अहम का वहम -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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लोगों ने पुजारी से पूछा- | लोगों ने पुजारी से पूछा- | ||
"बादशाह ने तुम्हें क्या दान दिया ?" | "बादशाह ने तुम्हें क्या दान दिया ?" | ||
"सम्राट अकबर बहुत ही दयालु और दानवीर हैं। उन्होंने मुझे ऐसी चीज़ दी है जिसे मैं पूरे जीवन भर भी ख़र्च करने में लगा रहूँ, | "सम्राट अकबर बहुत ही दयालु और दानवीर हैं। उन्होंने मुझे ऐसी चीज़ दी है जिसे मैं पूरे जीवन भर भी ख़र्च करने में लगा रहूँ, ख़र्च नहीं होगी।" | ||
पुजारी ने तो सच ही बताया। इसमें क्या दो राय है कि फूटी कौड़ी का कोई मोल नहीं है और जिसका कोई मोल नहीं उसको हम ख़र्च करेंगे भी कैसे ? लेकिन लोगों ने समझा कि निश्चित ही अनुपम उपहार दिया गया है। पुजारी की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी। जो कोई भी मथुरा-वृन्दावन आता, वही चाहता कि उसका यमुना पूजन वही पुजारी करवाए जिसने कि अकबर से यमुना पूजन कराया। सम्राट के पुरोहित को कौन अपना पुरोहित नहीं बनाना चाहेगा। इस तरह पुजारी पर बहुत धन-संपत्ति एकत्रित होने लगी। | पुजारी ने तो सच ही बताया। इसमें क्या दो राय है कि फूटी कौड़ी का कोई मोल नहीं है और जिसका कोई मोल नहीं उसको हम ख़र्च करेंगे भी कैसे ? लेकिन लोगों ने समझा कि निश्चित ही अनुपम उपहार दिया गया है। पुजारी की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी। जो कोई भी मथुरा-वृन्दावन आता, वही चाहता कि उसका यमुना पूजन वही पुजारी करवाए जिसने कि अकबर से यमुना पूजन कराया। सम्राट के पुरोहित को कौन अपना पुरोहित नहीं बनाना चाहेगा। इस तरह पुजारी पर बहुत धन-संपत्ति एकत्रित होने लगी। | ||
यह बात तानसेन तक पहुँची और फिर अकबर को पता चला। अकबर को अपार आश्चर्य हुआ यह जानकर कि जो दान उसने पुजारी को दिया था वह इतना क़ीमती था कि सारे जीवन में उसे ख़र्च नहीं किया जा सकता। पुजारी को अकबर ने राजधानी [[आगरा]] बुलवाया और एकान्त में ले जाकर पूछा- | यह बात तानसेन तक पहुँची और फिर अकबर को पता चला। अकबर को अपार आश्चर्य हुआ यह जानकर कि जो दान उसने पुजारी को दिया था वह इतना क़ीमती था कि सारे जीवन में उसे ख़र्च नहीं किया जा सकता। पुजारी को अकबर ने राजधानी [[आगरा]] बुलवाया और एकान्त में ले जाकर पूछा- | ||
"पुजारी जी! मैंने आपको दान में एक [[कौड़ी]] दी थी और वह भी फूटी हुई थी फिर ये अफ़वाह कैसे हुई और आपके पास इतनी धन संपदा कहाँ से आई | "पुजारी जी! मैंने आपको दान में एक [[कौड़ी]] दी थी और वह भी फूटी हुई थी फिर ये अफ़वाह कैसे हुई और आपके पास इतनी धन संपदा कहाँ से आई, ये क्या रहस्य है ?�" | ||
"इसमें कोई रहस्य नहीं है महाराज, न ही कोई झूठ है। यह सत्य है कि आपने मुझे एक फूटी कौड़ी ही दी थी, जिसका कि बाज़ार में कोई मोल नहीं है, अब आप ही बताइए कि मैं उस फूटी कौड़ी से भला क्या ख़रीद सकता हूँ ? महाराज आपने मुझे यमुना पूजन के लिए चुना, यह मेरे लिए जीवन का सबसे बड़ा अवसर था। इस अवसर का लाभ उठा कर मैं कुछ अद्भुत करना चाहता था, मैं यह भी जानता था कि ऐसे अवसर जीवन में बार-बार नहीं आते और मैं इतना मूर्ख नहीं कि सम्राट अकबर के उपहार का अपमान करूँ, इसलिए मैंने अपनी छोटी सी बुद्धि से उस फूटी कौड़ी को ही अपनी सफलता का कारण बना दिया।" इसके बाद अकबर ने उस पुजारी को बहुत इनाम देकर सम्मान के साथ विदा किया। | "इसमें कोई रहस्य नहीं है महाराज, न ही कोई झूठ है। यह सत्य है कि आपने मुझे एक फूटी कौड़ी ही दी थी, जिसका कि बाज़ार में कोई मोल नहीं है, अब आप ही बताइए कि मैं उस फूटी कौड़ी से भला क्या ख़रीद सकता हूँ ? महाराज आपने मुझे यमुना पूजन के लिए चुना, यह मेरे लिए जीवन का सबसे बड़ा अवसर था। इस अवसर का लाभ उठा कर मैं कुछ अद्भुत करना चाहता था, मैं यह भी जानता था कि ऐसे अवसर जीवन में बार-बार नहीं आते और मैं इतना मूर्ख नहीं कि सम्राट अकबर के उपहार का अपमान करूँ, इसलिए मैंने अपनी छोटी सी बुद्धि से उस फूटी कौड़ी को ही अपनी सफलता का कारण बना दिया।" इसके बाद अकबर ने उस पुजारी को बहुत इनाम देकर सम्मान के साथ विदा किया। | ||
Revision as of 09:46, 23 December 2014
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश अहम का वहम -आदित्य चौधरी कहते हैं कि बादशाह अकबर वृन्दावन में स्वामी हरिदास के दर्शन करने संगीत सम्राट तानसेन के साथ आया था। स्वामी जी के मुख से यमुना की महिमा सुनकर अकबर की इच्छा यमुना पूजन करने की हुई। सभी पंडे पुजारी जानते थे कि जो भी अकबर को यमुना पूजन करवाएगा उसे अकबर बहुत बड़ा इनाम देगा। सभी में होड़ लगी थी कि कौन कराएगा पूजन ! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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