बंजारानामा -नज़ीर अकबराबादी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 29: Line 29:
|}
|}
'''बंजारानामा''' अठारवीं शताब्दी के भारतीय शायर [[नज़ीर अकबराबादी]] द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध रचना है। इस रचना का मुख्य सन्देश है- "सांसारिक सफलताओं पर अभिमान करना मूर्खता है क्योंकि मनुष्य की परिस्थितियाँ पलक झपकते बदल सकतीं हैं। धन-सम्पति तो आनी-जानी चीज़ है किन्तु मृत्यु, एक निश्चित सत्य है जो, कभी न कभी हर मनुष्य के साथ घटेगा।" यह रचना तेज़ी से भारतीय उपमहाद्वीप के कई भागों में लोकप्रिय हो गई और इसकी ख्याति लगभग पिछली दो शताब्दियों से बनी हुई है, हालांकि इसकी भाषा देसी और सरल है, पर इसमें पाई जाने वाली छवियाँ और कल्पनाएँ इतना झकझोर देने वालीं हैं कि यह "गीत कई हजार वर्षों की शिक्षाओं को एक सार रुप में सामने लेकर आता है। इसमें बंजारे का पात्र मृत्यु की ओर इशारा है: जिस तरह यह कभी नहीं बता सकते कि कोई बंजारा कब अपना सारा सामान लाद कर किसी स्थान से चल देगा, उसी तरह से मृत्यु कभी भी आ सकती है।
'''बंजारानामा''' अठारवीं शताब्दी के भारतीय शायर [[नज़ीर अकबराबादी]] द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध रचना है। इस रचना का मुख्य सन्देश है- "सांसारिक सफलताओं पर अभिमान करना मूर्खता है क्योंकि मनुष्य की परिस्थितियाँ पलक झपकते बदल सकतीं हैं। धन-सम्पति तो आनी-जानी चीज़ है किन्तु मृत्यु, एक निश्चित सत्य है जो, कभी न कभी हर मनुष्य के साथ घटेगा।" यह रचना तेज़ी से भारतीय उपमहाद्वीप के कई भागों में लोकप्रिय हो गई और इसकी ख्याति लगभग पिछली दो शताब्दियों से बनी हुई है, हालांकि इसकी भाषा देसी और सरल है, पर इसमें पाई जाने वाली छवियाँ और कल्पनाएँ इतना झकझोर देने वालीं हैं कि यह "गीत कई हजार वर्षों की शिक्षाओं को एक सार रुप में सामने लेकर आता है। इसमें बंजारे का पात्र मृत्यु की ओर इशारा है: जिस तरह यह कभी नहीं बता सकते कि कोई बंजारा कब अपना सारा सामान लाद कर किसी स्थान से चल देगा, उसी तरह से मृत्यु कभी भी आ सकती है।
{{Poemopen}}
{{Poemopen}}
<poem>
<poem>
Line 49: Line 48:
धन-दौलत नाती-पोता क्या इक कुनबा काम न आवेगा
धन-दौलत नाती-पोता क्या इक कुनबा काम न आवेगा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा


         हर मंजिल में अब साथ तेरे, ये जितना डेरा-डांडा है
         हर मंजिल में अब साथ तेरे, ये जितना डेरा-डांडा है
Line 93: Line 91:
[[Category:रीतिकालीन साहित्य]][[Category:नज़ीर अकबराबादी]][[Category:कविता]][[Category:काव्य कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:रीतिकालीन साहित्य]][[Category:नज़ीर अकबराबादी]][[Category:कविता]][[Category:काव्य कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Revision as of 08:54, 28 December 2012

बंजारानामा -नज़ीर अकबराबादी
कवि नज़ीर अकबराबादी
जन्म 1735
जन्म स्थान दिल्ली
मृत्यु 1830
मुख्य रचनाएँ बंजारानामा, दूर से आये थे साक़ी, फ़क़ीरों की सदा, है दुनिया जिसका नाम आदि
यू-ट्यूब लिंक सब ठाठ पड़ा रह जावेगा
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
नज़ीर अकबराबादी की रचनाएँ

बंजारानामा अठारवीं शताब्दी के भारतीय शायर नज़ीर अकबराबादी द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध रचना है। इस रचना का मुख्य सन्देश है- "सांसारिक सफलताओं पर अभिमान करना मूर्खता है क्योंकि मनुष्य की परिस्थितियाँ पलक झपकते बदल सकतीं हैं। धन-सम्पति तो आनी-जानी चीज़ है किन्तु मृत्यु, एक निश्चित सत्य है जो, कभी न कभी हर मनुष्य के साथ घटेगा।" यह रचना तेज़ी से भारतीय उपमहाद्वीप के कई भागों में लोकप्रिय हो गई और इसकी ख्याति लगभग पिछली दो शताब्दियों से बनी हुई है, हालांकि इसकी भाषा देसी और सरल है, पर इसमें पाई जाने वाली छवियाँ और कल्पनाएँ इतना झकझोर देने वालीं हैं कि यह "गीत कई हजार वर्षों की शिक्षाओं को एक सार रुप में सामने लेकर आता है। इसमें बंजारे का पात्र मृत्यु की ओर इशारा है: जिस तरह यह कभी नहीं बता सकते कि कोई बंजारा कब अपना सारा सामान लाद कर किसी स्थान से चल देगा, उसी तरह से मृत्यु कभी भी आ सकती है।

टुक हिर्सो-हवा[1] को छोड़ मियां, मत देस-बिदेस फिरे मारा
क़ज़्ज़ाक[2] अजल[3] का लूटे है दिन-रात बजाकर नक़्क़ारा
क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतुर[4] क्या गौनें पल्ला सर भारा
क्या गेहूं, चावल, मोठ, मटर, क्या आग, धुआं और अंगारा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा

        ग़र तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
        ऐ ग़ाफ़िल तुझसे भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
        क्या शक्कर, मिसरी, क़ंद[5], गरी क्या सांभर मीठा-खारी है
        क्या दाख़, मुनक़्क़ा, सोंठ, मिरच क्या केसर, लौंग, सुपारी है
        सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा

तू बधिया लादे बैल भरे जो पूरब पच्छिम जावेगा
या सूद बढ़ाकर लावेगा या टोटा घाटा पावेगा
क़ज़्ज़ाक़ अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा
धन-दौलत नाती-पोता क्या इक कुनबा काम न आवेगा
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा

        हर मंजिल में अब साथ तेरे, ये जितना डेरा-डांडा है
        जर, दाम, दिरम का भांडा है, बन्दूक, सिपर और खांडा है
        जब नायक तन का निकल गया, जो मुल्कों-मुल्कों हांडा है
        फिर हांडा है ना भांडा है, ना हलवा है ना भांडा है
        सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।

जब चलते-चलते रस्ते में, ये गोन तेरी रह जावेगी
इक बधिया तेरी मिट्टी पर, फिर घास न चरने आवेगी
ये खेप जो तूने लादी है, सब हिस्सों में बट जावेगी
घी पूत, जंवाई, पोता क्या, बंजारिन पास न आवेगी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा

        ये धूम-धड़क्का साथ लिये, क्यों फिरता है जंगल-जंगल
        इक तिनका साथ न जावेगा, मौकूफ हुआ जब अन्न ओर जल
        घर-बार अटारी, चौपारी, क्या खासा, तनसुख है मसलन
        क्या चिलमन, पर्दे, फर्श नये, क्या लाल पलंग और रंगमहल
        सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।

क्यों जी पर बोझ उठाता है, इन गोनों भारी-भारी के
जब मौत का डेरा आन पड़ा, तब दूने हैं व्योपारी है
क्या साज जड़ाऊ, जर, जेवर, क्या गोटे थान कनारी के
क्या घोड़े जीन सुनहरी के, क्या हाथी लाल अंबारी के
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा।

        हर आन नफा ओर टोटे हैं, क्यों मरता फिरता है बन-बन
        टुक गाफिल दिल में सोच जरा है साथ लगा तेरे दुश्मन
        क्या लौंडी, बांदी, दाई, दवा, क्या बन्दा, चेला नेक चलन
        क्या मंदिर, मस्जिद, लाल कुंआ क्या खेती-बाड़ी फूलचमन
        सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब छोड़ चलेगा बंजारा।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लालच
  2. डाकू
  3. मौत
  4. ऊंट
  5. खांड

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख