शरभ (शिव अवतार): Difference between revisions
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'''शरभ''' भगवान [[शिव]] के [[अवतार]] थे। इनका आधा शरीर सिंह का था। वे दो पंख, चोंच, सहस्र भुजा, शीश पर जटा, मस्तक पर चंद्र से युक्त थे। भयंकर [[दाँत]] एवं नख ही उनके [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] थे। [[शिवपुराण]] में इनकी कथा का वर्णन है। | '''शरभ''' भगवान [[शिव]] के [[अवतार]] थे। इनका आधा शरीर सिंह का था। वे दो पंख, चोंच, सहस्र भुजा, शीश पर जटा, मस्तक पर चंद्र से युक्त थे। भयंकर [[दाँत]] एवं नख ही उनके [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र-शस्त्र]] थे। [[शिवपुराण]] में इनकी कथा का वर्णन है। | ||
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[[चित्र:Statue-Shiva-Bangalore.jpg|thumb|230px| शिव मूर्ति, बैंगलूर]] शरभ भगवान शिव के अवतार थे। इनका आधा शरीर सिंह का था। वे दो पंख, चोंच, सहस्र भुजा, शीश पर जटा, मस्तक पर चंद्र से युक्त थे। भयंकर दाँत एवं नख ही उनके अस्त्र-शस्त्र थे। शिवपुराण में इनकी कथा का वर्णन है।
कथा
दिति के दो पुत्र हुए-बड़े का नाम 'कनककशिपु' तथा छोटे का नाम 'कलकाक्ष' था। दोनों देवताओं के पुत्र थे। कनककशिपु के चार पुत्र हुए, जिसमें सबसे छोटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। वह अपने सहपाठियों और मित्रों को भी विष्णुभक्ति की महिमा समझाता था। देवशत्रु कनककशिपु ने क्रुद्ध होकर उसे धरती पर पटक दिया, किन्तु उसने विष्णु पूजन नहीं छोड़ा तो पिता ने हाथ में तलवार उठाकर कहा-"कहाँ है तेरा विष्णु?" प्रह्लाद ने उत्तर दिया-"वह तो सर्वत्र हैं।" "फिर इस खम्बे से क्यों नहीं निकलता?" लोहे के खम्बे पर तलवार से प्रहार करके कनककशिपु ने पूछा। खम्बे से तुरन्त ही नरहरि के रूप में विष्णु अवतरित हुए। उन्होंने कनककशिपु का उदर चीरकर उसे मार डाला, किन्तु उनका क्रोध शान्त नहीं हुआ।
नरहरि विष्णु के क्रोध से सभी देवता थर्राने लगे। अन्त में शिव ने अपने भक्त वीरभद्र को उनका क्रोध शान्त करने के लिए भेजा। वीरभद्र ने और भी अधिक भयानक रूप धारण करके विष्णु का अंहकार तथा क्रोध नष्ट कर डाला। वीरभद्र ने नरहरि से कहा-"तुम प्रकृति तथा शिव पुरुष हो। उन्होंने विष्णु में अपना वीर्य स्थापित किया था, इसी से विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न हुआ, जिस पर ब्रह्मा प्रकट हुए। तदनन्दर शिव के 'शरभ' नामक अवतार के दर्शन हुए। शिव ने विष्णु को प्रेरित किया कि वह अन्य भक्तों की ओर ध्यान दें।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 305 |
- ↑ शिवपुराण, 7|21-22|-