नील पर्वत: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''नील पर्वत''' का उल्लेख महाभारत, [[सभापर्व महाभारत|सभ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 17: | Line 17: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पौराणिक | {{पौराणिक स्थान}} | ||
[[Category:पौराणिक कोश]][[Category:पौराणिक | [[Category:पौराणिक कोश]][[Category:पौराणिक स्थान]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 10:41, 8 June 2012
नील पर्वत का उल्लेख महाभारत, सभापर्व[1] में हुआ है, जहाँ इसे पाण्डव अर्जुन द्वारा विजित किये जाने का उल्लेख है।
- महाभारत के भूगोल के अनुसार[2] निषध पर्वत के उत्तर में मेरु पर्वत है। मेरु के उत्तर की ओर तीन श्रेणियाँ हैं- नील, श्वेत और श्रृंगवान, जो पूर्व-पश्चिम समुद्र तक विस्तृत कही गई है। नील, श्वेत और श्रृंगवान (या श्रृंगी) पर्वतों के उत्तर की ओर के प्रदेश को क्रमश: नीलवर्ष, श्वेतवर्ष और हेरण्यक या ऐरावत के नाम दिए गए हैं। महाभारत, सभापर्व[3] में नील को अर्जुन द्वारा विजित बताया गया है-
'नीलं नाम गिरिं गत्वा तत्रस्थानजयत् प्रभु:' 'ततो जिष्णुरतिक्रम्य पर्वत नीलमायतम्'।
- नील पर्वत को पार करने के पश्चात् अर्जुन रम्यक, हिरण्यक और उत्तरकुरु पहुँचे थे। जैन ग्रंथ 'जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति' में नील की जंबूद्वीप के छ: वर्षपर्वतों में गणना की गई है। विष्णु पुराण[4] में भी नील का उल्लेख है-
'नील: श्वेतश्च श्रृंगी च उत्तर वर्षपर्वता:।'
- श्रीमद्भागवत की पर्वतों की सूची में भी नील का नाम है-
'रैवतक: ककुभो नीलो गोकामुख इंद्रकील:।'
- महाभारत, अनुशासनपर्व[5] में तीर्थों के प्रसंग में नील की पहाड़ी का तीर्थ रूप में वर्णन है। यह हरिद्वार के पास एक गिरि शिखर है, जो शिव के नील नामक गण का तपस्या स्थल माना जाता है। गंगा की नीलधारा इसी पर्वत के निकट से बहती है-
'गंगाद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नील पर्वते तथा कनखले स्नात्वा धूतपाप्मा दिवं व्रजेत'[6]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 504 |
- ↑ महाभारत, सभापर्व 28
- ↑ महाभारत, सभापर्व 28
- ↑ महाभारत, सभापर्व 28
- ↑ विष्णु पुराण 2, 2, 10
- ↑ महाभारत, अनुशासनपर्व 25, 13
- ↑ महाभारत, अनुशासनपर्व 25, 13.