हीनयान: Difference between revisions
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हीनयान बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक हैं। इसे थेरवाद भी कहा जाता है। थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है। बौद्ध धर्म का दूसरा सम्प्रदाय महायान थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। श्रावकयान और | हीनयान [[बौद्ध धर्म]] के दो सम्प्रदायों में से एक हैं। इसे '''थेरवाद''' भी कहा जाता है। थेरवाद या हीनयान [[बुद्ध]] के मौलिक उपदेश ही मानता है। बौद्ध धर्म का दूसरा सम्प्रदाय [[महायान]] थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। श्रावकयान और प्रत्येक [[बुद्धयान]] को हीनयान और बोधिसत्त्वयान को महायान कहते हैं। [[बौद्ध दर्शन]] के [[दिव्यावदान]] में महायान एवं हीनयान दोनों के अंश पाए जाते हैं। | ||
==बुद्धवचन== | ==बुद्धवचन== | ||
वैभाषिक महायानसूत्रों को बुद्धवचन नहीं मानते, क्योंकि उनमें वर्णित विषय उन्हें अभीष्ट नहीं हैं। वे केवल हीनयानी त्रिपिटक को ही बुद्धवचन मानते हैं। महायानी आचार्य हीनयानी और महायानी सभी सूत्रों को बुद्धवचन मानते हैं। | वैभाषिक महायानसूत्रों को [[बुद्धवचन]] नहीं मानते, क्योंकि उनमें वर्णित विषय उन्हें अभीष्ट नहीं हैं। वे केवल हीनयानी [[त्रिपिटक]] को ही बुद्धवचन मानते हैं। [[महायान के आचार्य|महायानी आचार्य]] हीनयानी और महायानी सभी सूत्रों को बुद्धवचन मानते हैं। | ||
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[[अवदानशतक]] हीनयान का ग्रन्थ है- ऐसी मान्यता है। अवदानशतक के चीनी अनुवादकों का ही नहीं, अपितु अवदानशतक के अन्तरंग इसका प्रमाण भी है। | |||
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वैभाषिक और सौत्रान्तिक दर्शन हीनयानी तथा योगाचार और माध्यमिक महायान दर्शन हैं इसमें कुछ सत्यांश होने पर भी दर्शन-भेद यान-भेद का नियामक कतई नहीं होता, अपितु उद्देश्य-भेद या जीवनलक्ष्य का भेद ही यानभेद का नियामक होता है। उद्देश्य की अधिक व्यापकता और अल्प व्यापकता ही महायान और हीनयान के भेद का अधार है। यहाँ 'हीन' शब्द का अर्थ '[[अल्प]]' है, न कि तुच्छ, नीच या अधम आदि, जैसा कि आजकल हिन्दी में प्रचलित है। | वैभाषिक और सौत्रान्तिक दर्शन हीनयानी तथा योगाचार और माध्यमिक महायान [[दर्शन]] हैं इसमें कुछ सत्यांश होने पर भी दर्शन-भेद यान-भेद का नियामक कतई नहीं होता, अपितु उद्देश्य-भेद या जीवनलक्ष्य का भेद ही यानभेद का नियामक होता है। उद्देश्य की अधिक व्यापकता और [[अल्प]] व्यापकता ही महायान और हीनयान के भेद का अधार है। यहाँ 'हीन' शब्द का अर्थ '[[अल्प]]' है, न कि तुच्छ, नीच या अधम आदि, जैसा कि आजकल [[हिन्दी]] में प्रचलित है। | ||
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अठारहों निकायों को दार्शनिक विभाजन के अवसर पर वैभाषिक कहने की बौद्ध दार्शनिकों की परम्परा रही है। इसलिए हम भी वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक इन प्रसिद्ध चार बौद्ध दर्शनों के विचारों को ही तुलनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करेंगे। यह भी ज्ञात है कि वैभाषिक और सैत्रान्तिकों को हीनयान तथा योगाचार और माध्यमिकों को महायान कहने की परम्परा है। यद्यपि हीनयान और महायान के विभाजन का आधार दर्शन बिलकुल नहीं है। | [[अठारहों निकाय|अठारहों निकायों]] को दार्शनिक विभाजन के अवसर पर वैभाषिक कहने की [[बौद्ध दार्शनिक|बौद्ध दार्शनिकों]] की परम्परा रही है। इसलिए हम भी वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक इन प्रसिद्ध चार बौद्ध दर्शनों के विचारों को ही तुलनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करेंगे। यह भी ज्ञात है कि वैभाषिक और सैत्रान्तिकों को हीनयान तथा [[योगाचार]] और माध्यमिकों को महायान कहने की परम्परा है। यद्यपि हीनयान और महायान के विभाजन का आधार दर्शन बिलकुल नहीं है। | ||
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Revision as of 08:45, 29 July 2010
हीनयान बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक हैं। इसे थेरवाद भी कहा जाता है। थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है। बौद्ध धर्म का दूसरा सम्प्रदाय महायान थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। श्रावकयान और प्रत्येक बुद्धयान को हीनयान और बोधिसत्त्वयान को महायान कहते हैं। बौद्ध दर्शन के दिव्यावदान में महायान एवं हीनयान दोनों के अंश पाए जाते हैं।
बुद्धवचन
वैभाषिक महायानसूत्रों को बुद्धवचन नहीं मानते, क्योंकि उनमें वर्णित विषय उन्हें अभीष्ट नहीं हैं। वे केवल हीनयानी त्रिपिटक को ही बुद्धवचन मानते हैं। महायानी आचार्य हीनयानी और महायानी सभी सूत्रों को बुद्धवचन मानते हैं।
ग्रन्थ
अवदानशतक हीनयान का ग्रन्थ है- ऐसी मान्यता है। अवदानशतक के चीनी अनुवादकों का ही नहीं, अपितु अवदानशतक के अन्तरंग इसका प्रमाण भी है।
भेद
वैभाषिक और सौत्रान्तिक दर्शन हीनयानी तथा योगाचार और माध्यमिक महायान दर्शन हैं इसमें कुछ सत्यांश होने पर भी दर्शन-भेद यान-भेद का नियामक कतई नहीं होता, अपितु उद्देश्य-भेद या जीवनलक्ष्य का भेद ही यानभेद का नियामक होता है। उद्देश्य की अधिक व्यापकता और अल्प व्यापकता ही महायान और हीनयान के भेद का अधार है। यहाँ 'हीन' शब्द का अर्थ 'अल्प' है, न कि तुच्छ, नीच या अधम आदि, जैसा कि आजकल हिन्दी में प्रचलित है।
विभाजन
अठारहों निकायों को दार्शनिक विभाजन के अवसर पर वैभाषिक कहने की बौद्ध दार्शनिकों की परम्परा रही है। इसलिए हम भी वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार और माध्यमिक इन प्रसिद्ध चार बौद्ध दर्शनों के विचारों को ही तुलनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत करेंगे। यह भी ज्ञात है कि वैभाषिक और सैत्रान्तिकों को हीनयान तथा योगाचार और माध्यमिकों को महायान कहने की परम्परा है। यद्यपि हीनयान और महायान के विभाजन का आधार दर्शन बिलकुल नहीं है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ