ऋक्षबिल

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 10:20, 17 May 2018 by आशा चौधरी (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

सीतान्वेषण करते समय वानरों ने भूख-प्यास से खिन्न होकर एक गुहा या बिल में से जल पक्षियों को निकलते देखकर वहाँ पानी का अनुमान किया था। इसी गुहा को वाल्मीकि ने ऋक्षबिल कहकर वर्णन किया है। यहीं वानरों की स्वयंप्रभा नामक तपस्विनी से भेंट हुई थी।

'विचिन्वन्तस्ततस्तत्र ददृशुर्विवृतं बिलम्,
दुर्गमृक्षबलिं नाम दानवेनाभिरक्षितम्,
षुत्पिपासापरीतासु श्रान्तास्तु सलिलार्थिन:'[1]

ऋक्षबिल अथवा स्वयंप्रभा गुहा का अभिज्ञान दक्षिण रेल के कलयनल्लूर स्टेशन से आधा मील पर स्थित पर्वत की 30 फुट गहरी गुफा से किया गया है।

तुलसीरामायण में भी इस गुहा का सुन्दर वर्णन है-

'चढ़िगिरि शिखर चहूंदिशि देखा, भूमिविवर इक कौतुक पेखा।
चक्रवाक बक हंस उड़ाहीं, बहुतक खग प्रविशहिं तेहि माहीं।'[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 105-106| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार


  1. वाल्मीकि किष्किंधा 50, 6-7-8
  2. किष्किंधाकांड। स्वयंप्रभा गुहा।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः