भवानी दयाल संन्यासी: Difference between revisions
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==जन्म एवं शिक्षा== | ==जन्म एवं शिक्षा== |
Revision as of 10:05, 5 January 2017
भवानी दयाल संन्यासी
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पूरा नाम | भवानी दयाल संन्यासी |
जन्म | 10 सितंबर, 1892 |
जन्म भूमि | जोहान्सबर्ग दक्षिण अफ़्रीका |
मृत्यु | 9 मई, 1959 |
अभिभावक | पिता - जयराम सिंह |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | समाज सेवा |
प्रसिद्धि | समाज सुधारक |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | गांधी जी |
अन्य जानकारी | उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की और अपना शेष जीवन 'हिंदी, हिंदू, हिन्दुस्तान' की सेवा में लगाया। |
अद्यतन | 03:45, 5 जनवरी-2017 (IST) |
भवानी दयाल संन्यासी (अंग्रेज़ी: Bhawani Dayal Sanyaasi, जन्म- 10 सितंबर, 1892, जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ़्रीका; मृत्यु- 9 मई, 1959) राष्ट्रवादी, हिंदी सेवी और आर्यसमाजी थे। उन्होंने हिंदी के प्रचार के लिए दक्षिण अफ़्रीका में 'हिंदी आश्रम' की स्थापना की थी। भवानी दयाल नेटाल की आर्य प्रतिनिधि सभा के पहले अध्यक्ष थे।[1]
जन्म एवं शिक्षा
भवानी दयाल संन्यासी का जन्म 10 सितंबर, 1892 ई. को जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ़्रीका में हुआ था। उनके पिता जयराम सिंह और माता कुली बन कर भारत से वहां गए थे। भवानी दयाल की शिक्षा दक्षिण अफ़्रीका में ही एक गुजराती ब्राह्मण द्वारा संचालित हिंदी हाई स्कूल और मिशन स्कूल में हुई।
परिचय
भवानी दयाल राष्ट्रवादी विचारों के व्यक्ति थे। बंगाल विभाजन के आंदोलन के काल में वे भारत आए थे और स्वदेशी आंदोलन से उनका संपर्क हुआ। यहां भवानी दयाल को तुलसीदास और सूरदास की रचनाओं के साथ-साथ स्वामी दयानंद के 'सत्यार्थप्रकाश' के अध्ययन का अवसर मिला और वे आर्यसमाजी बन गए।
गांधी जी से भेंट
अफ़्रीका वापस जाने पर 1913 में भवानी दयाल की गांधी जी से भेंट हुई और उन्होंने आर्य समाज के प्रचार के साथ-साथ गांधी जी के विचारों के प्रचार में ही योग दिया। यद्यपि उनके जीवन का अधिक समय अफ़्रीका में ही बीता, फिर भी वे बीच-बीच में भारत आते रहे।
आर्य समाज के संन्यासी
भवानी दयाल ने कांग्रेस के अधिवेशनों में भाग लिया, आंदोलनों में जेल गए और बिहार के किसान आंदोलन में भी सम्मिलित रहे। 1927 में उन्होंने संन्यास ले लिया था और आर्य समाज के संन्यासी के रूप में धर्म और हिंदी भाषा के प्रचार में लगे रहे। स्वामी जी भारत की राष्ट्रीयता और दक्षिण अफ़्रीका के प्रवासी भारतीयों के बीच एक सेतु का काम करते थे।
भवानी दयाल संन्यासी 1939 में स्थायी रूप से भारत आकर अजमेर में रहने लगे थे। उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की और अपना शेष जीवन 'हिंदी, हिंदू, हिन्दुस्तान' की सेवा में लगाया।
निधन
9 मई, 1959 में भवानी दयाल का देहांत हो गया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 567 |
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख