ख़बर है दोनों को दोनों से दिल लगाऊँ मैं, किसे फ़रेब दूँ, किस से फ़रेब खाऊँ मैं नहीं है छत न सही आसमाँ तो अपना है, कहो तो चाँद के पहलू में लेट जाऊँ मैं यही वो शय है कहीं भी किसी भी काम में लो, उजाला कम हो तो बोलो कि दिल जलाऊँ मैं नहीं नहीं ये तिरी ज़िद नहीं है चलने की, अभी-अभी तो वो सोया है फिर जगाऊँ मैं बिछड़ के उससे दुआ कर रहा हूँ अय मौला, कभी किसी की मुहब्बत न आज़माऊँ मैं हर एक लम्हा नयापन हमारी फ़ितरत है, जो तुम कहो तो पुरानी ग़ज़ल सुनाऊँ मैं