लक्ष्य और साधना -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "संन्यास" to "सन्न्यास") |
||
Line 25: | Line 25: | ||
"देखो गुरु! तुम समझ गये हो कि जब मैं चवन्नी के लिए तुम चारों से इतना भीषण युद्ध कर सकता हूँ, तो फिर हज़ार रुपये के लिए तो पूरी बटालियन से लड़ जाऊँगा। इसलिए तुमको नोट दिखाने में कोई समस्या नहीं है।" | "देखो गुरु! तुम समझ गये हो कि जब मैं चवन्नी के लिए तुम चारों से इतना भीषण युद्ध कर सकता हूँ, तो फिर हज़ार रुपये के लिए तो पूरी बटालियन से लड़ जाऊँगा। इसलिए तुमको नोट दिखाने में कोई समस्या नहीं है।" | ||
छोटे पहलवान का लक्ष्य था अपनी अंटी की सुरक्षा करना। इससे कोई मतलब नहीं था कि अंटी में चवन्नी है या हज़ार रुपए और इस लक्ष्य के लिए उसने भीषण लड़ाई लड़ी। इस बार मैंने 'लक्ष्य' और 'साधना' पर कुछ लिखने की कोशिश की है... | छोटे पहलवान का लक्ष्य था अपनी अंटी की सुरक्षा करना। इससे कोई मतलब नहीं था कि अंटी में चवन्नी है या हज़ार रुपए और इस लक्ष्य के लिए उसने भीषण लड़ाई लड़ी। इस बार मैंने 'लक्ष्य' और 'साधना' पर कुछ लिखने की कोशिश की है... | ||
[[स्वामी विवेकानंद]] अक्सर देश-विदेश के दौरे पर रहते थे। जगह-जगह पर उनके भाषण हुआ करते थे। 14-15 वर्ष की कच्ची उम्र के नरेन (विवेकानंद का बचपन का नाम) पर, 1876-78 के समय भारत में पड़े भीषण [[अकाल]] का गहरा असर पड़ा। बाद में भी वर्षों तक अकाल की विभीषिका भारत में अपनी काली छाया से बर्बादी करती रही। विवेकानंद अकाल के समय ध्यान और प्रवचन छोड़ कर अकालग्रस्त लोगों की सहायता करने में लग जाते थे और दिन-रात उसमें लगे रहते थे। एक बार, उनके सम्पर्क के लोगों को एतराज़ हुआ, जिनमें से कुछ | [[स्वामी विवेकानंद]] अक्सर देश-विदेश के दौरे पर रहते थे। जगह-जगह पर उनके भाषण हुआ करते थे। 14-15 वर्ष की कच्ची उम्र के नरेन (विवेकानंद का बचपन का नाम) पर, 1876-78 के समय भारत में पड़े भीषण [[अकाल]] का गहरा असर पड़ा। बाद में भी वर्षों तक अकाल की विभीषिका भारत में अपनी काली छाया से बर्बादी करती रही। विवेकानंद अकाल के समय ध्यान और प्रवचन छोड़ कर अकालग्रस्त लोगों की सहायता करने में लग जाते थे और दिन-रात उसमें लगे रहते थे। एक बार, उनके सम्पर्क के लोगों को एतराज़ हुआ, जिनमें से कुछ सन्न्यासी भी थे। वो चार-पांच लोग उनके पास आये और उनमें से एक नौजवान सन्न्यासी ने उनसे कहा- | ||
"ये आप क्या कर रहे हैं ? स्वामी जी ! ना तो ये आपका लक्ष्य है और ना ही आपका कार्य। आपका लक्ष्य है भारत की संस्कृति से सम्बन्धित प्रवचन देना। सारे देश-दुनिया में उसे फैलाना और लोगों को जागृत करना। आपने तो ध्यान करना भी बंद कर दिया है।" | "ये आप क्या कर रहे हैं ? स्वामी जी ! ना तो ये आपका लक्ष्य है और ना ही आपका कार्य। आपका लक्ष्य है भारत की संस्कृति से सम्बन्धित प्रवचन देना। सारे देश-दुनिया में उसे फैलाना और लोगों को जागृत करना। आपने तो ध्यान करना भी बंद कर दिया है।" | ||
"अच्छा ठीक है... आज ध्यान ही करते हैं... तुम सही कह रहो हो, ध्यान करना आवश्यक है।" विवेकानन्द जी ने कहा | "अच्छा ठीक है... आज ध्यान ही करते हैं... तुम सही कह रहो हो, ध्यान करना आवश्यक है।" विवेकानन्द जी ने कहा | ||
जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान | जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान सन्न्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए। वह एकदम उत्तेजित और परेशान हो गया। उसके साथ में जो तीन-चार लोग थे, वह भी एकदम से चौंक गए। वो खड़े हुए और कहने लगे- | ||
"ये आप क्या रहे हैं ? आपने इस तरह से क्यों पीटना शुरू कर दिया ?" | "ये आप क्या रहे हैं ? आपने इस तरह से क्यों पीटना शुरू कर दिया ?" | ||
इस पर स्वामी विवेकानंद ने कहा- | इस पर स्वामी विवेकानंद ने कहा- | ||
Line 35: | Line 35: | ||
साधक, साधना और साध्य; इन तीनों में क्या महत्त्वपूर्ण है ? लक्ष्य क्या होना चाहिए ? फल की इच्छा न करने के लिए गीता में क्यों लिखा है ? | साधक, साधना और साध्य; इन तीनों में क्या महत्त्वपूर्ण है ? लक्ष्य क्या होना चाहिए ? फल की इच्छा न करने के लिए गीता में क्यों लिखा है ? | ||
साध्य वह लक्ष्य है, जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं। साधना उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जो कुछ आप कर रहे हैं, वो है। आपके क्रियान्वयन हैं, आपके प्रयास हैं और साधक, साधक आप हैं। क्या महत्त्वपूर्ण है इन तीनों में? हमेशा यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सबसे महत्त्वपूर्ण साधना होती है। लक्ष्य महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण आप भी नहीं हैं। महत्त्वपूर्ण है वह साधना। इस साधना के बल पर ही, आप कुछ रचना कर सकते हैं, कुछ ख़ास बन सकते हैं, महत्त्वपूर्ण बन सकते हैं। इसे समझा कैसे जाए? | साध्य वह लक्ष्य है, जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं। साधना उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जो कुछ आप कर रहे हैं, वो है। आपके क्रियान्वयन हैं, आपके प्रयास हैं और साधक, साधक आप हैं। क्या महत्त्वपूर्ण है इन तीनों में? हमेशा यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सबसे महत्त्वपूर्ण साधना होती है। लक्ष्य महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण आप भी नहीं हैं। महत्त्वपूर्ण है वह साधना। इस साधना के बल पर ही, आप कुछ रचना कर सकते हैं, कुछ ख़ास बन सकते हैं, महत्त्वपूर्ण बन सकते हैं। इसे समझा कैसे जाए? | ||
एक कहावत है "या तो कुछ ऐसा करो कि लोग उस पर लिखें, या कुछ ऐसा लिखो कि लोग उसे पढ़ें"</poem>{{दाँयाबक्सा|पाठ=जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान | एक कहावत है "या तो कुछ ऐसा करो कि लोग उस पर लिखें, या कुछ ऐसा लिखो कि लोग उसे पढ़ें"</poem>{{दाँयाबक्सा|पाठ=जब सब ध्यानमग्न हो गए तो स्वामी जी ने एक पास में रखा हुआ डंडा उठाया और एक डंडा उस नौजवान सन्न्यासी की पीठ पर मारा, जब उसने आँखें खोली तो दो-तीन डण्डे और जमा दिए।|विचारक=}} | ||
<poem> | <poem> | ||
वास्तविक लक्ष्य क्या होता है ? [[सचिन तेंदुलकर]] जब खेलने जाते हैं, तो क्या लक्ष्य होता है ? बढ़िया खेलना, देश को जिताना या 100-200 रन बनाना ? यदि देश को जिताना लक्ष्य होता है, तो ध्यान खेल में नहीं लग सकता, 100 रन बनाने का लक्ष्य रहे, तब भी ध्यान खेल में नहीं लगेगा, खेल पर ध्यान देने के लिए तो एकाग्रता से उस गेंद को देखना होता है, जो गेंदबाज़ के हाथ से छूटती है और सचिन के बल्ले तक आती है। गड़बड़ी कहाँ होती है ? जब रनों की संख्या 90 से ऊपर पहुँचती है। इस स्थिति में लक्ष्य 100 रन बनाने का हो जाता है और खेल से ध्यान हट जाता है, फिर गेंद नहीं स्कोर-बोर्ड दिमाग़ में ऊधम मचाने लगता है। इस 90 और 100 के बीच आउट होने की संभावना बढ़ जाती है। | वास्तविक लक्ष्य क्या होता है ? [[सचिन तेंदुलकर]] जब खेलने जाते हैं, तो क्या लक्ष्य होता है ? बढ़िया खेलना, देश को जिताना या 100-200 रन बनाना ? यदि देश को जिताना लक्ष्य होता है, तो ध्यान खेल में नहीं लग सकता, 100 रन बनाने का लक्ष्य रहे, तब भी ध्यान खेल में नहीं लगेगा, खेल पर ध्यान देने के लिए तो एकाग्रता से उस गेंद को देखना होता है, जो गेंदबाज़ के हाथ से छूटती है और सचिन के बल्ले तक आती है। गड़बड़ी कहाँ होती है ? जब रनों की संख्या 90 से ऊपर पहुँचती है। इस स्थिति में लक्ष्य 100 रन बनाने का हो जाता है और खेल से ध्यान हट जाता है, फिर गेंद नहीं स्कोर-बोर्ड दिमाग़ में ऊधम मचाने लगता है। इस 90 और 100 के बीच आउट होने की संभावना बढ़ जाती है। |
Revision as of 13:53, 2 May 2015
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश लक्ष्य और साधना -आदित्य चौधरी एक वीरान इलाक़े से छोटे पहलवान गुज़र रहा था। अचानक चार लठैतों ने घेर लिया।
वास्तविक लक्ष्य क्या होता है ? सचिन तेंदुलकर जब खेलने जाते हैं, तो क्या लक्ष्य होता है ? बढ़िया खेलना, देश को जिताना या 100-200 रन बनाना ? यदि देश को जिताना लक्ष्य होता है, तो ध्यान खेल में नहीं लग सकता, 100 रन बनाने का लक्ष्य रहे, तब भी ध्यान खेल में नहीं लगेगा, खेल पर ध्यान देने के लिए तो एकाग्रता से उस गेंद को देखना होता है, जो गेंदबाज़ के हाथ से छूटती है और सचिन के बल्ले तक आती है। गड़बड़ी कहाँ होती है ? जब रनों की संख्या 90 से ऊपर पहुँचती है। इस स्थिति में लक्ष्य 100 रन बनाने का हो जाता है और खेल से ध्यान हट जाता है, फिर गेंद नहीं स्कोर-बोर्ड दिमाग़ में ऊधम मचाने लगता है। इस 90 और 100 के बीच आउट होने की संभावना बढ़ जाती है। |