शिवाजी का आरम्भिक जीवन: Difference between revisions

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[[शिवाजी]] बचपन से ही उत्साही योद्धा थे, हालांकि इस वजह से उन्हें केवल औपचारिक शिक्षा दी गयी, जिसमें वे लिख पढ़ नहीं सकते थे; लेकिन फिर भी उनको सुनाई गई बातें उन्हें अच्छी तरह याद रहती थीं। शिवाजी ने मावल क्षेत्र से अपने विश्वस्त साथियों और सेना को इकट्टा किया। मावल साथियों के साथ शिवाजी खुद को मजबूत करने और अपनी मातृभूमि के ज्ञान के लिए सहयाद्रि पर्वतमाला की पहाड़ियों और जंगलो में घूमते रहते थे ताकि वे सैन्य प्रयासों के लिए तैयार हो सकें।
[[शिवाजी]] बचपन से ही उत्साही योद्धा थे, हालांकि इस वजह से उन्हें केवल औपचारिक शिक्षा दी गयी, जिसमें वे लिख पढ़ नहीं सकते थे; लेकिन फिर भी उनको सुनाई गई बातें उन्हें अच्छी तरह याद रहती थीं। शिवाजी ने मावल क्षेत्र से अपने विश्वस्त साथियों और सेना को इकट्टा किया। मावल साथियों के साथ शिवाजी खुद को मजबूत करने और अपनी मातृभूमि के ज्ञान के लिए सहयाद्रि पर्वतमाला की पहाड़ियों और जंगलो में घूमते रहते थे ताकि वे सैन्य प्रयासों के लिए तैयार हो सकें।
 
==हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा==
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==लोकप्रियता==
शिवाजी की विधवा माता, जो स्वतंत्र विचारों वाली [[हिन्दू]] कुलीन महिला थीं, ने जन्म से ही उन्हें दबे-कुचले हिंदुओं के अधिकारों के लिए लड़ने और मुस्लिम शासकों को उखाड़ फैंकने की शिक्षा दी थी। अपने अनुयायियों का दल संगठित कर उन्होंने लगभग 1655 ई. में बीजापुर की कमज़ोर सीमा चौकियों पर कब्ज़ा करना शुरू किया। इसी दौर में उन्होंने सुल्तानों से मिले हुए स्वधर्मियों को भी समाप्त कर दिया। इस तरह उनके साहस व सैन्य निपुणता तथा हिन्दुओं को सताने वालों के प्रति कड़े रूख ने उन्हें आम लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया। उनकी विध्वंसकारी गतिविधियाँ बढ़ती गई और उन्हें सबक सिखाने के लिए अनेक छोटे सैनिक अभियान असफल ही सिद्ध हुए। जब 1659 में बीजापुर के सुल्तान ने उनके ख़िलाफ़ [[अफ़ज़ल ख़ाँ]] के नेतृत्व में 10,000 लोगों की सेना भेजी तब [[शिवाजी]] ने डरकर भागने का नाटक कर सेना को कठिन पहाड़ी क्षेत्र में फुसला कर बुला लिया और आत्मसमर्पण करने के बहाने एक मुलाकात में अफ़ज़ल ख़ाँ की हत्या कर दी। उधर पहले से घात लगाए उनके सैनिकों ने बीजापुर की बेख़बर सेना पर अचानक हमला करके उसे खत्म कर डाला, रातों रात शिवाजी एक अजेय योद्धा बन गए, जिनके पास बीजापुर की सेना की बंदूकें, घोड़े और गोला-बारूद का भंडार था।
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Revision as of 12:55, 16 September 2016

शिवाजी विषय सूची
शिवाजी का आरम्भिक जीवन
पूरा नाम शिवाजी राजे भोंसले
जन्म 19 फ़रवरी, 1630 ई.
जन्म भूमि शिवनेरी, महाराष्ट्र
मृत्यु तिथि 3 अप्रैल, 1680 ई.
मृत्यु स्थान रायगढ़
पिता/माता शाहजी भोंसले, जीजाबाई
पति/पत्नी साइबाईं निम्बालकर
संतान सम्भाजी
उपाधि छत्रपति
शासन काल 1642 - 1680 ई.
शा. अवधि 38 वर्ष
राज्याभिषेक 6 जून, 1674 ई.
पूर्वाधिकारी शाहजी भोंसले
उत्तराधिकारी सम्भाजी
राजघराना मराठा
वंश भोंसले
संबंधित लेख महाराष्ट्र, मराठा, मराठा साम्राज्य, ताना जी, रायगढ़, समर्थ गुरु रामदास, दादोजी कोंडदेव, राजाराम, ताराबाई

शिवाजी बचपन से ही उत्साही योद्धा थे, हालांकि इस वजह से उन्हें केवल औपचारिक शिक्षा दी गयी, जिसमें वे लिख पढ़ नहीं सकते थे; लेकिन फिर भी उनको सुनाई गई बातें उन्हें अच्छी तरह याद रहती थीं। शिवाजी ने मावल क्षेत्र से अपने विश्वस्त साथियों और सेना को इकट्टा किया। मावल साथियों के साथ शिवाजी खुद को मजबूत करने और अपनी मातृभूमि के ज्ञान के लिए सहयाद्रि पर्वतमाला की पहाड़ियों और जंगलो में घूमते रहते थे ताकि वे सैन्य प्रयासों के लिए तैयार हो सकें।

हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा

12 वर्ष की उम्र में शिवाजी को बंगलौर ले जाया गया, जहाँ उनका ज्येष्ठ भाई शम्भाजी और उनका सौतेला भाई एकोजी पहले ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित थे। शिवाजी का 1640 ई. में निम्बालकर परिवार की सइबाई से विवाह कर दिया गया। 1645 ई. में किशोर शिवाजी ने प्रथम बार हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा दादाजी नरस प्रभु के समक्ष प्रकट की। शिवाजी प्रभावशाली कुलीनों के वंशज थे। उस समय भारत पर मुस्लिम शासन था। उत्तरी भारत में मुग़लों तथा दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा में मुस्लिम सुल्तानों का, ये तीनों ही अपनी शक्ति के ज़ोर पर शासन करते थे और प्रजा के प्रति कर्तव्य की भावना नहीं रखते थे। शिवाजी की पैतृक जायदाद बीजापुर के सुल्तान द्वारा शासित दक्कन में थी। उन्होंने मुसलमानों द्वारा किए जा रहे दमन और धार्मिक उत्पीड़न को इतना असहनीय पाया कि 16 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते उन्हें विश्वास हो गया कि हिन्दुओं की मुक्ति के लिए ईश्वर ने उन्हें नियुक्त किया है। उनका यही विश्वास जीवन भर उनका मार्गदर्शन करता रहा।

लोकप्रियता

शिवाजी की विधवा माता, जो स्वतंत्र विचारों वाली हिन्दू कुलीन महिला थीं, ने जन्म से ही उन्हें दबे-कुचले हिंदुओं के अधिकारों के लिए लड़ने और मुस्लिम शासकों को उखाड़ फैंकने की शिक्षा दी थी। अपने अनुयायियों का दल संगठित कर उन्होंने लगभग 1655 ई. में बीजापुर की कमज़ोर सीमा चौकियों पर कब्ज़ा करना शुरू किया। इसी दौर में उन्होंने सुल्तानों से मिले हुए स्वधर्मियों को भी समाप्त कर दिया। इस तरह उनके साहस व सैन्य निपुणता तथा हिन्दुओं को सताने वालों के प्रति कड़े रूख ने उन्हें आम लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया। उनकी विध्वंसकारी गतिविधियाँ बढ़ती गई और उन्हें सबक सिखाने के लिए अनेक छोटे सैनिक अभियान असफल ही सिद्ध हुए। जब 1659 में बीजापुर के सुल्तान ने उनके ख़िलाफ़ अफ़ज़ल ख़ाँ के नेतृत्व में 10,000 लोगों की सेना भेजी तब शिवाजी ने डरकर भागने का नाटक कर सेना को कठिन पहाड़ी क्षेत्र में फुसला कर बुला लिया और आत्मसमर्पण करने के बहाने एक मुलाकात में अफ़ज़ल ख़ाँ की हत्या कर दी। उधर पहले से घात लगाए उनके सैनिकों ने बीजापुर की बेख़बर सेना पर अचानक हमला करके उसे खत्म कर डाला, रातों रात शिवाजी एक अजेय योद्धा बन गए, जिनके पास बीजापुर की सेना की बंदूकें, घोड़े और गोला-बारूद का भंडार था।


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