हरविलास शारदा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 33: Line 33:
अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात हरविलास शारदा जज की अदालत में अनुवादक रहे। राजस्थान में [[जैसलमेर]] के राजा के अभिभावक रहे और [[1902]] में अमजेर के कमिश्नर के कार्यालय में 'वर्नाक्यूलर सुपरिटेंडेट' भी बने। रजिस्ट्रार, सब जज और [[अजमेर]]-[[मारवाड़]] के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद [[1924]] में वे इस सेवा से निवृत्त हुए।
अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात हरविलास शारदा जज की अदालत में अनुवादक रहे। राजस्थान में [[जैसलमेर]] के राजा के अभिभावक रहे और [[1902]] में अमजेर के कमिश्नर के कार्यालय में 'वर्नाक्यूलर सुपरिटेंडेट' भी बने। रजिस्ट्रार, सब जज और [[अजमेर]]-[[मारवाड़]] के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद [[1924]] में वे इस सेवा से निवृत्त हुए।
==समाज सेवक==
==समाज सेवक==
[[समाज सेवा]] के क्षेत्र हरविलास शारदा आरंभ से ही अग्रणी थे। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित 'परोपकारिणी सभा' के सचिव के रूप में उन्होंने काम किया और [[लाहौर]] में हुए 'इंडियन नेशनल सोशल सम्मेलन' की अध्यक्षता की। 1924 में [[बरेली]] के अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी वही थे।
[[समाज सेवा]] के क्षेत्र में हरविलास शारदा आरंभ से ही अग्रणी थे। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित 'परोपकारिणी सभा' के सचिव के रूप में उन्होंने काम किया और [[लाहौर]] में हुए 'इंडियन नेशनल सोशल सम्मेलन' की अध्यक्षता की। 1924 में [[बरेली]] के अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी वही थे।
==शारदा बिल==
==शारदा बिल==
हरविलास शारदा 1924 में अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। इसी सीट से 1924 और [[1930]] में उन्हें पुन: निर्वाचित किया गया। इस सदस्यता की अवधि में ही उन्होंने समाज सुधार का ऐसा कार्य किया, जिसके लिए उनका नाम [[इतिहास]] में स्थायी हो गया। [[भारत]] में लड़कियों के [[बाल विवाह]] की बड़ी चिंताजनक प्रथा थी। इन्होंने केंद्रीय असेम्बली से इसे रोकने के लिए [[1925]] में एक बिल पेश किया। 'शारदा बिल' के नाम से प्रसिद्ध यह बिल [[सितंबर]], [[1929]] में पास हुआ और [[1 अप्रैल]], [[1930]] से पूरे देश में लागू किया गया। समाज सेवा के कार्यों के लिए सरकार ने उन्हें 'राय बहादुर' और 'दीवान बहादुर' की पदवियों से अलंकृत किया था।
हरविलास शारदा 1924 में अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। इसी सीट से 1924 और [[1930]] में उन्हें पुन: निर्वाचित किया गया। इस सदस्यता की अवधि में ही उन्होंने समाज सुधार का ऐसा कार्य किया, जिसके लिए उनका नाम [[इतिहास]] में स्थायी हो गया। [[भारत]] में लड़कियों के [[बाल विवाह]] की बड़ी चिंताजनक प्रथा थी। इन्होंने केंद्रीय असेम्बली से इसे रोकने के लिए [[1925]] में एक बिल पेश किया। 'शारदा बिल' के नाम से प्रसिद्ध यह बिल [[सितंबर]], [[1929]] में पास हुआ और [[1 अप्रैल]], [[1930]] से पूरे देश में लागू किया गया। समाज सेवा के कार्यों के लिए सरकार ने उन्हें 'राय बहादुर' और 'दीवान बहादुर' की पदवियों से अलंकृत किया था।

Revision as of 10:03, 13 December 2016

हरविलास शारदा
जन्म 3 जून, 1867
जन्म स्थान जैसलमेर, राजस्थान
मृत्यु 20 जनवरी, 1955
ग्रंथ 'हिंदू सुपीरियॉरिटी', 'महाराजा कुंभा', 'महाराजा सांगा', 'शंकराचार्य और दयानन्द' तथा 'लाइफ ऑफ़ स्वामी दयानन्द सरस्वती।'
सुधार कार्य हरविलास शारदा ने केंद्रीय असेम्बली से इसे रोकने के लिए 1925 में एक बिल पेश किया। 'शारदा बिल' के नाम से प्रसिद्ध यह बिल सितंबर, 1929 में पास हुआ और 1 अप्रैल 1930 से पूरे देश में लागू किया गया।
पदवी 'राय बहादुर' और 'दीवान बहादुर' की पदवियों से अलंकृत।
अन्य जानकारी 1924 में हरविलास शारदा अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। इसी सीट से 1924 और 1930 में उन्हें पुन: निर्वाचित किया गया। इस सदस्यता की अवधि में ही उन्होंने समाज सुधार का ऐसा कार्य किया, जिसके लिए उनका नाम इतिहास में स्थायी हो गया।

हरविलास शारदा (अंग्रेज़ी:Harbilas Sharda, जन्म-3 जून 1867; मृत्यु-20 जनवरी 1955) भारत के प्रसिद्ध शिक्षाविद, राजनेता, समाज सुधारक, न्यायविद और लेखक थे। वह बाल-विवाह प्रथा पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से, बहुचर्चित 'शारदा ऐक्ट' के प्रकल्पक थे। हरविलास जी समाज सेवा के क्षेत्र में वे आरंभ से ही अग्रणी थे। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित 'परोपकारिणी सभा' के सचिव के रूप में उन्होंने काम किया था। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ- 'हिंदू सुपीरियॉरिटी' है। इस ग्रन्थ में उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि इतिहास काल में सभी क्षेत्रों में हिंदू सभ्यता अन्य देशों से बहुत आगे थी।

परिचय

हरविलास शारदा का जन्म 3 जून, 1867 ई. को अजमेर, राजस्थान में हुआ था। अपने पिता से महाभारत और रामायण की कहानियाँ सुनकर उनके अंदर हिंदुत्व के संस्कार पुष्ट हुए। उन्हें स्वामी दयानंद सरस्वती के भाषण सुनने और उनके संपर्क में आने का भी अवसर मिला। आगरा कॉलेज से स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने आजीविका के लिए अनेक कार्य किए।

व्यावसायिक जीवन

अपनी शिक्षा पूरी करने के पश्चात हरविलास शारदा जज की अदालत में अनुवादक रहे। राजस्थान में जैसलमेर के राजा के अभिभावक रहे और 1902 में अमजेर के कमिश्नर के कार्यालय में 'वर्नाक्यूलर सुपरिटेंडेट' भी बने। रजिस्ट्रार, सब जज और अजमेर-मारवाड़ के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद 1924 में वे इस सेवा से निवृत्त हुए।

समाज सेवक

समाज सेवा के क्षेत्र में हरविलास शारदा आरंभ से ही अग्रणी थे। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित 'परोपकारिणी सभा' के सचिव के रूप में उन्होंने काम किया और लाहौर में हुए 'इंडियन नेशनल सोशल सम्मेलन' की अध्यक्षता की। 1924 में बरेली के अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी वही थे।

शारदा बिल

हरविलास शारदा 1924 में अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गए। इसी सीट से 1924 और 1930 में उन्हें पुन: निर्वाचित किया गया। इस सदस्यता की अवधि में ही उन्होंने समाज सुधार का ऐसा कार्य किया, जिसके लिए उनका नाम इतिहास में स्थायी हो गया। भारत में लड़कियों के बाल विवाह की बड़ी चिंताजनक प्रथा थी। इन्होंने केंद्रीय असेम्बली से इसे रोकने के लिए 1925 में एक बिल पेश किया। 'शारदा बिल' के नाम से प्रसिद्ध यह बिल सितंबर, 1929 में पास हुआ और 1 अप्रैल, 1930 से पूरे देश में लागू किया गया। समाज सेवा के कार्यों के लिए सरकार ने उन्हें 'राय बहादुर' और 'दीवान बहादुर' की पदवियों से अलंकृत किया था।

लेखन कार्य

हरविलास शारदा जानेमाने लेखक भी थे। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ- 'हिंदू सुपीरियॉरिटी' है। 1906 में प्रकाशित इस ग्रन्थ में उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि इतिहास काल में सभी क्षेत्रों में हिंदू सभ्यता अन्य देशों से बहुत आगे थी। उनके कुछ अन्य ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-

  1. 'महाराजा कुंभा'
  2. 'महाराजा सांगा'
  3. 'शंकराचार्य और दयानन्द'
  4. 'लाइफ़ ऑफ़ स्वामी दयानन्द सरस्वती'

निधन

हरविलास शारदा का 20 जनवरी, 1952 में देहांत हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 973 |


सम्बंधित लेख