चीरहरण लीला: Difference between revisions
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[[शरद ऋतु|शरद-ऋृतु]] में [[भगवान]] ने वेणु वादन किया था, इसके पश्चात [[ब्रज]] में हेमंत ऋृतु का आगमन हुआ। इस समय भगवान की आयु छ: वर्ष की थी। [[गोपी|गोपियां]] तो छोटी-छोटी सी थी। गोपियों ने ईश्वर प्राप्ति के लिए कात्यायनी की उपासना की। इस व्रत को पूर्ण करने के लिए गोपियां अपने वस्त्र उतारकर उन वस्त्रों को [[यमुना|यमुना जी]] में स्नान के लिए प्रवेश कर गईं। भगवान गोपियों के वस्त्र चुराकर [[कदम्ब]] के वृक्ष पर चढ़ गए। जब गोपियों को पता लगा तो वे [[कृष्ण]] से वस्त्रों की याचना करने लगीं। भगवान ने गोपियों से, जल से बाहर, अपने पास आने के लिए कहा। | [[शरद ऋतु|शरद-ऋृतु]] में [[भगवान]] ने वेणु वादन किया था, इसके पश्चात [[ब्रज]] में हेमंत ऋृतु का आगमन हुआ। इस समय भगवान की आयु छ: वर्ष की थी। [[गोपी|गोपियां]] तो छोटी-छोटी सी थी। गोपियों ने ईश्वर प्राप्ति के लिए कात्यायनी की उपासना की। इस व्रत को पूर्ण करने के लिए गोपियां अपने वस्त्र उतारकर उन वस्त्रों को [[यमुना|यमुना जी]] में स्नान के लिए प्रवेश कर गईं। भगवान गोपियों के वस्त्र चुराकर [[कदम्ब]] के वृक्ष पर चढ़ गए। जब गोपियों को पता लगा तो वे [[कृष्ण]] से वस्त्रों की याचना करने लगीं। भगवान ने गोपियों से, जल से बाहर, अपने पास आने के लिए कहा।<ref name="cc">{{cite web |url=https://plus.google.com/+AwesNIRAJ/posts/Ph5AL8Tik2v|title=चीरहरण लीला|accessmonthday=21 फरवरी|accessyear=2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=Awes NIRAJ|language=हिन्दी}}</ref> | ||
भगवान अपने भक्तों के वसन<ref>वस्त्र</ref> रूपी वासना को हटाना चाहते हैं क्योंकि वासना से बुद्धि आच्छादित हो जाती है और वासना रूपी वस्त्र भगवान से मिलने में बाधक भी होता है। इसलिए भगवान अपने प्रेमी का आवरण<ref>वासना,वस्त्र</ref> स्वयं हटाते हैं। उपासना से वासना की निवृत्ति होती है। वासना की निवृत्ति होने के बाद ही प्रभु से एकता होती है। प्रभु से एकता ही रास है। इस प्रकार भगवान रास में प्रवेश करने की तैयारी करते हैं। आवरण के हटने के बाद ही भगवान का वरण होगा। भगवान ने गोपियों से कहा कि 'शरद ऋृतु में आपके साथ रास करूंगा।' | भगवान अपने भक्तों के वसन<ref>वस्त्र</ref> रूपी वासना को हटाना चाहते हैं क्योंकि वासना से बुद्धि आच्छादित हो जाती है और वासना रूपी वस्त्र भगवान से मिलने में बाधक भी होता है। इसलिए भगवान अपने प्रेमी का आवरण<ref>वासना,वस्त्र</ref> स्वयं हटाते हैं। उपासना से वासना की निवृत्ति होती है। वासना की निवृत्ति होने के बाद ही प्रभु से एकता होती है। प्रभु से एकता ही रास है। इस प्रकार भगवान रास में प्रवेश करने की तैयारी करते हैं। आवरण के हटने के बाद ही भगवान का वरण होगा। भगवान ने गोपियों से कहा कि 'शरद ऋृतु में आपके साथ रास करूंगा।' | ||
यह दिव्य प्रेम लीला है। काम की गंध भी नहीं है। यदि इस प्रसंग को काम प्रधान माना जाए तो जिनके चार अंगूल की लंगौट तक नहीं, जिन्हें देखकर अप्सराओं की लज्जा की निवृत्ति हो गई थी। वे परम वीतरागी [[शुकदेव|श्रीशुकदेव जी]] क्या इस कथा को कहते, यदि यह काम लीला होती ? सात दिनों में जिसे मुक्त होना हो, क्या ऐसे [[परीक्षित|परीक्षित जी]] महाराज इसे सुनते ? | यह दिव्य प्रेम लीला है। काम की गंध भी नहीं है। यदि इस प्रसंग को काम प्रधान माना जाए तो जिनके चार अंगूल की लंगौट तक नहीं, जिन्हें देखकर अप्सराओं की लज्जा की निवृत्ति हो गई थी। वे परम वीतरागी [[शुकदेव|श्रीशुकदेव जी]] क्या इस कथा को कहते, यदि यह काम लीला होती ? सात दिनों में जिसे मुक्त होना हो, क्या ऐसे [[परीक्षित|परीक्षित जी]] महाराज इसे सुनते ?<ref name="cc"/> | ||
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[[चित्र:Cheer-haran.jpg|thumb|200px|कृष्ण द्वारा गोपियों का वस्त्र हरण]] शरद-ऋृतु में भगवान ने वेणु वादन किया था, इसके पश्चात ब्रज में हेमंत ऋृतु का आगमन हुआ। इस समय भगवान की आयु छ: वर्ष की थी। गोपियां तो छोटी-छोटी सी थी। गोपियों ने ईश्वर प्राप्ति के लिए कात्यायनी की उपासना की। इस व्रत को पूर्ण करने के लिए गोपियां अपने वस्त्र उतारकर उन वस्त्रों को यमुना जी में स्नान के लिए प्रवेश कर गईं। भगवान गोपियों के वस्त्र चुराकर कदम्ब के वृक्ष पर चढ़ गए। जब गोपियों को पता लगा तो वे कृष्ण से वस्त्रों की याचना करने लगीं। भगवान ने गोपियों से, जल से बाहर, अपने पास आने के लिए कहा।[1]
भगवान अपने भक्तों के वसन[2] रूपी वासना को हटाना चाहते हैं क्योंकि वासना से बुद्धि आच्छादित हो जाती है और वासना रूपी वस्त्र भगवान से मिलने में बाधक भी होता है। इसलिए भगवान अपने प्रेमी का आवरण[3] स्वयं हटाते हैं। उपासना से वासना की निवृत्ति होती है। वासना की निवृत्ति होने के बाद ही प्रभु से एकता होती है। प्रभु से एकता ही रास है। इस प्रकार भगवान रास में प्रवेश करने की तैयारी करते हैं। आवरण के हटने के बाद ही भगवान का वरण होगा। भगवान ने गोपियों से कहा कि 'शरद ऋृतु में आपके साथ रास करूंगा।'
यह दिव्य प्रेम लीला है। काम की गंध भी नहीं है। यदि इस प्रसंग को काम प्रधान माना जाए तो जिनके चार अंगूल की लंगौट तक नहीं, जिन्हें देखकर अप्सराओं की लज्जा की निवृत्ति हो गई थी। वे परम वीतरागी श्रीशुकदेव जी क्या इस कथा को कहते, यदि यह काम लीला होती ? सात दिनों में जिसे मुक्त होना हो, क्या ऐसे परीक्षित जी महाराज इसे सुनते ?[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 चीरहरण लीला (हिन्दी) Awes NIRAJ। अभिगमन तिथि: 21 फरवरी, 2016।
- ↑ वस्त्र
- ↑ वासना,वस्त्र