आदमी नामा -नज़ीर अकबराबादी: Difference between revisions

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         मस्ज़िद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ।
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         बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्‍वाँ।
         बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्‍वाँ।
         पढ़ते हैं आदमी ही कुरान और नमाज़ यां।
         पढ़ते हैं आदमी ही क़ुरआन और नमाज़ यां।
         और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ।
         और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ।
         जो उनको ताड़ता है सो है वह भी आदमी॥
         जो उनको ताड़ता है सो है वह भी आदमी॥

Latest revision as of 10:32, 14 May 2013

आदमी नामा -नज़ीर अकबराबादी
कवि नज़ीर अकबराबादी
जन्म 1735
जन्म स्थान दिल्ली
मृत्यु 1830
मुख्य रचनाएँ बंजारानामा, दूर से आये थे साक़ी, फ़क़ीरों की सदा, है दुनिया जिसका नाम आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
नज़ीर अकबराबादी की रचनाएँ

दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी
और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वह भी आदमी
ज़रदार बेनवा है सो है वह भी आदमी।
नेमत जो खा रहा है सो है वह भी आदमी
टुकड़े चबा रहा है सो है वह भी आदमी॥

        मस्ज़िद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ।
        बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्‍वाँ।
        पढ़ते हैं आदमी ही क़ुरआन और नमाज़ यां।
        और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ।
        जो उनको ताड़ता है सो है वह भी आदमी॥

यां आदमी पै जान को वारे है आदमी।
और आदमी पै तेग को मारे है आदमी।
पगड़ी भी आदमी की उतारे है आदमी।
चिल्लाभ के आदमी को पुकारे है आदमी।
और सुनके दौड़ता है सो है वह भी आदमी॥

        अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर।
        ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर।
        यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर।
        अच्छाद भी आदमी ही कहाता है ए 'नज़ीर'।
        और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी॥



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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