कश्मीरी शैव सम्प्रदाय: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''कश्मीरी शैव सम्प्रदाय''' का गठन 'वसुगुप्त' ने 9वीं शता...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 8: | Line 8: | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ | {{धर्म}} | ||
[[Category:हिन्दू सम्प्रदाय]] | [[Category:हिन्दू सम्प्रदाय]] | ||
[[Category:हिन्दू धर्म]] | [[Category:हिन्दू धर्म]] | ||
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]] | [[Category:हिन्दू धर्म कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 07:10, 10 October 2012
कश्मीरी शैव सम्प्रदाय का गठन 'वसुगुप्त' ने 9वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में किया था। इनके 'कल्लट' और 'सोमानन्द' नाम के दो प्रसिद्ध शिष्य थे। इनका दार्शनिक मत 'ईश्वराद्वयवाद' था। सोमानन्द ने 'प्रत्यभिज्ञा मत' का प्रतिपादन किया था।
'प्रतिभिज्ञा' शब्द का तात्पर्य है कि 'साधक अपनी पूर्व ज्ञात वस्तु को पुन: जान ले'। इस अवस्था में साधक को अनिवर्चनीय आनन्द की अनुभूति होती है। वे अद्वैतभाव में द्वैतभाव और निर्गुण में भी सगुण की कल्पना कर लेते थे। उन्होंने मोक्ष की प्राप्ति के लिए कोरे ज्ञान और निरीभक्ति को असमर्थ बतलाया। दोनों का समन्वय ही मोक्ष प्राप्ति करा सकता है। यद्यपि शुद्ध भक्ति बिना द्वैतभाव के संभव नही है और द्वैतभाव अज्ञान मूलक है, किन्तु ज्ञान प्राप्त कर लेने पर जब द्वैत मूलक भाव की कल्पना कर ली जाती है, तब उससे किसी प्रकार की हानि की संभावना नही रहती। इस प्रकार इस सम्प्रदाय में कतिपय ऐसे भी साधक थे, जो योग-क्रिया द्वारा रहस्य का वास्तविक पता लगाना चाहते थे। क्योंकि उनका विचार था कि योग-क्रिया से माया के आवरण को समाप्त किया जा सकता है और इस दशा में ही मोक्ष की सिद्धि सम्भव है।
|
|
|
|
|