अहम का वहम -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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हमारे आस-पास अक्सर ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनमें कोई न कोई विशेष प्रतिभा होती है लेकिन वे सफल नहीं होते और भाग्य को दोष देते मिलते हैं। जबकि वे यह नहीं जान पाते कि उनकी सफलता का रास्ता रोकने के लिए अहंकार हर समय उनके मस्तिष्क पर शासन करता है। प्रतिभा को निखारने के लिए हमें अपने ऊपर से ध्यान हटाना पड़ता है और उसके बाद ही हमारा ध्यान प्रतिभा को निखारने में लगता है। कोई जन्म से '[[ए. आर. रहमान|रहमान]]' या '[[गुलज़ार]]' नहीं होता वरन् उसे ख़ुद को भुलाकर अपनी साधना पर ध्यान देना होता है तब कहीं जाकर सफलता मिलती है। इसे यूँ कहा जाय तो अधिक सही होगा कि साधना में इतना खो जाया जाय कि ख़ुद को भूल जाएँ। | हमारे आस-पास अक्सर ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनमें कोई न कोई विशेष प्रतिभा होती है लेकिन वे सफल नहीं होते और भाग्य को दोष देते मिलते हैं। जबकि वे यह नहीं जान पाते कि उनकी सफलता का रास्ता रोकने के लिए अहंकार हर समय उनके मस्तिष्क पर शासन करता है। प्रतिभा को निखारने के लिए हमें अपने ऊपर से ध्यान हटाना पड़ता है और उसके बाद ही हमारा ध्यान प्रतिभा को निखारने में लगता है। कोई जन्म से '[[ए. आर. रहमान|रहमान]]' या '[[गुलज़ार]]' नहीं होता वरन् उसे ख़ुद को भुलाकर अपनी साधना पर ध्यान देना होता है तब कहीं जाकर सफलता मिलती है। इसे यूँ कहा जाय तो अधिक सही होगा कि साधना में इतना खो जाया जाय कि ख़ुद को भूल जाएँ। | ||
सिग्मन्ड फ्रॉयड ने मनुष्य के मनोविज्ञान पर गहन अध्ययन किया है और मनोविश्लेषण के प्रत्येक आयाम पर लिखा है। फ्रॉयड के विचार से मनुष्य के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण काम वासना है। उनका कहना है कि सॅक्स ही जीवन में सब कुछ करवाता है और मनुष्य के जीवन की धुरी काम वासना पर ही टिकी है। लेकिन जॉन ड्युई का कहना कुछ और ही है। अमरीका के मशहूर दार्शनिक और शिक्षा विद् जॉन ड्युई (Jhon Dewey 1869-1952) ने छात्रों को लिखाई-पढ़ाई वाली शिक्षा के स्थान पर अनुप्रयुक्त शिक्षा या व्यावहारिक शिक्षा पर नये और प्रभावशाली प्रयोग किए और इसी पर ज़ोर दिया ख़ैर... वे कहते हैं कि 'the deepest urge in human nature is “the desire to be important.”' | सिग्मन्ड फ्रॉयड ने मनुष्य के मनोविज्ञान पर गहन अध्ययन किया है और मनोविश्लेषण के प्रत्येक आयाम पर लिखा है। फ्रॉयड के विचार से मनुष्य के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण काम वासना है। उनका कहना है कि सॅक्स ही जीवन में सब कुछ करवाता है और मनुष्य के जीवन की धुरी काम वासना पर ही टिकी है। लेकिन जॉन ड्युई का कहना कुछ और ही है। अमरीका के मशहूर दार्शनिक और शिक्षा विद् जॉन ड्युई (Jhon Dewey 1869-1952) ने छात्रों को लिखाई-पढ़ाई वाली शिक्षा के स्थान पर अनुप्रयुक्त शिक्षा या व्यावहारिक शिक्षा पर नये और प्रभावशाली प्रयोग किए और इसी पर ज़ोर दिया ख़ैर... वे कहते हैं कि 'the deepest urge in human nature is “the desire to be important.”' | ||
अर्थात् मनुष्य की सर्वोपरि इच्छा है 'महत्त्वपूर्ण बनना'। जॉन ड्युई का मानना है कि महत्त्वपूर्ण बनने की चाह मनुष्य को कुछ भी करवाने में सक्षम है। अब अधिकतर मनोवैज्ञानिक जॉन ड्युई से ही सहमत हैं फ्रॉयड से नहीं। | |||
बात तो जॉन ड्युई ने सही कही है क्योंकि महत्त्वपूर्ण बनने के लिए मनुष्य- बड़े से बड़ा त्याग, हिंसा, युद्ध, अपराध, नरसंहार, लालच, पाप, पुण्य आदि कुछ भी कर सकता है। यदि मनुष्य में यह इच्छा न होती तो अनेक युद्ध और अपराध न हुए होते। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिनमें यदि राजा बनकर महत्त्व न मिला तो संन्यासी बनने तक का ज़िक्र आता है। | बात तो जॉन ड्युई ने सही कही है क्योंकि महत्त्वपूर्ण बनने के लिए मनुष्य- बड़े से बड़ा त्याग, हिंसा, युद्ध, अपराध, नरसंहार, लालच, पाप, पुण्य आदि कुछ भी कर सकता है। यदि मनुष्य में यह इच्छा न होती तो अनेक युद्ध और अपराध न हुए होते। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिनमें यदि राजा बनकर महत्त्व न मिला तो संन्यासी बनने तक का ज़िक्र आता है। | ||
महत्त्व प्राप्ति की इच्छा और सफल होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। एक सफल जीवन का अर्थ एक सकारात्मक और समाज के हित का जीवन है जिसमें अपना हित भी निहित हो। महत्त्वपूर्ण होने की जहाँ तक बात है तो कोई भी किसी तरह भी हो सकता है। | महत्त्व प्राप्ति की इच्छा और सफल होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। एक सफल जीवन का अर्थ एक सकारात्मक और समाज के हित का जीवन है जिसमें अपना हित भी निहित हो। महत्त्वपूर्ण होने की जहाँ तक बात है तो कोई भी किसी तरह भी हो सकता है। |
Revision as of 07:46, 7 November 2017
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश अहम का वहम -आदित्य चौधरी कहते हैं कि बादशाह अकबर वृन्दावन में स्वामी हरिदास के दर्शन करने संगीत सम्राट तानसेन के साथ आया था। स्वामी जी के मुख से यमुना की महिमा सुनकर अकबर की इच्छा यमुना पूजन करने की हुई। सभी पंडे पुजारी जानते थे कि जो भी अकबर को यमुना पूजन करवाएगा उसे अकबर बहुत बड़ा इनाम देगा। सभी में होड़ लगी थी कि कौन कराएगा पूजन ! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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