इंटर लिंगुआ: Difference between revisions
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'''इंटर लिंगुआ''' शब्द का अर्थ अंतर्भाषा होता है अर्थात् अनेक भाषाओं के मध्य एक सर्वनिष्ठ भाषा। चूँकि एक भाषा दूसरी से सर्वथा पृथक् होती है अत: ऐसी भाषा स्वाभाविक न होकर कृत्रिम ही हो सकती है। आधुनिक युग में (20वीं शताब्दी में) विश्व अंतर्भाषा बनाने के दो प्रयास किए गए। प्रथम प्रयास 1908 ई. में गिउसेपो पेअनो नामक भाषाविद् द्वारा किया गया और दूसरा प्रयास अंतरराष्ट्रीय सहकारी भाषा संस्था (इंटरनैशनल आक्जीलरी लैंग्वेज एसोसियेशन) द्वारा किया गया, किंतु भाषा की लोकप्रियता की दृष्टि से सफलता नहीं मिली। इसी प्रकार की एक अन्य विश्वभाषा एसपिरेंतो की रचना | '''इंटर लिंगुआ''' शब्द का अर्थ अंतर्भाषा होता है अर्थात् अनेक भाषाओं के मध्य एक सर्वनिष्ठ भाषा। चूँकि एक भाषा दूसरी से सर्वथा पृथक् होती है अत: ऐसी भाषा स्वाभाविक न होकर कृत्रिम ही हो सकती है। आधुनिक युग में (20वीं शताब्दी में) विश्व अंतर्भाषा बनाने के दो प्रयास किए गए। प्रथम प्रयास 1908 ई. में गिउसेपो पेअनो नामक भाषाविद् द्वारा किया गया और दूसरा प्रयास अंतरराष्ट्रीय सहकारी भाषा संस्था (इंटरनैशनल आक्जीलरी लैंग्वेज एसोसियेशन) द्वारा किया गया, किंतु भाषा की लोकप्रियता की दृष्टि से सफलता नहीं मिली। इसी प्रकार की एक अन्य विश्वभाषा एसपिरेंतो की रचना डॉ.एल.एल. जर्मेनहाफ ने 1887 ई. में की, जो अपेक्षाकृत 1925 ई. के पश्चात् अधिक लोकप्रिय हुई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=495 |url=}}</ref> | ||
Latest revision as of 09:47, 4 February 2021
इंटर लिंगुआ शब्द का अर्थ अंतर्भाषा होता है अर्थात् अनेक भाषाओं के मध्य एक सर्वनिष्ठ भाषा। चूँकि एक भाषा दूसरी से सर्वथा पृथक् होती है अत: ऐसी भाषा स्वाभाविक न होकर कृत्रिम ही हो सकती है। आधुनिक युग में (20वीं शताब्दी में) विश्व अंतर्भाषा बनाने के दो प्रयास किए गए। प्रथम प्रयास 1908 ई. में गिउसेपो पेअनो नामक भाषाविद् द्वारा किया गया और दूसरा प्रयास अंतरराष्ट्रीय सहकारी भाषा संस्था (इंटरनैशनल आक्जीलरी लैंग्वेज एसोसियेशन) द्वारा किया गया, किंतु भाषा की लोकप्रियता की दृष्टि से सफलता नहीं मिली। इसी प्रकार की एक अन्य विश्वभाषा एसपिरेंतो की रचना डॉ.एल.एल. जर्मेनहाफ ने 1887 ई. में की, जो अपेक्षाकृत 1925 ई. के पश्चात् अधिक लोकप्रिय हुई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 495 |