाराणसी को वहाँ से प्राय: सात मील तक गंगा मिर्ज़ापुर ज़िले से अलग करती है और इसके बाद वाराणसी ज़िले में वाराणसी और चन्दौली को विभाजित करती है। गंगा की धारा अर्ध-वृत्ताकार रूप में वर्ष भर बहती है। इसके बाहरी भाग के ऊपर करारे पड़ते हैं और भीतरी भाग में बालू अथवा बाढ़ की मिट्टी मिलती है। गंगा का रुख पहले उत्तर की तरफ होता हुआ रामनगर के कुछ आगे तक देहात अमानत को राल्हूपुर से अलग करता है। यहाँ पर करारा कंकरीला है और नदी उसके ठीक नीचे बहती है। यहाँ तूफ़ान में नावों को काफ़ी ख़तरा रहता है। देहात अमानत में गंगा का बांया किनारा मुंडादेव तक चला गया है। इसके नीचे की ओर वह रेत में परिणत हो जाता है और बाढ़ में पानी से भर जाता है। रामनगर छोड़ने के बाद गंगा की उत्तर-पूर्व की ओर झुकती दूसरी केहुनी शुरू होती है। धारा यहाँ बायें किनारे से लगकर बहती है। | ||
====<u>बानगंगा</u>==== | ====<u>बानगंगा</u>==== | ||
{{मुख्य|बानगंगा नदी}} | {{मुख्य|बानगंगा नदी}} |
Revision as of 16:36, 8 July 2011
वाराणसी का विस्तार गंगा नदी के दो संगमों वरुणा और असी नदी से संगम के बीच बताया जाता है। इन संगमों के बीच की दूरी लगभग 2.5 मील है। इस दूरी की परिक्रमा हिन्दुओं में पंचकोसी यात्रा या पंचकोसी परिक्रमा कहलाती है। वाराणसी ज़िले की नदियों के विस्तार से अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि वाराणसी में तो प्रस्रावक नदियाँ है लेकिन चंदौली में नहीं है जिससे उस ज़िले में झीलें और दलदल हैं, अधिक बरसात होने पर गाँव पानी से भर जाते हैं तथा फ़सल को काफ़ी नुकसान पहुँचता है।
गंगा
[[चित्र:Ganga-River-Varanasi.jpg|गंगा नदी, वाराणसी|thumb|250px]]
गंगा का वाराणसी की प्राकृतिक रचना में मुख्य स्थान है। गंगा वाराणसी में गंगापुर के बेतवर गाँव से पहले घुसती है। यहाँ पर इससे सुबहा नाला आ मिला है। वाराणसी को वहाँ से प्राय: सात मील तक गंगा मिर्ज़ापुर ज़िले से अलग करती है और इसके बाद वाराणसी ज़िले में वाराणसी और चन्दौली को विभाजित करती है। गंगा की धारा अर्ध-वृत्ताकार रूप में वर्ष भर बहती है। इसके बाहरी भाग के ऊपर करारे पड़ते हैं और भीतरी भाग में बालू अथवा बाढ़ की मिट्टी मिलती है। गंगा का रुख पहले उत्तर की तरफ होता हुआ रामनगर के कुछ आगे तक देहात अमानत को राल्हूपुर से अलग करता है। यहाँ पर करारा कंकरीला है और नदी उसके ठीक नीचे बहती है। यहाँ तूफ़ान में नावों को काफ़ी ख़तरा रहता है। देहात अमानत में गंगा का बांया किनारा मुंडादेव तक चला गया है। इसके नीचे की ओर वह रेत में परिणत हो जाता है और बाढ़ में पानी से भर जाता है। रामनगर छोड़ने के बाद गंगा की उत्तर-पूर्व की ओर झुकती दूसरी केहुनी शुरू होती है। धारा यहाँ बायें किनारे से लगकर बहती है।
बानगंगा
रामगढ़ में बानगंगा के तट पर वैरांट के प्राचीन खंडहरों की स्थिति है, जो महत्त्वपूर्ण है। लोक कथाओं के अनुसार यहाँ एक समय प्राचीन वाराणसी बसी थी। सबसे पहले बैरांट के खंडहरों की जांच पड़ताल ए.सी.एल. कार्लाईल 2 ने की। वैरांट की स्थिति गंगा के दक्षिण में सैदपुर से दक्षिण-पूर्व में और वाराणसी के उत्तर-पूर्व में क़रीब 16 मील और गाजीपुर के दक्षिण-पश्चिम क़रीब 12 मील है। वैरांट के खंडहर बानगंगा के बर्तुलाकार दक्षिण-पूर्वी किनारे पर हैं। [[चित्र:Ganga-River-Varanasi-5.jpg|thumb|250px|गंगा नदी, वाराणसी|left]]
बरना
वाराणसी के इतिहास के लिए तो बरना का काफ़ी महत्त्व है क्योंकि जैसा हम पहले सिद्ध कर चुके हैं इस नदी के नाम पर ही वाराणसी नगर का नाम पड़ा। अथर्ववेद[1] में शायद बरना को ही बरणावती नाम से संबोधन किया गया है। सुबहा और अस्सी जैसे दो एक मामूली नाले-नालियों को छोड़कर इस ज़िले में गंगा की मुख्य सहायक नदियाँ बरना और गोमती है। उस युग में लोगों का विश्वास था कि इस नदी के पानी में सपं-विष दूर करने का अलौकिक गुण है। इस नदी का नामप्राचीन पौराणिक युग में "वरणासि' था। बरना इलाहाबाद और मिर्ज़ापुर ज़िलों की सीमा पर फूलपुर के ताल से निकालकर वाराणसी ज़िले की सीमा में पश्चिमी ओर से घुसती है और यहाँ उसका संगम विसुही नदी से सरवन गांव में होता है। विसुही नाम का संबंध शायद विष्ध्नी से हो। संभवत: बरना नदी के जल में विष हरने की शक्ति के प्राचीन विश्वास का संकेत हमें उसकी एक सहायक नदी के नाम से मिलता है। बिसुही और उसके बाद वरना कुछ दूर तक जौनपुर और वाराणसी की सीमा बनाती है। बल खाती हुई बरना नदी पूरब की ओर जाती है और दक्षिण और कसवार ओर देहात अमानत की ओर उत्तर में पन्द्रहा अठगांवा और शिवपुर की सीमाएं निर्धारित करती है। बनारस छावनी के उत्तर से होती हुई नदी दक्षिण-पूर्व की ओर घूम जाती है और सराय मोहाना पर गंगा से इसका संगम हो जाता है। वाराणसी के ऊपर इस पर दो तीर्थ है, रामेश्वर ओर कालकाबाड़ा। नदी के दोनों किनारे शुरू से आखिर तक साधारणत: हैं और अनगिनत नालों से कटे हैं।
गोमती
[[चित्र:Gomti-River.jpg|thumb|गोमती नदी]]
गोमती नदी का भी पुराणों में बहुत उल्लेख है। पौराणिक युग में यह विश्वास था कि वाराणसी क्षेत्र की सीमा गोमती से बरना तक थी। इस ज़िले में पहुंचने के पहले गोमती का पाट सई के मिलने से बढ़ जाती है। नदी ज़िले के उत्तर में सुल्तानीपुर से घुसती है और वहां से 22 मील तक अर्थात कैथी में गंगा से संगम होने तक यह ज़िले की उत्तरी सरहद बनाती है। नदी का बहाव टेढ़ा-मेढ़ा है और इसके किनारे कहीं और कहीं ढालुएं हैं।
नंद
नंद ही गोमती की एकमात्र सहायक नदी है। यह नदी जौनपुर की सीमा पर कोल असला में फूलपुर के उत्तर-पूर्व से निकलती है और धौरहरा में गोमती से जा मिलती है। नंद में हाथी नाम की एक छोटी नदी हरिहरपुर के पास मिलती है।
करमनासा
मध्यकाल में हिन्दुओं का यह विश्वास था कि करमनासा के पानी के स्पर्श से पुण्य नष्ट हो जाता है। करमनासा और उसकी सहायक नदियाँ चंदौली ज़िले में है। नदी कैभूर पहाड़ियों से निकलकर मिर्ज़ापुर ज़िले से होती हुई, पहले-पहल बनारस ज़िले में मझवार परगने से फ़तहपुर व से घूमती है। करमनासा, मझवार के दक्षिण-पूरबी हिस्से में क़रीब 10 मील चलकर गाजीपुर की सरहद बनाती हुई परगना नरवम को ज़िला शाहाबाद से अलग करती है। ज़िले को ककरैत में छोड़ती हुई फतेहपुर से 34 मील पर चौंसा में वह गंगा से मिल जाती है। नौबतपुर में इस नदी पर पुल है और यहीं से ग्रैंड ट्रंक रोड और गया को रेलवे लाइन जाती है।
गड़ई
गड़ई करमनासा की मुख्य सहायक नदी है जो मिर्ज़ापुर की पहाड़ियों से निकलकर परगना धूस के दक्षिण में शिवनाथपुर के पास से इस ज़िले में घुसती है और कुछ दूर तक मझवार और धूस की सीमा बनाती हुई बाद में मझवार होती हुई पूरब की ओर करमनासा में मिल जाती है।
चन्द्रप्रभा
मझवार में गुरारी के पास मिर्ज़ापुर के पहाड़ी इलाके से निकलकर चन्द्रप्रभा वाराणसी ज़िले को बबुरी पर छूती हुई थोड़ी दूर मिर्ज़ापुर में बहकर उत्तर में करमनासा से मिल जाती है।
वाराणसी ज़िले की नदियों के उक्त वर्णन से यह ज्ञात होता है कि बनारस में तो प्रस्रावक नदियाँ हैं लेकिन चंदौली में नहीं है जिससे उस ज़िले में झीलें और दलदल हैं, अधिक बरसात होने पर गाँव पानी से भर जाते हैं तथा फ़सल को काफ़ी नुक़सान पहुँचता है। नदियों के बहाव और ज़मीन की की वजह से जो हानि-लाभ होता है इसे प्राचीन आर्य भली-भांति समझते थे और इसलिए सबसे पहले आबादी वाराणसी में हुई।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अथर्ववेद (5/7/1)