सुदर्शन झील: Difference between revisions

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'''सुदर्शन झील''' [[गिरनार]], [[गुजरात]] में स्थित है। इस [[झील]] का निर्माण [[मौर्य वंश]] के संस्थापक [[चन्द्रगुप्त मौर्य|सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य]] के आदेश से उसके गिरनार में नियुक्त राज्यपाल 'पुष्यगुप्त वैश्य' ने करवाया था। [[सम्राट अशोक]] के महामात्य [[तुषास्प]] ने इस झील का पुर्ननिर्माण करवा कर उसे मजबूती प्रदान की थी। बाद के समय में [[स्कन्दगुप्त]] ने बड़ी उदारता के साथ धन खर्च किया और इस झील पर एक बाँध का निर्माण करवाया।
'''सुदर्शन झील''' [[गिरनार]], [[गुजरात]] में स्थित है। इस [[झील]] का निर्माण [[मौर्य वंश]] के संस्थापक [[चन्द्रगुप्त मौर्य|सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य]] के आदेश से उसके गिरनार में नियुक्त राज्यपाल 'पुष्यगुप्त वैश्य' ने करवाया था। [[सम्राट अशोक]] के महामात्य [[तुषास्प]] ने इस झील का पुर्ननिर्माण करवा कर उसे मजबूती प्रदान की थी। बाद के समय में [[स्कन्दगुप्त]] ने बड़ी उदारता के साथ धन खर्च किया और इस [[झील]] पर एक [[बाँध]] का निर्माण करवाया।
==इतिहास==
==इतिहास==
चन्द्रगुप्त मौर्य ने [[पश्चिम भारत]] में [[सौराष्ट्र]] तक के प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत शामिल कर लिए थे। 'गिरनार अभिलेख' के अनुसार इस प्रदेश में पुष्यगुप्त वैश्य नामक चन्द्रगुप्त के राज्यपाल ने 'सुदर्शन झील' का निर्माण करवाया था। कालांतर में यह झील जीर्ण अवस्था को प्राप्त होती रही। बाद के समय में [[तुषास्प]], जो कि [[मौर्य]] सम्राट अशोक का महामात्य था, उसने झील का पुनर्निर्माण करवाया। तुषास्प ने झील का पुनर्निर्माण इतनी मजबूती से कराया था कि फिर 400 वर्ष तक उसकी मरम्मत की आवश्यकता नहीं हुई। [[गुप्त काल]] में यह झील फिर ख़राब हो गई थी। अब [[स्कन्दगुप्त]] के आदेश से 'पर्णदत्त' ने इस झील का जीर्णोद्वार किया। उसके शासन के पहले ही साल में इस झील का बाँध टूट गया था, जिससे प्रजा को बड़ा कष्ट हो गया था। स्कन्दगुप्त ने उदारता के साथ इस बाँध पर खर्च किया। पर्णदत्त का पुत्र चक्रपालित भी इस प्रदेश में राज्य सेवा में नियुक्त था। उसने झील के तट पर [[विष्णु]] भगवान के मन्दिर का निर्माण कराया।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने [[पश्चिम भारत]] में [[सौराष्ट्र]] तक के प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत शामिल कर लिए थे। 'गिरनार अभिलेख' के अनुसार इस प्रदेश में पुष्यगुप्त वैश्य नामक चन्द्रगुप्त के राज्यपाल ने 'सुदर्शन झील' का निर्माण करवाया था। कालांतर में यह झील जीर्ण अवस्था को प्राप्त होती रही। बाद के समय में [[तुषास्प]], जो कि [[मौर्य]] सम्राट अशोक का महामात्य था, उसने झील का पुनर्निर्माण करवाया। तुषास्प ने झील का पुनर्निर्माण इतनी मजबूती से कराया था कि फिर 400 [[वर्ष]] तक उसकी मरम्मत की आवश्यकता नहीं हुई। [[गुप्त काल]] में यह झील फिर ख़राब हो गई थी। अब [[स्कन्दगुप्त]] के आदेश से 'पर्णदत्त' ने इस झील का जीर्णोद्वार किया। उसके शासन के पहले ही साल में इस झील का बाँध टूट गया था, जिससे प्रजा को बड़ा कष्ट हो गया था। स्कन्दगुप्त ने उदारता के साथ इस बाँध पर खर्च किया। पर्णदत्त का पुत्र चक्रपालित भी इस प्रदेश में राज्य सेवा में नियुक्त था। उसने झील के तट पर [[विष्णु]] भगवान के मन्दिर का निर्माण कराया।
====शिलालेख साक्ष्य====
====शिलालेख साक्ष्य====
[[जूनागढ़]] का पहला [[शिलालेख]] शक संवत 72 (150-151 ई.) का है। [[शक]] शासक [[रुद्रदामन]] के इस शिलालेख में [[महाक्षत्रप]] रुद्रदामन द्वारा सुदर्शन झील की मरम्मत आदि के दिलचस्प विवरण हैं। शुरू में इस झील का निर्माण [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के अधिकारी पुष्यगुप्त वैश्य ने करवाया था। बाद में [[अशोक]] के शासन में इसमें और सुधार किया गया। अशोक के महामात्य [[तुषास्प]], जिसे [[यवन]] माना जाता है, ने इस झील से नहर निकलवाई। यह झील उर्जयत (गिरनार) में उर्जयत पहाड़ी से निकले 'सुवर्णसिकता' और 'पालसिनी' झरनों के [[जल]] को जमा करके बनाई गई थी। 150-151 ई. से थोड़ा पहले उर्जयत पहाड़ी के 'सुवर्णसिकता', 'पालसिनी' और दूसरे झरनों में [[बाढ़]] के कारण [[तटबंध|तटबंधों]] में दरार पड़ गई और सुदर्शन झील समाप्त हो गई। बाँध को फिर से बनाने का काम राजा रुद्रदामन के [[पल्लव साम्राज्य|पल्लव]] मंत्री सुविसाख ने किया। सुविसाख की नियुक्ति सुवर्ण और सौराष्ट्र प्रांतों का शासन चलाने के लिए की गई थी।<ref>{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/node/21556|title=जूनागढ़ शिलालेख|accessmonthday=08 जून|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
[[जूनागढ़]] का पहला [[शिलालेख]] शक संवत 72 (150-151 ई.) का है। [[शक]] शासक [[रुद्रदामन]] के इस शिलालेख में [[महाक्षत्रप]] रुद्रदामन द्वारा सुदर्शन झील की मरम्मत आदि के दिलचस्प विवरण हैं। शुरू में इस झील का निर्माण [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के अधिकारी पुष्यगुप्त वैश्य ने करवाया था। बाद में [[अशोक]] के शासन में इसमें और सुधार किया गया। अशोक के महामात्य [[तुषास्प]], जिसे [[यवन]] माना जाता है, ने इस झील से नहर निकलवाई। यह झील उर्जयत (गिरनार) में उर्जयत पहाड़ी से निकले 'सुवर्णसिकता' और 'पालसिनी' झरनों के [[जल]] को जमा करके बनाई गई थी। 150-151 ई. से थोड़ा पहले उर्जयत पहाड़ी के 'सुवर्णसिकता', 'पालसिनी' और दूसरे झरनों में [[बाढ़]] के कारण [[तटबंध|तटबंधों]] में दरार पड़ गई और सुदर्शन झील समाप्त हो गई। बाँध को फिर से बनाने का काम राजा रुद्रदामन के [[पल्लव साम्राज्य|पल्लव]] मंत्री सुविसाख ने किया। सुविसाख की नियुक्ति सुवर्ण और सौराष्ट्र प्रांतों का शासन चलाने के लिए की गई थी।<ref>{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/node/21556|title=जूनागढ़ शिलालेख|accessmonthday=08 जून|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==मरम्मत कार्य==
==मरम्मत कार्य==
[[शिलालेख]] से कई बातें सामने आती हैं। 'सुदर्शन झील' के पानी का उपयोग महामात्य तुषास्प द्वारा खुदवाई गई नहरों से सिंचाई के लिए होता था। चार शताब्दी बाद उसकी मरम्मत एक पहलव या पल्लव सामंत ने करवाई। दोनों ही काम विदेशियों ने किए थे। इस तरह यह जूनागढ़ शिलालेख केवल बाँध ही नहीं, झील का भी एक रिकॉर्ड है। इससे पता चलता है कि ई.पू. चौथी शताब्दी में भी लोग बाँध, झील और सिंचाई प्रणाली का निर्माण जानते थे। तीन सौ साल बाद मरम्मत आदि का काम पूरा होने पर 455-456 ई. में सुदर्शन झील भारी बरसात के कारण फिर टूट गई थी। 456 ई. में पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित के आदेश पर इस विशाल दरार की मरम्मत करके तटबंधों को दो महीने में दुरुस्त किया गया। सम्राट स्कंदगुप्त के काल के जूनागढ़ के एक शिलालेख से पता चलता है कि चक्रपालित ने सुदर्शन झील के तटबंध की मरम्मत करवाई थी।
[[शिलालेख]] से कई बातें सामने आती हैं। 'सुदर्शन झील' के पानी का उपयोग महामात्य तुषास्प द्वारा खुदवाई गई नहरों से सिंचाई के लिए होता था। चार [[शताब्दी]] बाद उसकी मरम्मत एक पहलव या पल्लव सामंत ने करवाई। दोनों ही काम विदेशियों ने किए थे। इस तरह यह जूनागढ़ शिलालेख केवल बाँध ही नहीं, झील का भी एक रिकॉर्ड है। इससे पता चलता है कि ई.पू. चौथी शताब्दी में भी लोग [[बाँध]], [[झील]] और सिंचाई प्रणाली का निर्माण जानते थे। तीन सौ साल बाद मरम्मत आदि का काम पूरा होने पर 455-456 ई. में सुदर्शन झील भारी बरसात के कारण फिर टूट गई थी। 456 ई. में पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित के आदेश पर इस विशाल दरार की मरम्मत करके तटबंधों को दो [[महीने]] में दुरुस्त किया गया। सम्राट स्कंदगुप्त के काल के जूनागढ़ के एक शिलालेख से पता चलता है कि चक्रपालित ने सुदर्शन झील के तटबंध की मरम्मत करवाई थी।


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Revision as of 08:09, 24 April 2018

चित्र:Disamb2.jpg सुदर्शन एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सुदर्शन (बहुविकल्पी)
सुदर्शन झील
विवरण 'सुदर्शन झील' गुजरात के गिरनार में स्थित है, जिसका निर्माण चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में हुआ था। झील का निर्माण खेतों में सिंचाई आदि की सुविधा के लिए किया गया था।
राज्य गुजरात
निर्माण काल मौर्य काल
निर्माणकर्ता पुष्यगुप्त वैश्य
विशेष मौर्य सम्राट अशोक के महामात्य तुषास्प ने इस झील का पुनर्निर्माण इतनी मजबूती से कराया था कि फिर 400 वर्ष तक उसकी मरम्मत की आवश्यकता नहीं हुई थी।
संबंधित लेख चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, तुषास्प, स्कन्दगुप्त, रुद्रदामन
अन्य जानकारी स्कन्दगुप्त के काल के जूनागढ़ के एक शिलालेख से पता चलता है कि चक्रपालित ने 'सुदर्शन झील' के तटबंध की मरम्मत करवाई थी।

सुदर्शन झील गिरनार, गुजरात में स्थित है। इस झील का निर्माण मौर्य वंश के संस्थापक सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के आदेश से उसके गिरनार में नियुक्त राज्यपाल 'पुष्यगुप्त वैश्य' ने करवाया था। सम्राट अशोक के महामात्य तुषास्प ने इस झील का पुर्ननिर्माण करवा कर उसे मजबूती प्रदान की थी। बाद के समय में स्कन्दगुप्त ने बड़ी उदारता के साथ धन खर्च किया और इस झील पर एक बाँध का निर्माण करवाया।

इतिहास

चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्चिम भारत में सौराष्ट्र तक के प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अन्तर्गत शामिल कर लिए थे। 'गिरनार अभिलेख' के अनुसार इस प्रदेश में पुष्यगुप्त वैश्य नामक चन्द्रगुप्त के राज्यपाल ने 'सुदर्शन झील' का निर्माण करवाया था। कालांतर में यह झील जीर्ण अवस्था को प्राप्त होती रही। बाद के समय में तुषास्प, जो कि मौर्य सम्राट अशोक का महामात्य था, उसने झील का पुनर्निर्माण करवाया। तुषास्प ने झील का पुनर्निर्माण इतनी मजबूती से कराया था कि फिर 400 वर्ष तक उसकी मरम्मत की आवश्यकता नहीं हुई। गुप्त काल में यह झील फिर ख़राब हो गई थी। अब स्कन्दगुप्त के आदेश से 'पर्णदत्त' ने इस झील का जीर्णोद्वार किया। उसके शासन के पहले ही साल में इस झील का बाँध टूट गया था, जिससे प्रजा को बड़ा कष्ट हो गया था। स्कन्दगुप्त ने उदारता के साथ इस बाँध पर खर्च किया। पर्णदत्त का पुत्र चक्रपालित भी इस प्रदेश में राज्य सेवा में नियुक्त था। उसने झील के तट पर विष्णु भगवान के मन्दिर का निर्माण कराया।

शिलालेख साक्ष्य

जूनागढ़ का पहला शिलालेख शक संवत 72 (150-151 ई.) का है। शक शासक रुद्रदामन के इस शिलालेख में महाक्षत्रप रुद्रदामन द्वारा सुदर्शन झील की मरम्मत आदि के दिलचस्प विवरण हैं। शुरू में इस झील का निर्माण चन्द्रगुप्त मौर्य के अधिकारी पुष्यगुप्त वैश्य ने करवाया था। बाद में अशोक के शासन में इसमें और सुधार किया गया। अशोक के महामात्य तुषास्प, जिसे यवन माना जाता है, ने इस झील से नहर निकलवाई। यह झील उर्जयत (गिरनार) में उर्जयत पहाड़ी से निकले 'सुवर्णसिकता' और 'पालसिनी' झरनों के जल को जमा करके बनाई गई थी। 150-151 ई. से थोड़ा पहले उर्जयत पहाड़ी के 'सुवर्णसिकता', 'पालसिनी' और दूसरे झरनों में बाढ़ के कारण तटबंधों में दरार पड़ गई और सुदर्शन झील समाप्त हो गई। बाँध को फिर से बनाने का काम राजा रुद्रदामन के पल्लव मंत्री सुविसाख ने किया। सुविसाख की नियुक्ति सुवर्ण और सौराष्ट्र प्रांतों का शासन चलाने के लिए की गई थी।[1]

मरम्मत कार्य

शिलालेख से कई बातें सामने आती हैं। 'सुदर्शन झील' के पानी का उपयोग महामात्य तुषास्प द्वारा खुदवाई गई नहरों से सिंचाई के लिए होता था। चार शताब्दी बाद उसकी मरम्मत एक पहलव या पल्लव सामंत ने करवाई। दोनों ही काम विदेशियों ने किए थे। इस तरह यह जूनागढ़ शिलालेख केवल बाँध ही नहीं, झील का भी एक रिकॉर्ड है। इससे पता चलता है कि ई.पू. चौथी शताब्दी में भी लोग बाँध, झील और सिंचाई प्रणाली का निर्माण जानते थे। तीन सौ साल बाद मरम्मत आदि का काम पूरा होने पर 455-456 ई. में सुदर्शन झील भारी बरसात के कारण फिर टूट गई थी। 456 ई. में पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित के आदेश पर इस विशाल दरार की मरम्मत करके तटबंधों को दो महीने में दुरुस्त किया गया। सम्राट स्कंदगुप्त के काल के जूनागढ़ के एक शिलालेख से पता चलता है कि चक्रपालित ने सुदर्शन झील के तटबंध की मरम्मत करवाई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जूनागढ़ शिलालेख (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 जून, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख