पंपासरोवर: Difference between revisions

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'''पंपासरोवर''' अथवा 'पंपासर' [[होस्पेट]] तालुका, [[मैसूर]] का एक पौराणिक स्थान है। [[हंपी]] के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को [[रामायण]] कालीन [[किष्किंधा]] माना जाता है। [[तुंगभद्रा नदी]] को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बायीं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है।
==मान्यता==
==मान्यता==
एक [[पर्वत]] के नीचे पंपासरोवर नाम से कहा जाने वाला एक छोटा-सा सरोवर है। इसके पास ही एक दूसरा सरोवर भी स्थित है जो, मानसरोवर कहलाता है। पंपासर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। पर्वत में एक गुफ़ा भी है, जिसे रामभक्तनी [[शबरी]] के नाम पर 'शबरी गुफ़ा' कहते हैं। कुछ लोगों का विचार है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपासरोवर इसी स्थान पर रहा होगा, जहाँ आज कल हास्पेट का कस्बा है।
एक [[पर्वत]] के नीचे पंपासरोवर नाम से कहा जाने वाला एक छोटा-सा सरोवर है। इसके पास ही एक दूसरा सरोवर भी स्थित है जो, मानसरोवर कहलाता है। पंपासर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। पर्वत में एक गुफ़ा भी है, जिसे रामभक्तनी [[शबरी]] के नाम पर 'शबरी गुफ़ा' कहते हैं। कुछ लोगों का विचार है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपासरोवर इसी स्थान पर रहा होगा, जहाँ आज कल हास्पेट का क़स्बा है।
====रामायण का वर्णन====
====रामायण का वर्णन====
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[[वाल्मीकि रामायण]], अरण्यकांड<ref>[[वाल्मीकि रामायण]], अरण्यकांड 74, 4</ref> ('तौ पुष्करिण्या: पंपायास्तीरमासाद्य पश्चिमम् अपश्यतां सतस्तत्रशवर्या रम्यमाश्रमम्') से सूचित होता है कि पंपासर के तट पर ही शबरी का आश्रम था। किष्किंधा के निकट सुरोवनम् नामक स्थान पर शबरी का आश्रम बताया जाता है। इसी के निकट शबरी के गुरु [[मतंग|मतंग ऋषि]] के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था-


<blockquote>'शबरी दर्शयामास तावुभौततनंमहत् पश्य, मेघघन प्रख्यं मृगपक्षिसमाकुलम्, मतंगचनमित्येव विश्रुतं रघुनंदन, इहवे भवितात्मानो गुरुवो मे महाद्युते'</blockquote>
<blockquote>'शबरी दर्शयामास तावुभौततनंमहत् पश्य, मेघघन प्रख्यं मृगपक्षिसमाकुलम्, मतंगचनमित्येव विश्रुतं रघुनंदन, इहवे भवितात्मानो गुरुवो मे महाद्युते'</blockquote>
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<blockquote>'उपांतवानीर वनोपगूढ़ान्यालक्षपारिप्लवसारसानि, दूरावतीर्णा पिवतीव खेदादमुनि पंपासलिलानि दृष्टि:'।</blockquote>
<blockquote>'उपांतवानीर वनोपगूढ़ान्यालक्षपारिप्लवसारसानि, दूरावतीर्णा पिवतीव खेदादमुनि पंपासलिलानि दृष्टि:'।</blockquote>


*अध्यात्म रामायण, किष्किंधाकांड<ref>अध्यात्म रामायण, किष्किंधाकांड 1, 1-2-3</ref> में पंपा के मनोहारी वर्णन में इसे एक कोस विस्तार वाला अगाध सरोवर बताया गया है-
*[[अध्यात्म रामायण]], किष्किंधाकांड<ref>अध्यात्म रामायण, किष्किंधाकांड 1, 1-2-3</ref> में पंपा के मनोहारी वर्णन में इसे एक कोस विस्तार वाला अगाध सरोवर बताया गया है-


<blockquote>'तत: सलक्ष्मणो राम: शनै: पंपासरस्तटम, आगत्य सरसां श्रेष्ठं दृष्ट्वाविस्मयमायवौ। क्रोशमात्रं सुविस्तीर्णमगाधामलशंबरम्, उत्फुल्लांबुज कह्लार कुमुदोत्पलमडितम्। हंसकारंडवकीर्णचक्रवाकादिशोभितम् जलकुक्कुटकोयशटि क्रौंचनादोपनादितम्।'</blockquote>
<blockquote>'तत: सलक्ष्मणो राम: शनै: पंपासरस्तटम, आगत्य सरसां श्रेष्ठं दृष्ट्वाविस्मयमायवौ। क्रोशमात्रं सुविस्तीर्णमगाधामलशंबरम्, उत्फुल्लांबुज कह्लार कुमुदोत्पलमडितम्। हंसकारंडवकीर्णचक्रवाकादिशोभितम् जलकुक्कुटकोयशटि क्रौंचनादोपनादितम्।'</blockquote>
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Latest revision as of 14:10, 6 April 2015

पंपासरोवर अथवा 'पंपासर' होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायण कालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बायीं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है।

मान्यता

एक पर्वत के नीचे पंपासरोवर नाम से कहा जाने वाला एक छोटा-सा सरोवर है। इसके पास ही एक दूसरा सरोवर भी स्थित है जो, मानसरोवर कहलाता है। पंपासर के निकट पश्चिम में पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर दिखाई पड़ते हैं। पर्वत में एक गुफ़ा भी है, जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर 'शबरी गुफ़ा' कहते हैं। कुछ लोगों का विचार है कि वास्तव में रामायण में वर्णित विशाल पंपासरोवर इसी स्थान पर रहा होगा, जहाँ आज कल हास्पेट का क़स्बा है।

रामायण का वर्णन

वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड[1] ('तौ पुष्करिण्या: पंपायास्तीरमासाद्य पश्चिमम् अपश्यतां सतस्तत्रशवर्या रम्यमाश्रमम्') से सूचित होता है कि पंपासर के तट पर ही शबरी का आश्रम था। किष्किंधा के निकट सुरोवनम् नामक स्थान पर शबरी का आश्रम बताया जाता है। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था-

'शबरी दर्शयामास तावुभौततनंमहत् पश्य, मेघघन प्रख्यं मृगपक्षिसमाकुलम्, मतंगचनमित्येव विश्रुतं रघुनंदन, इहवे भवितात्मानो गुरुवो मे महाद्युते'

  • वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड[2] पंपा के निकट ही मतंगसर नामक झील थी, जो मतंग ऋषि के नाम पर ही प्रसिद्ध थी। हंपी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कालीदास ने पंपासर का सुंदर वर्णन किया है-

'उपांतवानीर वनोपगूढ़ान्यालक्षपारिप्लवसारसानि, दूरावतीर्णा पिवतीव खेदादमुनि पंपासलिलानि दृष्टि:'।

  • अध्यात्म रामायण, किष्किंधाकांड[3] में पंपा के मनोहारी वर्णन में इसे एक कोस विस्तार वाला अगाध सरोवर बताया गया है-

'तत: सलक्ष्मणो राम: शनै: पंपासरस्तटम, आगत्य सरसां श्रेष्ठं दृष्ट्वाविस्मयमायवौ। क्रोशमात्रं सुविस्तीर्णमगाधामलशंबरम्, उत्फुल्लांबुज कह्लार कुमुदोत्पलमडितम्। हंसकारंडवकीर्णचक्रवाकादिशोभितम् जलकुक्कुटकोयशटि क्रौंचनादोपनादितम्।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 549 |

  1. वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड 74, 4
  2. वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड 4, 20-21.
  3. अध्यात्म रामायण, किष्किंधाकांड 1, 1-2-3

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