कमाल अमरोही: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{सूचना बक्सा कलाकार
|चित्र=Kamal-Amrohi.jpg
|चित्र का नाम=कमाल अमरोही
|पूरा नाम=सैयद आमिर हैदर कमाल अमरोही
|प्रसिद्ध नाम=कमाल अमरोही
|अन्य नाम=
|जन्म= [[17 जनवरी]], [[1918]]
|जन्म भूमि=[[अमरोहा]], [[उत्तर प्रदेश]]
|मृत्यु=[[11 फरवरी]], [[1993]]
|मृत्यु स्थान=
|अविभावक=
|पति/पत्नी=3 (बानो, महमूदी, [[मीना कुमारी]])
|संतान=शानदार, ताजदार और रुखसार
|कर्म भूमि=
|कर्म-क्षेत्र=गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य फ़िल्में=महल, पाकीज़ा और रज़िया सुल्तान
|विषय=
|शिक्षा=
|विद्यालय=
|पुरस्कार-उपाधि=फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संवाद पुरस्कार: [[मुग़ल-ए-आजम]]
|प्रसिद्धि=
|विशेष योगदान=कमाल अमरोही ने [[1953]] में 'कमाल पिक्चर्स' और [[1958]] में [[कमालिस्तान स्टूडियो]] की स्थापना की।
|नागरिकता=
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|16:22, 24 मार्च 2012 (IST)}}
}}
महल, पाकीज़ा और रज़िया सुल्तान जैसी भव्य कलात्मक फिल्मों से परदे पर काव्य की रचना करने वाले निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही ने बेहतरीन गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक के रूप में भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और उसे एक दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पाकीज़ा उनके ज़िंदगी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी। अपने फिल्मी जीवन के आखिरी दौर में वह 'अंतिम मुग़ल' नाम से फिल्म बनाना चाहते थे, लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया।
महल, पाकीज़ा और रज़िया सुल्तान जैसी भव्य कलात्मक फिल्मों से परदे पर काव्य की रचना करने वाले निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही ने बेहतरीन गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक के रूप में भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और उसे एक दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पाकीज़ा उनके ज़िंदगी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी। अपने फिल्मी जीवन के आखिरी दौर में वह 'अंतिम मुग़ल' नाम से फिल्म बनाना चाहते थे, लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया।
==परिचय==
==परिचय==
Line 32: Line 65:
अपने कमाल से दर्शकों को बांध देने वाला यह अजीम शख्सियत 11 फरवरी 1993 को इस दुनिया को अलविदा कह गई।
अपने कमाल से दर्शकों को बांध देने वाला यह अजीम शख्सियत 11 फरवरी 1993 को इस दुनिया को अलविदा कह गई।


 
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Revision as of 10:52, 24 March 2012

कमाल अमरोही
पूरा नाम सैयद आमिर हैदर कमाल अमरोही
प्रसिद्ध नाम कमाल अमरोही
जन्म 17 जनवरी, 1918
जन्म भूमि अमरोहा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 11 फरवरी, 1993
पति/पत्नी 3 (बानो, महमूदी, मीना कुमारी)
संतान शानदार, ताजदार और रुखसार
कर्म-क्षेत्र गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक
मुख्य फ़िल्में महल, पाकीज़ा और रज़िया सुल्तान
पुरस्कार-उपाधि फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संवाद पुरस्कार: मुग़ल-ए-आजम
विशेष योगदान कमाल अमरोही ने 1953 में 'कमाल पिक्चर्स' और 1958 में कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की।
अद्यतन‎

महल, पाकीज़ा और रज़िया सुल्तान जैसी भव्य कलात्मक फिल्मों से परदे पर काव्य की रचना करने वाले निर्माता-निर्देशक कमाल अमरोही ने बेहतरीन गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक तथा निर्माता एवं निर्देशक के रूप में भारतीय सिनेमा पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और उसे एक दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पाकीज़ा उनके ज़िंदगी का ड्रीम प्रोजेक्ट थी। अपने फिल्मी जीवन के आखिरी दौर में वह 'अंतिम मुग़ल' नाम से फिल्म बनाना चाहते थे, लेकिन उनका यह ख्वाब अधूरा ही रह गया।

परिचय

कमाल अमरोही का मूल नाम 'सैयद आमिर हैदर' था। 17 जनवरी 1918 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा के जमींदार परिवार में जन्मे कमाल अमरोही के मुम्बई तक पहुँचने और फिर सफलता का इतिहास रचने की कहानी किसी फिल्मी कहानी की भाँति है। बचपन में अपनी शरारतों से वह पूरे गाँव को परेशान करते थे। एक बार अपनी अम्मी के डाँटने पर उन्होंने वादा किया कि वह एक दिन मशहूर होंगे और उनके पल्लू को चाँदी के सिक्कों से भर देंगे। उनकी शरारतों से तंग होकर एक दिन उनके बड़े भाई ने उन्हें गुस्से में थप्पड़ रसीद कर दिया तो कमाल अमरोही नाराज़गी में घर से भागकर लाहौर पहुँच गए।

कमाल अमरोही के लिए लाहौर उनके जीवन की दिशा बदलने वाला साबित हुआ। वहाँ उन्होंने 'प्राच्य भाषाओं' में मास्टर की डिग्री हासिल की और फिर एक उर्दू समाचार पत्र में मात्र 18 वर्ष की आयु में ही नियमित रूप से स्तम्भ लिखने लगे। उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए अख़बार के सम्पादक ने उनका वेतन बढाकर 300 रुपए मासिक कर दिया, जो उस समय क़ाफी बड़ी रकम थी।

कलकत्ता में

अखबार में कुछ समय तक काम करने के बाद वह कलकत्ता चले गए और फिर वहाँ से मुम्बई आ गए। लाहौर में उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध गायक, अभिनेता कुन्दनलाल सहगल से हुई थी, जो उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए 'मिनर्वा मूवीटोन' के मालिक निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी के पास ले गये।

इसी समय उनकी एक लघु कथा ‘सपनों का महल’ से निर्माता-निर्देशक और कहानीकार 'ख्वाजा अहमद अब्बास' प्रभावित हुए।

वैवाहिक जीवन

कमाल अमरोही ने तीन शादियां कीं। उनकी पहली बीवी का नाम 'बानो' था, जो नर्गिस की मां जद्दनबाई की नौकरानी थी। बानो की अस्थमा से मौत होने के बाद उन्होंने 'महमूदी' से निकाह किया। कमाल अमरोही ने तीसरी शादी अभिनेत्री मीना कुमारी से की जो उनसे उम्र में लगभग पंद्रह साल छोटी थीं। दोनों की मुलाकात एक फ़िल्म के सेट पर हुई थी और उनके बीच प्यार हो गया। उस समय कमाल अमरोही 34 साल के थे जबकि मीना कुमारी की उम्र 19 साल थी।

1952 में दोनों ने विवाह कर लिया लेकिन यह संबंध ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया और उनका अलगाव हो गया। मीना कुमारी के प्रति कमाल अमरोही का प्रेम शायद आखिर तक बरकरार रहा तभी तो उन्हें मौत के बाद कब्रिस्तान में मीना कुमारी की कब्र के बगल में दफनाया गया।

सवांद और गीतकार

कमाल अमरोही को पता चला कि सोहराब मोदी को एक कहानी की तलाश है। उनकी कहानी पर आधारित फिल्म ‘पुकार’ (1939) सुपर हिट रही। 'नसीम बानो' और 'चंद्रमोहन' अभिनीत इस फिल्म के लिए उन्होंने चार गीत लिखे-

  1. धोया महोबे घाट हे हो धोबिया रे..,
  2. दिल में तू आँखों में तू मेनका..,
  3. गीत सुनो वाह गीत सैयां..,
  4. काहे को मोहे छेड़े रे बेईमनवा..

इसके बाद तो फिल्मों के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखने का उनका सिलसिला चल पड़ा और उन्होंने जेलर (1938), मैं हारी (1940), भरोसा (1940), मज़ाक (1943), फूल (1945), शाहजहां (1946), महल (1949), दायरा (1953), दिल अपना और प्रीत पराई (1960), मुगले आजम (1960), पाकीज़ा (1971), शंकर हुसैन (1977) और रज़िया सुल्तान (1983), भरोसा (1940) जैसी फिल्मों के लिए कहानी, पटकथा और संवाद लिखने का काम किया।

कमाल अमरोही ने बेहद चुनिंदा फिल्मों के लिए काम किया लेकिन जो भी काम किया पूरी तबीयत और जुनून के साथ किया। उनके काम पर उनके व्यक्तित्व की छाप रहती थी। यही वजह है कि फिल्में बनाने की उनकी रफ़्तार काफी धीमी रहती थी और उन्हें इसकेलिए आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ता था।

फ़िल्म महल

निर्माता अशोक कुमार की फिल्म महल कमाल अमरोही के कैरियर का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इस फिल्म के निर्देशन का जिम्मा उन्हें सौंपा गया। रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी मधुर गीत-संगीत और ध्वनि के कल्पनामय इस्तेमाल से बनी यह फिल्म सुपरहिट रही और इसी के साथ बालीवुड में हारर और सस्पेंस फिल्मों के निर्माण का सिलसिला चल पड़ा। फिल्म की जबरदस्त कामयाबी ने नायिका मधुबाला और गायिका लता मंगेशकर को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया।

कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना

महल फिल्म की कामयाबी के बाद कमाल अमरोही ने 1953 में 'कमाल पिक्चर्स' और 1958 में कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की। कमाल पिक्चर्स के बैनर तले उन्होंने अभिनेत्री पत्नी मीना कुमारी को लेकर 'दायरा' फिल्म का निर्माण किया लेकिन भारत की कला फिल्मों में मानी जाने वाली यह फिल्म बाक्स आफिस पर नहीं चल पाई। इसी दौरान निर्माता-निर्देशक के.आसिफ अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म मुगल-ए-आजम के निर्माण में व्यस्त थे। इस फिल्म के लिए वजाहत मिर्जा संवाद लिख रहे थे लेकिन आसिफ को लगा कि एक ऐसे संवाद लेखक की जरूरत है जिसके लिखे डायलाग दर्शकों के दिमाग से बरसों बरस नहीं निकल पाएं और इसके लिए उन्हें कमाल अमरोही से ज्यादा उपयुक्त व्यक्ति कोई नहीं लगा। उन्होंने उन्हें अपने चार संवाद लेखकों में शामिल कर लिया। उनके उर्दू भाषा में लिखे डायलॉग इतने मशहूर हुए कि उस दौरान प्रेमी और प्रेमिकाएं प्रेमपत्रों में मुगले आजम के संवादों के माध्यम से अपनी मोहब्बत का इजहार करने लगे थे। इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।

फ़िल्म पाकीज़ा

पाकीज़ा कमाल अमरोही का ड्रीम प्रोजेक्ट थी जिस पर उन्होंने 1958 में काम करना शुरु किया था। उस समय यह ब्लैक एंड व्हाइट में बनने वाली थी। कुछ समय बाद जब भारत में सिनेमास्कोप का प्रचलन शुरु हो गया तो उन्होंने 1961 में इसे सिनेमास्कोप रूप में बनाना शुरु किया लेकिन कमाल अमरोही का अपनी तीसरी पत्नी मीना कुमारी से अलगाव हो जाने के कारण फिल्म का निर्माण 1961-69 तक बंद रहा। बाद में किसी तरह उन्होंने मीना कुमारी को फिल्म में काम करने के लिए राज़ी कर लिया और आखिरकार 1971 में जाकर यह फिल्म पूरी हुई तथा फरवरी 1972 को रिलीज हुई।

बेहतरीन संवाद, गीत-संगीत, दृश्यांकन और अभिनय से सजी इस फिल्म ने रिकार्डतोड़ कामयाबी हासिल की और आज यह फिल्म इतिहास की क्लासिक फिल्मों में गिनी जाती है। उन्होंने इस फिल्म केलिए एक गीत मौसम है आशिकाना.. भी लिखा था। जो बेहद मकबूल हुआ था। इस फिल्म के बाद कमाल अमरोही का फिल्मों से कुछ समय तक नाता टूटा रहा। 1983 में उन्होंने फिर फिल्म इंडस्ट्री का रुख किया और रजिया सुल्तान फिल्म से अपनी निर्देशन क्षमता का लोहा मनवाया।

निधन

अपने कमाल से दर्शकों को बांध देने वाला यह अजीम शख्सियत 11 फरवरी 1993 को इस दुनिया को अलविदा कह गई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख