इन्द्रतीर्थ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
Line 3: Line 3:
देवराज [[इन्द्र]] ने सौ यज्ञों का अनुष्ठान किया था। वह स्थान अब 'शतक्रतु' नाम से विख्यात है, तथा जहाँ इन्द्र ने यह [[यज्ञ]] किये थे, वह स्थान 'इन्द्रतीर्थ' कहलाने लगा। इस तीर्थ को सर्वपापहारी भी कहते हैं।
देवराज [[इन्द्र]] ने सौ यज्ञों का अनुष्ठान किया था। वह स्थान अब 'शतक्रतु' नाम से विख्यात है, तथा जहाँ इन्द्र ने यह [[यज्ञ]] किये थे, वह स्थान 'इन्द्रतीर्थ' कहलाने लगा। इस तीर्थ को सर्वपापहारी भी कहते हैं।
==द्वितीय प्रसंग==
==द्वितीय प्रसंग==
वृत्रासुर वध के पश्चात ब्रह्महत्या साकार रूप में इन्द्र के पीछे पड़ गई। इन्द्र महासागर में [[कमल]] की नाल में तंतु रूप के रूप में जा छिपे। ब्रह्महत्या उसी के तट पर रहने लगी। [[ब्रह्मा]] ने देवताओं से कहा कि वे ब्रह्महत्या को कोई निर्दिष्ट स्थान दे दें। इसी मध्य गौतमी में [[स्नान]] करके इन्द्र अपना पाप नष्ट करके अपना पद पुन: ग्रहण करें। देवताओं ने ऐसा ही किया, किन्तु इन्द्र जहाँ पर पहले स्नान करने गए, वहाँ [[गौतम ऋषि|गौतम]] ने इन्द्र का अभिषेक करके समस्त देवताओं को भस्म करने की बात कही। [[देवता]] गौतमी को छोड़कर मांडव्य की शरण में गए। मांडव्य ऋषि ने कहा कि इन्द्र का अभिषेक जहाँ पर भी किया जाएगा, वहाँ पर भयंकर विघ्न उत्पन्न होंगे। देवताओं की [[पूजा]] से प्रसन्न होकर [[ऋषि]] ने अपने आशीर्वाद से भावी विघ्नों का शमन किया। ब्रह्मा ने कमंडलु के [[जल]] से इन्द्र का अभिषेक किया। जल पुण्या नदी के रूप में गौतमी से जा मिला। [[गौतमी नदी|गौतमी]] से जिस स्थान पर स्नान कर इन्द्र पाप मुक्त हुए, वह स्थान 'इन्द्रतीर्थ' नाम से विख्यात है।
वृत्रासुर वध के पश्चात् ब्रह्महत्या साकार रूप में इन्द्र के पीछे पड़ गई। इन्द्र महासागर में [[कमल]] की नाल में तंतु रूप के रूप में जा छिपे। ब्रह्महत्या उसी के तट पर रहने लगी। [[ब्रह्मा]] ने देवताओं से कहा कि वे ब्रह्महत्या को कोई निर्दिष्ट स्थान दे दें। इसी मध्य गौतमी में [[स्नान]] करके इन्द्र अपना पाप नष्ट करके अपना पद पुन: ग्रहण करें। देवताओं ने ऐसा ही किया, किन्तु इन्द्र जहाँ पर पहले स्नान करने गए, वहाँ [[गौतम ऋषि|गौतम]] ने इन्द्र का अभिषेक करके समस्त देवताओं को भस्म करने की बात कही। [[देवता]] गौतमी को छोड़कर मांडव्य की शरण में गए। मांडव्य ऋषि ने कहा कि इन्द्र का अभिषेक जहाँ पर भी किया जाएगा, वहाँ पर भयंकर विघ्न उत्पन्न होंगे। देवताओं की [[पूजा]] से प्रसन्न होकर [[ऋषि]] ने अपने आशीर्वाद से भावी विघ्नों का शमन किया। ब्रह्मा ने कमंडलु के [[जल]] से इन्द्र का अभिषेक किया। जल पुण्या नदी के रूप में गौतमी से जा मिला। [[गौतमी नदी|गौतमी]] से जिस स्थान पर स्नान कर इन्द्र पाप मुक्त हुए, वह स्थान 'इन्द्रतीर्थ' नाम से विख्यात है।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Latest revision as of 07:43, 23 June 2017

इन्द्रतीर्थ से सम्बन्धित दो प्रसंगों का उल्लेख प्राप्त होता है, जो निम्न प्रकार से हैं-

प्रथम प्रसंग

देवराज इन्द्र ने सौ यज्ञों का अनुष्ठान किया था। वह स्थान अब 'शतक्रतु' नाम से विख्यात है, तथा जहाँ इन्द्र ने यह यज्ञ किये थे, वह स्थान 'इन्द्रतीर्थ' कहलाने लगा। इस तीर्थ को सर्वपापहारी भी कहते हैं।

द्वितीय प्रसंग

वृत्रासुर वध के पश्चात् ब्रह्महत्या साकार रूप में इन्द्र के पीछे पड़ गई। इन्द्र महासागर में कमल की नाल में तंतु रूप के रूप में जा छिपे। ब्रह्महत्या उसी के तट पर रहने लगी। ब्रह्मा ने देवताओं से कहा कि वे ब्रह्महत्या को कोई निर्दिष्ट स्थान दे दें। इसी मध्य गौतमी में स्नान करके इन्द्र अपना पाप नष्ट करके अपना पद पुन: ग्रहण करें। देवताओं ने ऐसा ही किया, किन्तु इन्द्र जहाँ पर पहले स्नान करने गए, वहाँ गौतम ने इन्द्र का अभिषेक करके समस्त देवताओं को भस्म करने की बात कही। देवता गौतमी को छोड़कर मांडव्य की शरण में गए। मांडव्य ऋषि ने कहा कि इन्द्र का अभिषेक जहाँ पर भी किया जाएगा, वहाँ पर भयंकर विघ्न उत्पन्न होंगे। देवताओं की पूजा से प्रसन्न होकर ऋषि ने अपने आशीर्वाद से भावी विघ्नों का शमन किया। ब्रह्मा ने कमंडलु के जल से इन्द्र का अभिषेक किया। जल पुण्या नदी के रूप में गौतमी से जा मिला। गौतमी से जिस स्थान पर स्नान कर इन्द्र पाप मुक्त हुए, वह स्थान 'इन्द्रतीर्थ' नाम से विख्यात है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 29 |


संबंधित लेख