आभीरी (बोली): Difference between revisions

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'''आभीरी''' आभीरों से संबंध रखने वाला [[अपभ्रंश भाषा]] का एक मुख्य भेद है। अपभ्रंश के ब्राचड, उपनागर, [[आभीर]] और ग्राम्य आदि अनेक भेद बताए गए है।<br />
'''आभीरी''' आभीरों से संबंध रखने वाला [[अपभ्रंश भाषा]] का एक मुख्य भेद है। अपभ्रंश के ब्राचड, उपनागर, आभीर और ग्राम्य आदि अनेक भेद बताए गए है।<br />
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*आभीर जाति लड़ाकू ही नहीं थी, बल्कि इस देश की [[भाषा]] को समृद्ध बनाने में भी इस जाति ने योगदान किया था।
*आभीर जाति लड़ाकू ही नहीं थी, बल्कि इस देश की [[भाषा]] को समृद्ध बनाने में भी इस जाति ने योगदान किया था।

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चित्र:Disamb2.jpg आभीरी एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- आभीरी (बहुविकल्पी)

आभीरी आभीरों से संबंध रखने वाला अपभ्रंश भाषा का एक मुख्य भेद है। अपभ्रंश के ब्राचड, उपनागर, आभीर और ग्राम्य आदि अनेक भेद बताए गए है।

  • आभीर जाति लड़ाकू ही नहीं थी, बल्कि इस देश की भाषा को समृद्ध बनाने में भी इस जाति ने योगदान किया था।
  • ईसवी सन्‌ की दूसरी तीसरी शताब्दी में अपभ्रंश भाषा आभीरी के रूप में प्रचलित थी, जो सिंधु , मुल्तान और उत्तरी पंजाब में बोली जाती थी।
  • छठी शताब्दी तक अपभ्रंश आभीर तथा अन्य लोगों की बोली मानी जाती रही।[1]
  • आगे चलकर नवीं शताब्दी तक आभीर, शबर और चांडालों का ही इस बोली पर अधिकार नहीं रहा, बल्कि शिल्पकार और कर्मकार आदि सामान्य जनों की बोली हो जाने से अपभ्रंश ने लोकभाषा का रूप धारण किया और क्रमश: यह बोली सौराष्ट्र और मगध तक फैल गई।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 390 |
  2. सं.ग्रं.-पी.डी.गुने: भविसयत्त कहा, भूमिका (1923)

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