जोश मलीहाबादी: Difference between revisions

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'''जोश मलीहाबादी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Josh Malihabadi'', वास्तविक नाम: शब्बीर हसन खान, जन्म: [[5 दिसंबर]], [[1894]] – मृत्यु: [[22 फ़रवरी]], [[1982]]) 20वीं शताब्दी के महान् शायरों में से एक थे। ये [[1958]] तक [[भारत]] में रहे फिर [[पाकिस्तान]] चले गए।  ये ग़ज़ल और नज़्मे तखल्लुस 'जोश' नाम से लिखते थे और अपने जन्म स्थान का नाम भी आपने अपने तखल्लुस में जोड़ दिया तो पूरा नाम जोश मलीहाबादी हुआ।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
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==कार्यक्षेत्र==
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==साहित्यिक परिचय==
==साहित्यिक परिचय==
जोश उर्दू साहित्य में [[उर्दू]] पर अधिपत्य और उर्दू व्याकरण के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जाने जाते हैं। इनका पहला शायरी संग्रह सन [[1921]] में प्रकाशित हुआ जिसमें शोला-ओ-शबनम, जुनून-ओ-हिकमत, फ़िक्र-ओ-निशात, सुंबल-ओ-सलासल, हर्फ़-ओ-हिकायत, सरोद-ओ-खरोश और इरफ़ानियत-ए-जोश शामिल है। फ़िल्म निर्देशक डब्ल्यू. ज़ी. अहमद की राय पर इन्होंने शालीमार पिक्चर्स के लिए गीत भी लिखे। 'यादों की बारात' नामक इनकी आत्मकथा है।
जोश उर्दू साहित्य में [[उर्दू]] पर अधिपत्य और उर्दू व्याकरण के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जाने जाते हैं। इनका पहला शायरी संग्रह सन [[1921]] में प्रकाशित हुआ जिसमें शोला-ओ-शबनम, जुनून-ओ-हिकमत, फ़िक्र-ओ-निशात, सुंबल-ओ-सलासल, हर्फ़-ओ-हिकायत, सरोद-ओ-खरोश और इरफ़ानियत-ए-जोश शामिल है। फ़िल्म निर्देशक डब्ल्यू. ज़ी. अहमद की राय पर इन्होंने शालीमार पिक्चर्स के लिए गीत भी लिखे। 'यादों की बारात' नामक इनकी आत्मकथा है।
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* इबादत ( गीत)
* इबादत ( गीत)
==उर्दू के लिए भारत छोड़ा==
==उर्दू के लिए भारत छोड़ा==
जवाहरलाल नेहरू के मनाने पर भी जोश सन 1958 में [[पाकिस्तान]] चले गए। उनका सोचना था कि भारत एक [[हिन्दू]] राष्ट्र है जहाँ [[हिंदी]] भाषा को ज्यादा तवज्जो दी जायगी न की [[उर्दू]] को, जिससे उर्दू का भारत में कोई भविष्य नहीं है। पकिस्तान जाने के बाद ये [[कराची]] में बस गए और आपने मौलवी अब्दुल हक के साथ में "अंजुमन-ए-तरक्की-ए-उर्दू" के लिए काम किया। जोश मलीहाबादी पकिस्तान में अपनी मृत्यु तक अर्थात [[22 फ़रवरी]], [[1982]] तक इस्लामाबाद में ही रहे। फैज़ अहमद फैज़ और सय्यद फ़खरुद्दीन बल्ले दोनों इनके क़रीबी रहे और दोनों सज्जाद हैदर खरोश (जोश के पुत्र) और जोश के मित्र थे। फैज़ अहमद फैज़, जोश की बीमारी के दौरान इस्लामाबाद आये थे। सैय्यद फ़खरुद्दीन बल्ले जोश और सज्जाद हैदर खरोश के साथ जुड़े रहे।<ref name="कविताकोश"/>
जवाहरलाल नेहरू के मनाने पर भी जोश सन 1958 में [[पाकिस्तान]] चले गए। उनका सोचना था कि भारत एक [[हिन्दू]] राष्ट्र है जहाँ [[हिंदी]] भाषा को ज्यादा तवज्जो दी जायगी न की [[उर्दू]] को, जिससे उर्दू का भारत में कोई भविष्य नहीं है। पकिस्तान जाने के बाद ये [[कराची]] में बस गए और आपने मौलवी अब्दुल हक के साथ में "अंजुमन-ए-तरक़्क़ी-ए-उर्दू" के लिए काम किया। जोश मलीहाबादी पकिस्तान में अपनी मृत्यु तक अर्थात् [[22 फ़रवरी]], [[1982]] तक इस्लामाबाद में ही रहे। फैज़ अहमद फैज़ और सय्यद फ़खरुद्दीन बल्ले दोनों इनके क़रीबी रहे और दोनों सज्जाद हैदर खरोश (जोश के पुत्र) और जोश के मित्र थे। फैज़ अहमद फैज़, जोश की बीमारी के दौरान इस्लामाबाद आये थे। सैय्यद फ़खरुद्दीन बल्ले जोश और सज्जाद हैदर खरोश के साथ जुड़े रहे।<ref name="कविताकोश"/>
==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
सन् [[1954]] में भारत सरकार द्वारा [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया।  
सन् [[1954]] में भारत सरकार द्वारा [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया।  

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जोश मलीहाबादी
पूरा नाम शब्बीर हसन खान
अन्य नाम जोश मलीहाबादी (उपनाम)
जन्म 5 दिसंबर, 1894
जन्म भूमि मलीहाबाद, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 22 फ़रवरी, 1982
मृत्यु स्थान इस्लामाबाद, पाकिस्तान
अभिभावक बशीर अहमद खान (पिता)
संतान सज्जाद हैदर खरोश
कर्म भूमि भारत, पाकिस्तान
कर्म-क्षेत्र कवि, शायर, गीतकार
मुख्य रचनाएँ शोला-ओ-शबनम, जुनून-ओ-हिकमत, फ़िक्र-ओ-निशात, सुंबल-ओ-सलासल, हर्फ़-ओ-हिकायत, सरोद-ओ-खरो
भाषा उर्दू, अरबी और फ़ारसी
विद्यालय सेंट पीटर्स कॉलेज आगरा
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण (1954)
प्रसिद्धि शायर-ए-इन्कलाब
आत्मकथा यादों की बारात
अन्य जानकारी फ़िल्म निर्देशक डब्ल्यू. ज़ी. अहमद की राय पर इन्होंने शालीमार पिक्चर्स के लिए गीत भी लिखे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

जोश मलीहाबादी (अंग्रेज़ी: Josh Malihabadi, वास्तविक नाम: शब्बीर हसन खान, जन्म: 5 दिसंबर, 1894 – मृत्यु: 22 फ़रवरी, 1982) 20वीं शताब्दी के महान् शायरों में से एक थे। ये 1958 तक भारत में रहे फिर पाकिस्तान चले गए। ये ग़ज़ल और नज़्मे तखल्लुस 'जोश' नाम से लिखते थे और अपने जन्म स्थान का नाम भी आपने अपने तखल्लुस में जोड़ दिया तो पूरा नाम जोश मलीहाबादी हुआ।

जीवन परिचय

इनका जन्म मलीहाबाद में जन्मे जो कि उत्तर प्रदेश में लखनऊ ज़िले की एक पंचायत है। जोश मलीहाबादी सेंट पीटर्स कॉलेज आगरा में पढ़े और वरिष्ठ कैम्ब्रिज परीक्षा 1914 में उत्तीर्ण की। और साथ ही साथ अरबी और फ़ारसी का अध्ययन भी करते रहे। 6 माह रविंद्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में भी रहे। परन्तु 1916 में आपके पिता बशीर अहमद खान की मृत्यु होने के कारण कॉलेज की आगे पढ़ाई जारी नहीं रख सके।[1]

कार्यक्षेत्र

1925 में जोश ने 'उस्मानिया विश्वविद्यालय' हैदराबाद रियासत में अनुवाद की निगरानी का कार्य शुरू किया। परन्तु उनका यह प्रवास हैदराबाद में ज्यादा दिन न रह सका। अपनी एक नज़्म जो कि रियासत के शासक के ख़िलाफ़ थी जिस कारण से इन्हें राज्य से निष्कासित कर दिया गया। इसके तुरंत बाद जोश ने पत्रिका, कलीम (उर्दू में "वार्ताकार") की स्थापना की, जिसमें उन्होंने खुले तौर पर भारत में ब्रिटिश शासन से आज़ादी के पक्ष में लेख लिखा था, जिससे उनकी ख्याति चहुं ओर फेल गयी और उन्हें शायर-ए-इन्कलाब कहा जाने लगा और इस कारण से इनके रिश्ते कांग्रेस विशेषकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मजबूत हुए। भारत में ब्रिटिश शासन के समाप्त होने के बाद जोश आज-कल प्रकाशन के संपादक बन गए।[1]

साहित्यिक परिचय

जोश उर्दू साहित्य में उर्दू पर अधिपत्य और उर्दू व्याकरण के सर्वोत्तम उपयोग के लिए जाने जाते हैं। इनका पहला शायरी संग्रह सन 1921 में प्रकाशित हुआ जिसमें शोला-ओ-शबनम, जुनून-ओ-हिकमत, फ़िक्र-ओ-निशात, सुंबल-ओ-सलासल, हर्फ़-ओ-हिकायत, सरोद-ओ-खरोश और इरफ़ानियत-ए-जोश शामिल है। फ़िल्म निर्देशक डब्ल्यू. ज़ी. अहमद की राय पर इन्होंने शालीमार पिक्चर्स के लिए गीत भी लिखे। 'यादों की बारात' नामक इनकी आत्मकथा है।

प्रमुख रचनाएँ

  • इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में
  • क़दम इंसान का राहे-दहर में
  • क़सम है आपके हर रोज़ रूठ जाने की
  • नराए-शबाब
  • शिकस्‍ते-ज़िंदां का ख़्वाब
  • हिन्‍दोस्‍ताँ के वास्‍ते
  • आसारे - इंक़िलाब
  • ऐ मलीहाबाद के रंगीं गुलिस्तां
  • आदमी
  • इबादत ( गीत)

उर्दू के लिए भारत छोड़ा

जवाहरलाल नेहरू के मनाने पर भी जोश सन 1958 में पाकिस्तान चले गए। उनका सोचना था कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है जहाँ हिंदी भाषा को ज्यादा तवज्जो दी जायगी न की उर्दू को, जिससे उर्दू का भारत में कोई भविष्य नहीं है। पकिस्तान जाने के बाद ये कराची में बस गए और आपने मौलवी अब्दुल हक के साथ में "अंजुमन-ए-तरक़्क़ी-ए-उर्दू" के लिए काम किया। जोश मलीहाबादी पकिस्तान में अपनी मृत्यु तक अर्थात् 22 फ़रवरी, 1982 तक इस्लामाबाद में ही रहे। फैज़ अहमद फैज़ और सय्यद फ़खरुद्दीन बल्ले दोनों इनके क़रीबी रहे और दोनों सज्जाद हैदर खरोश (जोश के पुत्र) और जोश के मित्र थे। फैज़ अहमद फैज़, जोश की बीमारी के दौरान इस्लामाबाद आये थे। सैय्यद फ़खरुद्दीन बल्ले जोश और सज्जाद हैदर खरोश के साथ जुड़े रहे।[1]

सम्मान और पुरस्कार

सन् 1954 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 जोश मलीहाबादी / परिचय (हिंदी) कविताकोश। अभिगमन तिथि: 13 फ़रवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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