शौक़ बहराइची: Difference between revisions
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==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
शौक़ बहराइची का जन्म [[6 जून]], [[1884]] को [[अयोध्या]] के सैयदवाड़ा मोहल्ले में एक साधारण [[मुस्लिम]] [[शिया]] [[परिवार]] में हुआ था। इनके जन्म का नाम 'रियासत हुसैन रिज़वी' था जो बाद में बहराइच में रहने के कारण बहराइची हुआ। यहीं पर उन्होंने ग़रीबी में भी शायरी से नाता जमाए रखा। रियासत हुसैन रिज़वी उर्फ ‘शौक़ बहराइची’ के नाम से शायरी के नए आयाम गढ़ने लगे, जो काम [[13 जनवरी]], [[1964]] में हुई उनकी मौत तक बदस्तूर जारी रहा। उनके बारे में जो भी जानकारी प्रामाणिक रूप से मिली, वह उनकी मौत के तकरीबन 50 साल बाद बहराइच जनपद के निवासी व लोक निर्माण विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर ताहिर हुसैन नक़वी के नौ वर्षों की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने उनके शेरों को संकलित कर ‘तूफ़ान’ किताब की शक्ल दी गयी है।<ref name="जनज्वार">{{cite web |url=http://www.janjwar.com/society/1-society/3602-mashhoor-sher-ke-gumnam-shayar-shauk-baharaichi |title=मशहूर शेर का गुमनाम शायर |accessmonthday=29 जनवरी |accessyear=2013 |last=शाही |first=हरिशंकर |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जनज्वार|language=हिंदी }} </ref> | |||
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ताहिर | ताहिर नक़वी बताते हैं “जितने मशहूर अन्तराष्ट्रीय शायर शौक़ साहब हुआ करते थे उतनी ही मुश्किलें उनके शेरों को ढूँढने में सामने आईं, निहायत ही ग़रीबी में जीने वाले शौक़ की मौत के बाद उनकी पीढ़ियों ने उनके कलाम या शेरों को सहेजा नहीं, अपनी खोज के दौरान तमाम कबाडी की दुकानों से खुशामत करके और ढूंढ ढूंढकर उनके लिखे हुए शेरों को खोजना पड़ा”। शौक़ बहराइची की एक मात्र आयल पेंटिग वाली फोटो के बारे में ताहिर नक़वी बताते हैं “यह फोटो भी हमें अचानक एक कबाड़ी की ही दुकान पर मिल गई अन्यथा इनकी कोई भी फोटो मौजूद नहीं थी।” व्यंग जिसे [[उर्दू]] में तंज ओ मजाहिया कहा जाता है इसी विधा के शायर शौक़ ने अपना वह मशहूर शेर [[बहराइच]] की कैसरगंज विधानसभा से विधायक और [[1957]] के प्रदेश मंत्री मंडल में कैबिनेट स्वास्थ मंत्री रहे हुकुम सिंह की एक स्वागत सभा में पढ़ा था जहाँ से यह मशहूर होता ही चला गया। ताहिर नक़वी बताते हैं कि यह शेर जो प्रचलित है उसमें और उनके लिखे में थोडा सा अंतर कहीं कहीं होता रहता है। वह बताते हैं कि सही शेर यह है “बर्बाद ऐ गुलशन कि खातिर बस एक ही उल्लू काफ़ी था, हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम ऐ गुलशन क्या होगा”<ref name="जनज्वार"/> | ||
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Latest revision as of 05:05, 29 May 2015
शौक़ बहराइची
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पूरा नाम | रियासत हुसैन रिज़वी |
अन्य नाम | शौक़ बहराइची |
जन्म | 6 जून, 1884 |
जन्म भूमि | सैयदवाड़ा मोहल्ला, अयोध्या |
मृत्यु | 13 जनवरी, 1964 |
कर्म-क्षेत्र | शायर |
विषय | उर्दू शायरी |
नागरिकता | भारतीय |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
शौक़ बहराइची (अंग्रेज़ी: Shauq Bahraichi, जन्म: 6 जून, 1884 - मृत्यु: 13 जनवरी, 1964) का वास्तविक नाम 'रियासत हुसैन रिज़वी' था। ये बहुत प्रसिद्ध शायर थे। नेताओं व ग़लत कार्यों में लिप्त व्यक्तियों पर कटाक्ष करने के लिए नीचे दिया गया शेर देश में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है पर बहुत कम ऐसे लोग हैं, जिन्हें यह पता होगा कि इस शेर को लिखने वाले शायर का नाम 'शौक़ बहराइची' है।
‘बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है
हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा।’
जीवन परिचय
शौक़ बहराइची का जन्म 6 जून, 1884 को अयोध्या के सैयदवाड़ा मोहल्ले में एक साधारण मुस्लिम शिया परिवार में हुआ था। इनके जन्म का नाम 'रियासत हुसैन रिज़वी' था जो बाद में बहराइच में रहने के कारण बहराइची हुआ। यहीं पर उन्होंने ग़रीबी में भी शायरी से नाता जमाए रखा। रियासत हुसैन रिज़वी उर्फ ‘शौक़ बहराइची’ के नाम से शायरी के नए आयाम गढ़ने लगे, जो काम 13 जनवरी, 1964 में हुई उनकी मौत तक बदस्तूर जारी रहा। उनके बारे में जो भी जानकारी प्रामाणिक रूप से मिली, वह उनकी मौत के तकरीबन 50 साल बाद बहराइच जनपद के निवासी व लोक निर्माण विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर ताहिर हुसैन नक़वी के नौ वर्षों की मेहनत का नतीजा है। उन्होंने उनके शेरों को संकलित कर ‘तूफ़ान’ किताब की शक्ल दी गयी है।[1]
ग़रीबी में बीता जीवन
ताहिर नक़वी बताते हैं “जितने मशहूर अन्तराष्ट्रीय शायर शौक़ साहब हुआ करते थे उतनी ही मुश्किलें उनके शेरों को ढूँढने में सामने आईं, निहायत ही ग़रीबी में जीने वाले शौक़ की मौत के बाद उनकी पीढ़ियों ने उनके कलाम या शेरों को सहेजा नहीं, अपनी खोज के दौरान तमाम कबाडी की दुकानों से खुशामत करके और ढूंढ ढूंढकर उनके लिखे हुए शेरों को खोजना पड़ा”। शौक़ बहराइची की एक मात्र आयल पेंटिग वाली फोटो के बारे में ताहिर नक़वी बताते हैं “यह फोटो भी हमें अचानक एक कबाड़ी की ही दुकान पर मिल गई अन्यथा इनकी कोई भी फोटो मौजूद नहीं थी।” व्यंग जिसे उर्दू में तंज ओ मजाहिया कहा जाता है इसी विधा के शायर शौक़ ने अपना वह मशहूर शेर बहराइच की कैसरगंज विधानसभा से विधायक और 1957 के प्रदेश मंत्री मंडल में कैबिनेट स्वास्थ मंत्री रहे हुकुम सिंह की एक स्वागत सभा में पढ़ा था जहाँ से यह मशहूर होता ही चला गया। ताहिर नक़वी बताते हैं कि यह शेर जो प्रचलित है उसमें और उनके लिखे में थोडा सा अंतर कहीं कहीं होता रहता है। वह बताते हैं कि सही शेर यह है “बर्बाद ऐ गुलशन कि खातिर बस एक ही उल्लू काफ़ी था, हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम ऐ गुलशन क्या होगा”[1]
गुमनाम शायर
शौक़ बहराइची की मौत के 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी इनके बारे में कहीं कोई सुध ना लेना एक मशहूर शायर को काफ़ी गुमनाम मौत देने का जिम्मेदार साहित्य की दुनिया को माना जा सकता है। शौक़ की इस गुमनामियत पर उनका ही एक और मशहूर शेर सही बैठता है।
“अल्लाहो गनी इस दुनिया में, सरमाया परस्ती का आलम, बेज़र का कोई बहनोई नहीं, ज़रदार के लाखों साले हैं”
शौक़ बहराइची के बहराइच में बीते दिन काफ़ी ग़रीबी में रहे और यहाँ तक की उन्हें कोई मदद भी नहीं मिलती रही। आज़ादी के बाद सरकार की ओर से कुछ पेंशन बाँध देने के बाद भी जब पेंशन की रकम उन तक नहीं पहुंची तो बहुत बीमार चल रहे शायर शौक़ के मन ने उस पर भी तंज कर ही दिया।[1]
“सांस फूलेगी खांसी सिवा आएगी, लब पे जान हजी बराह आएगी, दादे फ़ानी से जब शौक़ उठ जाएगा, तब मसीहा के घर से दवा आएगी”
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 शाही, हरिशंकर। मशहूर शेर का गुमनाम शायर (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) जनज्वार। अभिगमन तिथि: 29 जनवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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