चैतन्य महाप्रभु का परिचय: Difference between revisions
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चैतन्य महाप्रभु के द्वारा [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय]] की आधारशिला रखी गई। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र 'नाम संकीर्तन' का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। कवि कर्णपुर कृत 'चैतन्य चंद्रोदय' के अनुसार इन्होंने 'केशव भारती' नामक सन्न्यासी से [[दीक्षा]] ली थी। कुछ लोग माधवेन्द्र पुरी को इनका दीक्षा गुरु मानते हैं। चैतन्य महाप्रभु के [[पिता]] का नाम जगन्नाथ मिश्र व [[माता]] का नाम शचि देवी था। | चैतन्य महाप्रभु के द्वारा [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय]] की आधारशिला रखी गई। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र 'नाम संकीर्तन' का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। कवि कर्णपुर कृत 'चैतन्य चंद्रोदय' के अनुसार इन्होंने 'केशव भारती' नामक सन्न्यासी से [[दीक्षा]] ली थी। कुछ लोग माधवेन्द्र पुरी को इनका दीक्षा गुरु मानते हैं। चैतन्य महाप्रभु के [[पिता]] का नाम जगन्नाथ मिश्र व [[माता]] का नाम शचि देवी था। | ||
[[चित्र:Chaitanya-Mahaprabhu-with-Roop-and-Sanatan-Goswami.jpg|left|thumb|चैतन्य महाप्रभु को दण्डवत प्रणाम करते [[रूप गोस्वामी]] और [[सनातन गोस्वामी]]]] | |||
चैतन्य के पिता सिलहट के रहने वाले थे। वे [[नवद्वीप]] में पढ़ने के लिए आये थे। बाद में वहीं बस गये और वहीं पर शची देवी से उनका [[विवाह]] हुआ। एक के बाद एक उनके आठ कन्याएं पैदा हुईं। किंतु ये सभी कन्याएँ मृत्यु को प्राप्त हो गईं। बाद में जगन्नाथ मिश्र को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। भगवान की दया से वह बड़ा होने लगा। उसका नाम उन्होंने विश्वरूप रखा। विश्वरूप जब दस वर्ष का हुआ, तब उसके एक भाई और हुआ। माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा। बुढ़ापे में एक और बालक को पाकर वे फूले नहीं समाये। कहते हैं कि यह बालक तेरह [[महीने]] माता के पेट में रहा। उसकी कुंडली बनाते ही ज्योतिषी ने कह दिया था कि वह महापुरुष होगा। यही बालक आगे चलकर [[चैतन्य महाप्रभु]] के नाम से विख्यात हुआ। बालक का नाम विश्वंभर रखा गया था। माता-पिता उसे प्यार से 'निमाई' कहकर पुकारते थे। | चैतन्य के पिता सिलहट के रहने वाले थे। वे [[नवद्वीप]] में पढ़ने के लिए आये थे। बाद में वहीं बस गये और वहीं पर शची देवी से उनका [[विवाह]] हुआ। एक के बाद एक उनके आठ कन्याएं पैदा हुईं। किंतु ये सभी कन्याएँ मृत्यु को प्राप्त हो गईं। बाद में जगन्नाथ मिश्र को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। भगवान की दया से वह बड़ा होने लगा। उसका नाम उन्होंने विश्वरूप रखा। विश्वरूप जब दस वर्ष का हुआ, तब उसके एक भाई और हुआ। माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा। बुढ़ापे में एक और बालक को पाकर वे फूले नहीं समाये। कहते हैं कि यह बालक तेरह [[महीने]] माता के पेट में रहा। उसकी कुंडली बनाते ही ज्योतिषी ने कह दिया था कि वह महापुरुष होगा। यही बालक आगे चलकर [[चैतन्य महाप्रभु]] के नाम से विख्यात हुआ। बालक का नाम विश्वंभर रखा गया था। माता-पिता उसे प्यार से 'निमाई' कहकर पुकारते थे। | ||
निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। बहुत कम आयु में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे। उन्होंने कुछ समय तक [[नादिया]] में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया। निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद चिंतन में लीन रहकर [[राम]] व [[कृष्ण]] का स्तुति गान करने लगे थे। 15-16 वर्ष की अवस्था में उनका [[विवाह]] लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ। सन 1505 में सर्पदंश से पत्नी की मृत्यु हो गई। वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा [[विवाह]] [[नवद्वीप]] के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ। जब निमाई किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया। | निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। बहुत कम आयु में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे। उन्होंने कुछ समय तक [[नादिया]] में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया। निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद चिंतन में लीन रहकर [[राम]] व [[कृष्ण]] का स्तुति गान करने लगे थे। 15-16 वर्ष की अवस्था में उनका [[विवाह]] लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ। सन 1505 में सर्पदंश से पत्नी की मृत्यु हो गई। वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा [[विवाह]] [[नवद्वीप]] के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ। जब निमाई किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया। | ||
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Revision as of 12:41, 6 September 2016
चैतन्य महाप्रभु का परिचय
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पूरा नाम | चैतन्य महाप्रभु |
अन्य नाम | विश्वम्भर मिश्र, श्रीकृष्ण चैतन्य चन्द्र, निमाई, गौरांग, गौर हरि, गौर सुंदर |
जन्म | 18 फ़रवरी सन् 1486 (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा) |
जन्म भूमि | नवद्वीप (नादिया), पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | सन् 1534 |
मृत्यु स्थान | पुरी, उड़ीसा |
अभिभावक | जगन्नाथ मिश्र और शचि देवी |
पति/पत्नी | लक्ष्मी देवी और विष्णुप्रिया |
कर्म भूमि | वृन्दावन, मथुरा |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | महाप्रभु चैतन्य के विषय में वृन्दावनदास द्वारा रचित 'चैतन्य भागवत' नामक ग्रन्थ में अच्छी सामग्री उपलब्ध होती है। उक्त ग्रन्थ का लघु संस्करण कृष्णदास ने 1590 में 'चैतन्य चरितामृत' शीर्षक से लिखा था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
चैतन्य महाप्रभु का जन्म 18 फ़रवरी सन 1486[1] ई. की फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप (नादिया) नामक उस गाँव में हुआ था, जिसे अब 'मायापुर' कहा जाता है। बाल्यावस्था में इनका नाम 'विश्वंभर' था, परंतु सभी इन्हें 'निमाई' कहकर पुकारते थे। गौरवर्ण का होने के कारण लोग इन्हें 'गौरांग', 'गौर हरि', 'गौर सुंदर' आदि भी कहते थे।
चैतन्य महाप्रभु के द्वारा गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय की आधारशिला रखी गई। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामन्त्र 'नाम संकीर्तन' का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। कवि कर्णपुर कृत 'चैतन्य चंद्रोदय' के अनुसार इन्होंने 'केशव भारती' नामक सन्न्यासी से दीक्षा ली थी। कुछ लोग माधवेन्द्र पुरी को इनका दीक्षा गुरु मानते हैं। चैतन्य महाप्रभु के पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र व माता का नाम शचि देवी था।
[[चित्र:Chaitanya-Mahaprabhu-with-Roop-and-Sanatan-Goswami.jpg|left|thumb|चैतन्य महाप्रभु को दण्डवत प्रणाम करते रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी]]
चैतन्य के पिता सिलहट के रहने वाले थे। वे नवद्वीप में पढ़ने के लिए आये थे। बाद में वहीं बस गये और वहीं पर शची देवी से उनका विवाह हुआ। एक के बाद एक उनके आठ कन्याएं पैदा हुईं। किंतु ये सभी कन्याएँ मृत्यु को प्राप्त हो गईं। बाद में जगन्नाथ मिश्र को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। भगवान की दया से वह बड़ा होने लगा। उसका नाम उन्होंने विश्वरूप रखा। विश्वरूप जब दस वर्ष का हुआ, तब उसके एक भाई और हुआ। माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा। बुढ़ापे में एक और बालक को पाकर वे फूले नहीं समाये। कहते हैं कि यह बालक तेरह महीने माता के पेट में रहा। उसकी कुंडली बनाते ही ज्योतिषी ने कह दिया था कि वह महापुरुष होगा। यही बालक आगे चलकर चैतन्य महाप्रभु के नाम से विख्यात हुआ। बालक का नाम विश्वंभर रखा गया था। माता-पिता उसे प्यार से 'निमाई' कहकर पुकारते थे।
निमाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा संपन्न थे। साथ ही, अत्यंत सरल, सुंदर व भावुक भी थे। इनके द्वारा की गई लीलाओं को देखकर हर कोई हतप्रभ हो जाता था। बहुत कम आयु में ही निमाई न्याय व व्याकरण में पारंगत हो गए थे। उन्होंने कुछ समय तक नादिया में स्कूल स्थापित करके अध्यापन कार्य भी किया। निमाई बाल्यावस्था से ही भगवद चिंतन में लीन रहकर राम व कृष्ण का स्तुति गान करने लगे थे। 15-16 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह लक्ष्मीप्रिया के साथ हुआ। सन 1505 में सर्पदंश से पत्नी की मृत्यु हो गई। वंश चलाने की विवशता के कारण इनका दूसरा विवाह नवद्वीप के राजपंडित सनातन की पुत्री विष्णुप्रिया के साथ हुआ। जब निमाई किशोरावस्था में थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Chaitanya Mahaprabhu (अंग्रेज़ी) Gaudiya History। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
- चैतन्य महाप्रभु
- गौरांग ने आबाद किया कृष्ण का वृन्दावन
- Gaudiya Vaishnava
- Lord Gauranga (Sri Krishna Chaitanya Mahaprabhu)
- Gaudiya History
- Sri Gaura Purnima Special: Scriptures that Reveal Lord Chaitanya’s Identity as Lord Krishna
- Gaudiya Vaishnavas
- चैतन्य महाप्रभु - जीवन परिचय
- परिचय- चैतन्य महाप्रभु
- जीवनी/आत्मकथा >> चैतन्य महाप्रभु (लेखक- अमृतलाल नागर)
- श्री संत चैतन्य महाप्रभु
- चैतन्य महाप्रभु यदि वृन्दावन न आये होते तो शायद ही कोई पहचान पाता कान्हा की लीला स्थली को
- Shri Chaitanya Mahaprabhu -Hindi movie (youtube)
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