वाग्भट: Difference between revisions
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*वाग्भट की [[भाषा]] में [[कालिदास]] जैसा लालित्य मिलता है। [[छंद|छंदों]] की विशेषता देखने योग्य है।<ref>संस्कृत साहित्य में आयुर्वेद, भाग 3</ref> | *वाग्भट की [[भाषा]] में [[कालिदास]] जैसा लालित्य मिलता है। [[छंद|छंदों]] की विशेषता देखने योग्य है।<ref>संस्कृत साहित्य में आयुर्वेद, भाग 3</ref> | ||
*[[वराहमिहिर]] ने 'बृहत्संहिता' में<ref>अध्याय 76</ref> माक्षिक औषधियों का एक पाठ दिया है। यह पाठ 'अष्टांगसंग्रह' के पाठ से लिया जान पड़ता है।<ref>उत्तर. अ. 49</ref> | *[[वराहमिहिर]] ने 'बृहत्संहिता' में<ref>अध्याय 76</ref> माक्षिक औषधियों का एक पाठ दिया है। यह पाठ 'अष्टांगसंग्रह' के पाठ से लिया जान पड़ता है।<ref>उत्तर. अ. 49</ref> | ||
*रसशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ 'रसरत्नसमुच्चय' का कर्ता भी वाग्भट कहा जाता है। | *रसशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ 'रसरत्नसमुच्चय' का कर्ता भी वाग्भट को कहा जाता है। इनके पिता का नाम सिंहगुप्त था। पिता और पुत्र के नामों में समानता देखकर कई विद्वान 'अष्टांगसंग्रह' और 'रसरत्नसमुच्चय' के कर्ता को एक ही मानते हैं, परंतु वास्तव में ये दोनों भिन्न व्यक्ति हैं।<ref>रसशास्त्र, पृष्ठ 110</ref> | ||
*वाग्भट के बनाए [[आयुर्वेद]] के ग्रंथ 'अष्टांगसंग्रह' और '[[अष्टांगहृदयम्]]' हैं। 'अष्टांगहृदयम्' की जितनी टीकाएँ हुई हैं, उतनी अन्य किसी ग्रंथ की नहीं हुईं। इन दोनों ग्रंथों का पठन-पाठन अत्यधिक है। | *वाग्भट के बनाए [[आयुर्वेद]] के ग्रंथ 'अष्टांगसंग्रह' और '[[अष्टांगहृदयम्]]' हैं। 'अष्टांगहृदयम्' की जितनी टीकाएँ हुई हैं, उतनी अन्य किसी ग्रंथ की नहीं हुईं। इन दोनों ग्रंथों का पठन-पाठन अत्यधिक है। | ||
Latest revision as of 12:02, 16 June 2015
वाग्भट आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ 'अष्टांगसंग्रह' तथा 'अष्टांगहृदयम्' के रचयिता थे। प्राचीन संहित्यकारों में यही ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपना परिचय स्पष्ट रूप में दिया है।
- 'अष्टांगसंग्रह' के अनुसार वाग्भट का जन्म सिंधु देश में हुआ था। इनके पितामह का नाम भी वाग्भट था।
- ये अवलोकितेश्वर के शिष्य थे। इनके पिता का नाम सिद्धगुप्त था। यह बौद्ध धर्म को मानने वाले थे।
- ह्वेन त्सांग का समय 675 और 685 शती ईसवी के आसपास है। वाग्भट इससे पूर्व हुए थे। वाग्भट का समय पाँचवीं शती के लगभग है। ये बौद्ध थे, यह बात ग्रंथों से स्पष्ट है।[1]
- चीनी यात्री इत्सिंग ने लिखा है कि उससे एक सौ वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने ऐसी संहिता बनाई, जिसमें आयुर्वेद के आठों अंगों का समावेश हो गया है।
- 'अष्टांगहृदयम्' का तिब्बती भाषा में अनुवाद हुआ था। आज भी अष्टांगहृदयम् ही ऐसा ग्रंथ है, जिसका जर्मन भाषा में भी अनुवाद हुआ है।
- वाग्भट की भाषा में कालिदास जैसा लालित्य मिलता है। छंदों की विशेषता देखने योग्य है।[2]
- वराहमिहिर ने 'बृहत्संहिता' में[3] माक्षिक औषधियों का एक पाठ दिया है। यह पाठ 'अष्टांगसंग्रह' के पाठ से लिया जान पड़ता है।[4]
- रसशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रंथ 'रसरत्नसमुच्चय' का कर्ता भी वाग्भट को कहा जाता है। इनके पिता का नाम सिंहगुप्त था। पिता और पुत्र के नामों में समानता देखकर कई विद्वान 'अष्टांगसंग्रह' और 'रसरत्नसमुच्चय' के कर्ता को एक ही मानते हैं, परंतु वास्तव में ये दोनों भिन्न व्यक्ति हैं।[5]
- वाग्भट के बनाए आयुर्वेद के ग्रंथ 'अष्टांगसंग्रह' और 'अष्टांगहृदयम्' हैं। 'अष्टांगहृदयम्' की जितनी टीकाएँ हुई हैं, उतनी अन्य किसी ग्रंथ की नहीं हुईं। इन दोनों ग्रंथों का पठन-पाठन अत्यधिक है।
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